अगर मोदी की चली तो बिना मुआवज़ा उजड़ जाएंगे हज़ारों आदिवासी परिवार, झारखंड में आंदोलन की तैयारी जोरों पर

अगर मोदी की चली तो बिना मुआवज़ा उजड़ जाएंगे हज़ारों आदिवासी परिवार, झारखंड में आंदोलन की तैयारी जोरों पर

By भारत भूषण चौधरी

केंद्र सरकार ने कमर्शियल खनन के लिए 41 कोयला ब्लॉकों, जिसमे झारखंड के 20 ब्लॉक शामिल हैं, की नीलामी की प्रक्रिया 18 जून को शुरू कर दी।

यह फिर से केंद्र सरकार के घोर पूंजीवाद को बेनकाब करता है। विडंबना यह है कि इस कदम को एक आत्मनिर्भर पहल के रूप में बताया जा रहा है, लेकिन यह ज़मीन मालिकों और ग्राम सभाओं के सभी ज़मीन के मालिकाना अधिकारों को छीन लेता है व और भी अधिक कॉर्पोरेट लूट के लिए प्राकृतिक संसाधनों को खोलता है।

यह चिंताजनक है कि झारखंड सरकार ने भी केंद्र सरकार के फैसले को समर्थन दिया है। हालाँकि राज्य ने 6-9 महीनों की स्थगन अवधि के लिए कहा है, जो दर्शाता है कि यह पूरी तरह से इस निर्णय का समर्थन नहीं करती है।

घरेलू कोयला उद्योग और बाजार पर कमर्शियल कोयला खनन की अनुमति देने के निर्णय का हानिकारक प्रभाव हाल के विभिन्न रिपोर्टों में स्पष्ट हो गया है।

आदिवासियों को उजाड़ने की योजना

इस निर्णय का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि यह ज़मीन के मालिक के जीवन, आस-पास रहने वाले लोग और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को अनदेखा करता है।

महासभा ने 17 जून को एक ऑनलाइन मीटिंग का आयोजन किया था जिसमें अनेक विशेषज्ञों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मोदी सरकार के इस निर्णय से झारखंड पर होने वाले प्रभाव पर चर्चा किया।

झारखंडियों का एक बड़ा हिस्सा, विशेष रूप से आदिवासी, कृषि और वन-आधारित आजीविका पर निर्भर हैं। झारखंड सबसे अमीर खनिज राज्यों में से है और इस तथ्य का गवाह है कि बड़े पैमाने पर खनन, विशेष रूप से कॉर्पोरेट हित में, लोगों की भलाई नहीं करता है।

कहने की जरूरत नहीं है कि खनन, विशेष रूप से कोयले, का महत्वपूर्ण पर्यावरण और मानव लागत है। घरेलू और विदेशी कॉर्पोरेट खनन संस्थाओं के लिए राज्य खोलना आजीविका और पर्यावरण को और नष्ट कर देगा।

सरकार द्वारा समर्थित खनन कंपनियां, हर समय पर्यावरणीय पतन की जाँच करने के उद्देश्य से लागू कानूनों का उलंघन करती हैं। राज्य भर में सैकड़ों अप्रकाशित खदानें इस बात की गवाह हैं।

यह निर्णय कई विधानों और संवैधानिक प्रावधानों का भी उल्लंघन करता है, जिनका उद्देश्य गरीबों, हाशिए पर रहने वाले लोगों और आदिवासियों को स्वशासन (“आत्मनिर्भर”) का अधिकार देता है।

ग्राम सभाओं से पूछा तक नहीं

पेसा और पाँचवी अनुसूची के प्रावधान स्पष्ट रूप से ग्राम सभा को गाँव सम्बंधित निर्णय लेने का प्राथमिक निकाय परिभाषित करते हैं।

समता के फैसले ने स्पष्ट रूप से आदिवासियों को अपनी भूमि में खनन करने का अधिकार दिया है, यदि वे ऐसा चाहते हैं।

इसके अलावा, 2013 के अपने ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट की लोढ़ा पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा कि खनिजों का मालिकाना अधिकार ज़मीन के मालिकों का होना चाहिए।

इसके अलावा, वन अधिकार अधिनियम स्पष्ट रूप से वन को ग्राम सभा की सामुदायिक संपत्ति के रूप में परिभाषित करता है।

केंद्र सरकार ने प्रासंगिक ग्राम सभाओं के साथ कमर्शियल कोयला खनन की नीलामी की योजना पर चर्चा करनी भी ज़रूरी नहीं समझा। व्यावसायिक लूट के लिए कोयला खदानों को खोलना कोयला श्रमिकों के अधिकारों को भी और कमजोर करेगा।

झामुमो, कांग्रेस और राजद के गठबंधन को पहले की रघुवर दास सरकार की जन-विरोधी और कॉर्पोरेट-समर्थक नीतियों के खिलाफ बड़ा जनादेश दिया गया था।

यह उम्मीद की जाती है कि राज्य सरकार लोगों की जमीन पर जबरन अधिग्रहण या उनकी सहमति के बिना उनकी जमीन पर खनन के खिलाफ लड़ाई में लोगों के साथ खड़ी रहेगी।

मनमाना फैसला थोप रही मोदी सरकार

लॉकडाउन के दौरान भी कई कोयला खनन कंपनियों ने जबरन भूमि अधिग्रहण व अपने लीज के विस्तार की कोशिश की।

ज़मीन के जबरन अधिग्रहण और कोयला खनन के लिए ज़मीन के पट्टे का अवैध विस्तार के खिलाफ राज्य के विभिन्न कोनों में पहले से ही कई संघर्ष चल रहे है।

खनन के मुद्दे पर कोई भी बहस इस सवाल से शुरू करने की जरूरत है कि क्या उस क्षेत्र के लोग खनन चाहते हैं या नहीं।

यदि लोग और ग्राम सभा खनन करना चाहते हैं, तो ज़मीन के मालिक और ग्राम सभाओं की सहकारी समितियों को अपने आप से खनन और संबद्ध गतिविधियों को करने के लिए पूंजी और तकनीकी मदद के साथ सरकार द्वारा समर्थन दिया जा सकता है।

ग्राम सभाओं ने वन और वन-आधारित उत्पादों के प्रबंधन की अपनी क्षमता का प्रभावी ढंग से प्रदर्शन किया है। महासभा प्राकृतिक संसाधनों के सामुदायिक स्वामित्व में दृढ़ता से विश्वास करती है।

साथ ही, किसी भी प्रकार के खनन के लिए कृषि भूमि और जंगलों का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।

विरोध की तैयारी

आज जब केंद्र सरकार लोगों और ग्राम सभाओं के परामर्श के बिना, कमर्शियल खनन के लिए कोयला ब्लॉकों की नीलामी करने वाली है, तो तमाम संगठन इसका विरोध कर रहे हैं।

झारखंड जनाधिकार महासभा ने प्रभावित क्षेत्र की सभी ग्राम सभाओं से अपील की है कि वे मोदी सरकार के फैसले का विरोध करें और खनन गतिविधियों को शुरू करने की अनुमति ना दें।

महासभा लोगों के साथ मिलकर जमीन पर खनन गतिविधियों का विरोध करेगी।

हम मांग करते है कि राज्य सरकार कमर्शियल खनन और सरकार के कोयला ब्लॉक के खनन की नीलामी के फैसले के खिलाफ कड़ा रुख अपनाएगी, कानूनों और विधानों को लागू करेगी जो लोगों के प्राकृतिक संसाधनों और स्व-शासन के अधिकारों की रक्षा करते हैं और एक वैकल्पिक गैर-शोषक दृष्टि पेश करे।

(लेखक झारखंड जनाधिकार महासभा से जुड़े हैं जोकि सामाजिक कार्यकर्ताओं और 30 जन संगठनों का एक मंच है जिसका गठन अगस्त 2018 में किया गया था।)

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Workers Unity Team