बिरसा मुंडा के शहादत दिवस से पहले सोनभद्र में आदिवासी की हत्या
आदिवासियों के बीच भगवान की तरह पूजे जाने वाले बिरसा मुंडा के शहादत दिवस से तीन दिन पहले सोनभद्र के आदिवासी गम और गुस्से से भर गए हैं।
उभ्भा नरसंहार के बाद फिर आदिवासी की हत्या होने से इलाके मेें तनाव और आक्रोश का माहौल है। कई जनसंगठनों ने इंसाफ न मिलने पर सरकार को चेतावनी दी है।
जनसंगठनों ने वारदात के पीछे पुलिस और खनन माफिया गठजोड़ को जिम्मेदार ठहराकर इंसाफ दिलाने की मांग की है। आक्रोशित लोगों का कहना है कि इंसाफ न मिलने पर विरोध-प्रदर्शन शुरू किया जाएगा।
सोनभद्र के पकरी गांव के राम सुंदर गोंड की हत्या होने पर दो दिन पहले स्थानीय लोगों ने हंगामा किया, जिसे पुलिस ने फौरी तौर आश्वासन देकर शांत कर दिया, लेकिन आक्रोश बना हुआ है।
आठ जून को स्वराज अभियान के जिला संयोजक कांता कोल और मजदूर किसान मंच के नेता कृपाशंकर पनिका के नेतृत्व में मृतक के पुत्र लाल बहादुर और पकरी के प्रधान मंजय यादव ने डीएम व एसपी से मिलकर रोष जताया।
अधिकारियों को ज्ञापन देकर रामसुंदर गोंड की हत्या में खनन माफियाओं की भूमिका की जांच कराने, एफआईआर दर्ज न करने वाले पुलिस अधिकारियों पर कार्यवाही करने, दर्ज एफआईआर में एससी-एसटी एक्ट की धाराएं जोडऩे, ग्रामीणों पर दर्ज फर्जी मुकदमा वापस लेने और खनन माफियाओं का नाम हत्या की एफआईआर में चढ़ाने की मांग की गई। प्रतिनिधि मंडल में मजदूर किसान मंच के नेता महेंद्र प्रताप सिंह, बीडीसी पकरी गंभीर सिंह गोंड, रामविचार गोंड आदि मौजूद रहे।
प्रतिनिधिमंडल ने डीएम के सामने सवाल किया कि खननकर्ता को नगवा गांव में खनन का पट्टा मिला था तब किस अधिकार के तहत वह पकरी गांव में खनन करा रहा था। यह भी संज्ञान में लाया गया खनन माफिया को बचाने के लिए एफआईआर करने में जानबूझ कर देर की गई और तथ्यों को छुपाया गया, जबकि अभी भी पकरी गांव में अवैध खनन के निशान छुपाने की कोशिश हो रही है। प्रतिनिधि मंडल ने आरोप लगाया कि रामसुंदर की हत्या खनन माफिया और स्थानीय पुलिस अधिकारियों के विरोध की वजह से की गई है।
इस मामले में पूर्व आईजी व ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता एसआर दारापुरी ने डीजीपी को पत्र भेजकर दुद्धी सीओ को तत्काल हटाने और उनके विरुद्ध शिकायत प्रकोष्ठ के माध्यम से जांच कराने की मांग की है। उन्होंने पत्र में कहा कि इस पूरे मामले में दुद्धी सीओ की भूमिका हर स्तर पर संदिग्ध रही है और उनके दुद्धी में रहते इस मामले की निष्पक्ष जांच नहीं हो सकती। इसलिए न्यायहित में तत्काल प्रभाव से उनको हटाया जाए। इस पत्र की प्रतिलिपि उन्होंने आईजी वाराणसी, डीआईजी मिर्जापुर और एसपी सोनभद्र को भी भेजी है।
उभ्भा नरसंहार में बिछ गई थीं आदिवासियों की लाशें
जंगल से घिरे इस इलाके में गोंड आदिवासी रहते हैं और यहां की ज़्यादातर ज़मीन वनभूमि है। जिस पर पीढिय़ों से आदिवासी काबिज रहे हैं। बाद में माफिया ने कागजातों में हेर-फेर कर कई जमीनें अपने नाम दर्ज करा लीं, जिसकी वजह से विवाद बढऩे लगे। पिछले 70 साल से खेत जोत रहे गोंड जनजाति के लोग प्रशासन से गुहार लगाते रहे लेकिन उन्हें जमीन पर अधिकार नहीं दिया गया।
इसी का नतीजा था उभ्भा नरसंहार। लगभग 90 बीघा जमीन पर कब्जे के लिए 10 आदिवासियों को मार दिया गया। मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि सालभर पहले हुई वारदात को अंजाम देने को 80 हत्यारे बंदूक, तलवार, कट्टा, गंडासा, फरसा, बगम, भाला जैसे हथियारों से लैस होकर 32 ट्रैक्टरों में बैठकर आए थे।
गांव के प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर ने दो साल पहले एक आईएएस अधिकारी से 90 बीघा जमीन खरीदी थी। लेकिन इस जमीन पर उसका कब्जा नहीं था। 17 जुलाई 2019 की बुधवार की सुबह यज्ञवत अपने 70-80 साथियों के साथ इस जमीन पर कब्जा करने पहुंचा। उसने जमीन को जोतना शुरू किया। आदिवासी ग्रामीणों ने विरोध किया और प्रधान के गुंडों के हमले में 3 महिलाओं समेत 10 लोगों की मौत हो गई।
इस घटना के बाद गोंड साहित्य व परंपराओं की अध्येता चंद्रलेखा कंगाली ने कहा, ‘इस समय की सत्ता में काबिज ताकतें एकजुट हैं। व्यवस्था को धीरे-धीरे नष्ट करने का काम चल रहा है। हम सरकार को यह बताना चाहते हैं कि हम स्वतंत्र भारत के नागरिक हैं- कोई गुलाम नहीं हैं कि कोई भी आए और हमें मार दे।’
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