मारुति आंदोलन : एक दशक से जारी संघर्ष, जेल और जमानत के मायने
By रामनिवास
वर्ष 2011 में जब मारुति मजदूरों का यूनियन बनाने के लिए संघर्ष शुरू हुआ तब उतने ही निरंकुशता के साथ प्रबंधन ने दमन किया। हफ्तों, महीनों हड़ताल करके बैठना पड़ा। कई सारे साथियों को सस्पेंड कर दिया गया, कई दिनों तक भूखे रहना पड़ा लेकिन संघर्ष चलता रहा और अंततः संघर्ष की जीत हुई और फरवरी माह के अंतिम सप्ताह में यूनियन का पंजीकरण हुआ जिसे मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन 1923 के नाम से जाना गया।
उस दौरान संघर्ष एक मिसाल पेश कर रहा था। संघर्ष के दौरान न सिर्फ मारुति मानेसर के मजदूर ही लड़ रहे थे बल्कि अन्य कंपनियों की यूनियन जो केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के साथ संबंधित है वह भी खुलकर सहयोग में आई। मारुति मजदूरों की इस लड़ाई में बहुत सारी कंपनियों में सहयोगी हड़ताल हुई। मानेसर से गुड़गांव तक कई बार बहुत जोरदार प्रदर्शन किए गए। इस संघर्ष के चलते कई छोटी कंपनियों में भी यूनियन पंजीकरण की फाइल लगाई गई।
इतने बड़े संघर्ष के दबाव के चलते कोई भी प्रबंधक नहीं चाहता था कि उनकी कंपनी में भी संघर्ष हो। इससे कई सारी कंपनियों में यूनियन को मान्यता दे दी गई जिसमें मानेसर, धारूहेड़ा और बावल तक की कंपनियां शामिल थी।
वह दौर मजदूर आंदोलन का एक महत्वपूर्ण दौर था जिसमें मजदूरों को सफलता हासिल हो रही थी लेकिन मारुति सुजुकी मानेसर में यूनियन गठन के बाद प्रबंधकों के सामने बहुत बड़ी चुनौती बन गई थी कि इस यूनियन को किस प्रकार से हैंडल किया जाए।
क्योंकि यह यूनियन न सिर्फ ट्रेड यूनियन की लड़ाइयां तक सीमित रही बल्कि इसने अपने प्लांट के अंदर चलित गैरकानूनी ठेका प्रथा के खात्मे की आवाज उठाई और समान काम समान वेतन के ऊपर लगातार वार्ता चलाई। वेतन वृद्धि समझौते में भी सबसे पहले यह शर्त रखी गई कि जब तक प्लांट से ठेकेदारी प्रथा का खात्मा नहीं होता या सभी मजदूरों को समान काम समान वेतन नहीं मिलता तब तक हम दूसरी किसी बात पर चर्चा नहीं करेंगे।
इस तरह से इस जुनून को तोड़ने के लिए प्रबंधन ने अनेक प्रकार के षड्यंत्र रचाये, जिसमें 18 जुलाई का षड्यंत्र भी शामिल था जिसका सहारा लेकर कंपनी प्रबंधन ने लगभग ढाई हजार मजदूरों को काम से बाहर निकाल दिया। उनमें से डेढ़ सौ मजदूरों को जेल के अंदर डाल दिया गया। यह मजदूर वर्ग के ऊपर बहुत बड़ा हमला था जिसको मजदूर वर्ग ठीक तरह से संभाल नहीं पाया। अंततः इसका नकारात्मक प्रभाव पूरे क्षेत्र के ऊपर पड़ना शुरू हो गया ।
मारुति मजदूरों के जेल में जाने पर ओद्यौगिक क्षेत्र पर प्रभाव
जिस तरीके से मारुति मजदूरों के संघर्ष का सकारात्मक प्रभाव पूरे औद्योगिक क्षेत्र के मजदूरों पर पड़ा, उसी प्रकार से मारुति मजदूरों के दमन का प्रभाव भी पूरे औद्योगिक क्षेत्र के ऊपर नकारात्मक रूप से पड़ा। 150 मजदूरों के जेल में चले जाने के बाद अन्य कंपनियों के मजदूरों ने जिस तरीके से लड़ाई को आगे बढ़ाना चाहा, संगठित होना चाहा और यूनियन बनाने का प्रयास किया तब उसको रोकने के नए हथकंडे के रूप में इस दमन का सहारा लिया।
अन्य कंपनी के प्रबंधक मारुति मजदूरों के ऊपर बनाई गई अपनी डॉक्यूमेंट्री दिखाकर यही दर्शाते थे कि अगर आप यूनियन बनाने के लिए संगठित होंगे तो आपका अंततः वही हश्र होगा जो मारुति के मजदूरों का हुआ है। आप को जेल के अंदर डाल दिया जाएगा या जिस तरीके से बर्खास्त मजदूर सड़कों पर घूम रहे हैं उसी तरीके से आपको सड़कों पर घूमना पड़ेगा।
इस तरीके से एक डर का माहौल पूरे उद्योग क्षेत्र के अंदर कायम किया गया और मजदूरों को संगठित होने पर लगाम लगाई गई। बहुत सारी यूनियनों को खत्म कर दिया गया। गुड़गांव से बावल तक कई कंपनियों के उत्पादन को दूसरी जगह पर स्थापित कर दिया।
कई सारी कंपनियों में क्लोजर और पर्सियाल क्लोजर करके मजदूरों को जबरन वीआरएस दी गई। स्थाई सदस्यों की संख्या लगभग समाप्त के कगार पर ला दी गई। आठ कंपनियां इस औद्योगिक क्षेत्र से पलायन कर गई और उम्रदराज हो चुके मजदूरों को बेरोजगार होकर घर बैठना पड़ा ।
मारुति मानेसर के मजदूरों पर प्रभाव
गैर कानूनी छंटनी-बर्खास्तगी के बाद मारुति के निकाले गए मजदूर प्रोविजनल वर्किंग कमेटी के बैनर तले इकट्ठा हुए और संघर्ष को एक नया रूप दिया। मीडिया द्वारा फैलाये गए दुष्प्रचार कि मारुति के मजदूरों ने मैनेजर को जिंदा जला दिया, दूसरे अफसरों को मारने की कोशिश की गई, को ऐसे प्रस्तुत किया गया कि मारुति गुजरात चली जाएगी और यहां से रोजगार ख़तम हो जाएगा।
इस प्रकार के दुष्प्रभाव को रोकने के लिए हम सब मजदूरों ने हरियाणा के साथ-साथ देश भर में प्रदर्शन किए, नुक्कड़ नाटक, सभाएं साइकिल रैली, पैदल जत्थे आदि एक लंबे संघर्ष के बाद जनता के मन से इस दुष्प्रचार को समाप्त करने के प्रयास किए गए। लेकिन प्रबंधक नहीं चाहते थे कि बर्खास्त मजदूरों का प्लांट में काम करने वाले मजदूरों के साथ कोई तालमेल रहे।
इस कारण जो मजदूर उत्पादन के अंदर शेष बच गए थे कंपनी प्रबंधन ने उनकी वेतन वृद्धि इतनी ज्यादा कर दी कि 3 साल में 3 गुना वेतन बढ़ा दिया गया। जिस प्रकार से पहले उत्पादन का दबाव रहता था उत्पादन का दबाव कम कर दिया गया, पहले किसी भी मजदूर को पानी पीने का भी समय नहीं मिलता था, बाथरूम जाने का समय नहीं मिलता था अब सभी मजदूरों को 20 मिनट प्रतिदिन आराम के लिए समय दिया गया, रिलीविंग सिस्टम चालू कर दिया गया।
मजदूरों को तीन वेतन वृद्धि समझौतों के दौरान एक लाख के आसपास तक वेतन दिया जाने लगा। बाहर के मजदूरों का जो संघर्ष था वह अंततः फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों के काम आया और उनको एक सम्मानजनक जिंदगी जीने का वातावरण प्राप्त हुआ।
मारुति मजदूरों की जमानत का प्रभाव
आजीवन कारावास की सजा काट रहे 13 मारुति मजदूरों में से नवंबर 2021 से फरवरी 2022 में जमानत मिलना शुरू हुआ जिनमें से अबतक 7 साथियों को जमानत मिली। यह जमानत पूरे मजदूर वर्ग के लिए एक उत्साह का पर्याय बन सकती है। मजदूर वर्ग अगर इन साथियों से सीख ले तो यह अपने आप में एक बहुत बड़ा सबक है कि 10 साल सजा काटने के बाद भी यह साथी मजदूर वर्ग से विमुख नहीं हुए और मजदूर वर्ग के खिलाफ नहीं गए।
जिस तरीके से मारुति के मजदूरों ने इस पूरे संघर्ष को समेटा वह भी काबिले तारीफ रहा लेकिन जो साथी लगभग 10 साल की सजा काटकर बाहर आए हैं मजदूर वर्ग को चाहिए कि उनसे प्रेरणा लेकर एक नए संघर्ष का आगाज करें। इन साथियों की हौसलाअफजाई करें और अन्य कारखानों में जहां मजदूर लड़ना चाहते हैं या असंगठित हैं वहां पर एक कहानी या उदाहरण के तौर पर इन्हें पेश करें ताकि दूसरे मजदूरों में संघर्ष के खिलाफ अराजकता या निराशा ना जाए।
बेशक जेल से जमानत पर आए यह साथी आज उस रूप में संघर्ष में शामिल ना हो सकें लेकिन 10 साल तक इनका अपने साथियों पर विश्वास करके चलना कभी भी प्रबंधन व प्रशासन के सामने घुटने न टेकना एक बहादुरी की मिसाल पेश करता है। मजदूर वर्ग के पास बहुत कम ऐसे किस्से हैं जिन्हें वह अपनी आंखों से देखकर प्रेरणा ले सकता है।
पूर्व में घटित इतिहास जो रस्म अदायगी के तौर पर मजदूरों को बताया जाता है उस रूप में मजदूर उससे प्रेरणा नहीं ले पाते जिसके बजाय अपने आसपास अपनी आंखों देखी घटना से वह प्रेरित हो सकें। औद्योगिक क्षेत्र की यूनियनों और ट्रेड यूनियनों को एकजुट होकर इन साथियों की हौसला अफजाई के लिए अलग-अलग तरह से मजदूरों के बीच संदेश देना चाहिए ताकि भविष्य में मजदूर वर्ग के सिपाही लड़ने से पीछे न हटे।
(राम निवास 2012 में मारुति संघर्ष के लिए बनी और अबतक पीड़ित मज़दूरों के लिए संघर्षरत मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन, प्रोविजनल कमेटी के अहम सदस्य हैं)
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