बीपीसीएल के निजीकरण के ख़िलाफ़ बिफरे कर्मचारी, हड़ताल कर दिया अल्टीमेटम
सार्वजनिक क्षेत्रों में निजीकरण की सरकारी मुहिम से कर्मचारियों ने जबर्दस्त उबाल है। इसी कड़ी में भारत पेट्रोलियम की यूनियनों ने एकजुट होकर सरकार की नीति के ख़िलाफ़ दो दिनी हड़ताल कर के अल्टीमेटम दिया है।
बीपीसीएल के कर्मचारियों की 15 यूनियनों से जुड़े करीब 4,800 कर्मचारियों ने 7 और आठ सितम्बर को 48 घंटे की हड़ताल का आयोजन किया।
उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों के कारण देश आर्थिक दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गया है।
देश में कुछ नया निर्माण करने की जगह पहले से लाभ कमाने वाली सरकारी संपत्तियों को औने पौने दामों पर कारपोरेट घरानों के हवाले किया जा रहा है।
प्रदर्शनकारी कर्मचारियों ने कहा कि बीपीसीएल का पिछले पांच साल का लाभ 35 हजार 182 करोड़ रुपये है और 19 हजार 603 करोड़ रुपये सरकार को टैक्स दिया है।
बाजार मे कंपनी की पूंजी 1 लाख करोड़ रुपये है, जिसमें भारत सरकार की हिस्सेदारी 53.3 प्रतिशत है। पूरे देश में बीपीसीएल की 1997 पेट्रोल पंप है। कच्चे तेल की शोधन क्षमता 33 मिलियन टन है।
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पिछले पांच साल में भारत सरकार को बीपीसीएल से 28 हजार 558 करोड़ रुपये राजस्व मिला। जबकि बीपीसीएल को बेचने से मिलने वाली अनुमानित राशि महज 60 से 70 हजार करोड़ रुपये ही है।
सालाना लगभग 8 हजार करोड़ रुपये का लाभ देने वाली इस कंपनी को बेचने के लिए मोदी सरकार एड़ी चोटी का जोर लगा रही है।
देश की संपत्ति को इस तरह मेटने का हर हाल में विरोध जरूरी है। इसके लिए बड़ी लड़ाई को तैयार रहना होगा।
सरकार बीमा कंपनी एलआईसी की 25% हिस्सेदारी को बेचने के लिए आईओपी लाने जा रही है। इसके अलावा आईआरसीटीसी की भी 20% हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया शुरू होने वाली है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नवंबर 2019 में बीपीसीएल, एयर इंडिया, शिपिंग कॉर्प ऑफ इंडिया और ऑन लैंड कार्गो मावर कॉनकोर में सरकार की हिस्सेदारी की बिक्री को मंजूरी दी थी।
रेलवे, कोल, खदान से लेकर बिजली, बैंक सबका निजीकरण तेज गति पकड़ चुका है। सरकार ने कई कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी 51 फीसदी से भी कम करने का फैसला लिया है।
कर्मचारी संघ और ट्रेड यूनियनें इसका पुरज़ोर विरोध कर रही हैं लेकिन मोदी सरकार निजीकरण को और तेज़ करने पर तुली हुई है।
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