पुलिस हिरासत में मज़दूर पत्रकार को कंपनी के ‘गुंडों’ ने पीटा, पत्रकार ही गिरफ़्तार, शांतिभंग का मुकदमा
हरियाणा में मज़दूरों के एक प्रदर्शन को कवर करने गए मज़दूर पत्रकार नरेश कुमार की पुलिस के सामने पिटाई, गिरफ़्तारी और मुकदमा दर्ज किए जाने के ख़िलाफ यूनियन कार्यकर्ताओं ने फरीदाबाद डीसी ऑफिस के सामने सोमवार को धरना प्रदर्शन कर ज्ञापन दिया।
प्रदर्शन में आए लोगों ने मज़दूर पत्रकार नरेश कुमार पर लादे गए नाजायज मुकदमों को तुरंत वापस लिए जाने और वर्लपूल कंपनी के मज़दूरों को न्याय दिलाने की मांग की है। इस बीच ट्रेड यूनियन काउंसिल ने नरेश कुमार के साथ एकता ज़ाहिर किया है और उनकी गिरफ़्तारी की निंदा की है।
नरेश कुमार बीते कुछ महीनों से मज़दूर समाचार नामक एक चैनल चला रहे हैं और एनसीआर, खासकर हरियाणा के औद्योगिक इलाकों में वालंटियर रिपोर्टिंग करते हैं। वर्कर्स यूनिटी के लिए भी वो रिपोर्ट करते रहे हैं।
बीते सप्ताहांत फरीदाबाद में स्थित ह्वर्लपूल कंपनी के 1100 ठेका मज़दूर वेतन कटौती को लेकर आक्रोषित थे और काम बंद कर फैक्ट्री के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे। सूचना पाकर नरेश कुमार वहां पहुंचे और फेसबुक लाईव किया। इस दौरान इंकलाबी मज़दूर केंद्र के संजय मौर्य और खीमानंद के साथ कई सारे ट्रेड यूनियन एक्टिविस्ट पहुंचे थे।
मज़दूरों ने काम तो बंद कर दिया था, लेकिन न तो लेबर कमिश्नर या स्थानीय थाने को इस बारे में कोई शिकायत दी थी और ना ही उन्हें पता था कि कहां जाएं, हालांकि कंपनी में परमानेंट मज़दूरों की एक यूनियन है।
नरेश कुमार ने वर्कर्स यूनिटी से बातचीत में कहा कि मज़दूरों को असमंजस में देखते हुए उन्होंने संगठित और व्यवस्थित रूप से अपनी मांग रखने की उन्हें सलाह दी।
नरेश कुमार के अनुसार, “जब मैं पहुंचा तो मज़दूर काम बंद कर फैक्ट्री के बाहर छोटे छोटे समूहों में बंटे हुए थे। उन्होंने अपने बीच से किसी प्रतिनिधि को बातचीत के भी नहीं भेजा। कवर करने के बाद उन्होंने मुझसे सलाह मांगी और मैंने उन्हें कानूनी तरीका बताया। मैंने कहा कि गेट के बाहर बैठे रहने की एक सीमा है, क्या आप लोगों ने डीएलसी को इसकी इत्तली दी है? अगर नहीं दी है तो आपको इकट्ठा होकर डीएलसी के पास जाना चाहिए और ज्ञापन देना चाहिए।”
नरेश कुमार कहते हैं, “मज़दूरों के साथ मेरी बातचीत मैनेजमेंट को गवारा नहीं था और जब पुलिस मौके पर पहुंची तो वो मज़दूरों से बातचीत करने की बजाय कंपनी के अंदर गई और आधे घंटे बाद जब वो बाहर निकली तो मेरे ऊपर हमलावर हो गई। मैनेजमेंट के लोगों का आरोप था कि मैं ही मज़दूरों को भड़का रहा हूं। जबकि मैं एक शुभचिंतक के तौर पर वहां गया था। वैसे भी मज़दूरों की खबरें बहुत कम कवर की जाती हैं। ”
नरेश कुमार का कहना है, “हो सकता है कि मैनेजमेंट के इशारे पर पुलिस ने ऐसा किया हो क्योंकि गेट से निकते ही एसएचओ ने कहा- ‘डालो इसे मेरी गाड़ी में।’ जिस समय पुलिस मुझे पकड़कर गाड़ी में डाल रही थी, कंपनी के गुंडे मुझे पीछे से लात मार रहे थे। और यह सब मुजेसर धाने के एसएचओ के सामने हो रहा था।”
वो कहते हैं, “पुलिस ने मुझ पर शांति भंग करने की धाराएं लगा कर मुकदमा कायम कर दिया। लेकिन एसएचओ के सामने मुझे गुंडे पीट रहे थे, ये शांति भंग नहीं था। यही नहीं जब पुलिस मुझे थाने ले गई, उसने मेरा मोबाइल, वैलेट छीन लिया और किसी को फोन नहीं करने दिया। ये माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश का घोर उल्लंघन है।”
पुलिस ने मुजेसर थाने में नरेश कुमार को एक बजे दोपहर से लेकर रात 9 बजे तक अवैध रूप से बैठाए रखा। उसके बाद उनपर मुकदमा दर्ज कर रात भर थाने में रखा। गिरफ़्तारी के 24 घंटे बाद फरीदाबाद के एक परिचित वकील ने उनकी ज़मानत का प्रबंध किया और अभी भी वो अपने सामान के लिए का चक्क लगा रहे हैं।
असल में ह्वर्लपूल कंपनी ने ठेका मज़दूरों को सात दिन की छुट्टी दे दी थी, लेकिन इस मनमानी छुट्टी का पैसा भी काट लिया। इसका मज़दूरों ने प्रतिवाद किया। हालांकि जिस दिन मज़दूरों ने काम बंद किया उसी दिन शाम तक उनका मैनेजमेंट से समझौता हो गया और वे काम पर लौट गए।
फरीदाबाद लघु सचिवालय पर हुए प्रदर्शन में शामिल सत्यवीर ने कहा कि मैनेजमेंट के दबाव के आगे मज़दूर झुक गए और खबर है कि मैनेजमेंट ने सात दिन का वेतन तो नहीं दिया लेकिन आगे से ऐसा न करने का वादा किया है।
इफ़्टू सर्वहारा से जुड़े ट्रेड यूनियन एक्टिविस्ट सिद्धांत ने कहा कि ‘सरकार शूट द मैसेंजर यानी खबर देने वाले का ही दमन करने की नीति अपना रही है और यह बेहद खरतनाक है।’
सचिवालय पर हुए प्रदर्शन में इफ़्टू सर्वहारा के सत्यवीर, सिद्धांत, विदुषी, विजय, धनंजय, इंकलाबी मजदूर केंद्र के दीपक, नीतेश, मज़दूर मोर्चा के प्रतिनिधि, ट्रेड यूनियन काउंसिल फरीदाबाद के सदस्य और अन्य दर्जनों लोग शामिल हुए।
बीते कुछ सालों से सरकारें मज़दूरों के दमन का तरीका लगातार कड़ा करती जा रही हैं। अब हालात ये हो गए हैं कि मज़दूरों के असंतोष, उनके धरने प्रदर्शन की खबर करने वाले पत्रकार भी निशाने पर आ गए हैं। बीते दिसम्बर में चेन्नई के पास श्रीपेरंबदूर औद्योगिक इलाके में फॉक्सकान कंपनी की लड़कियों के उग्र प्रदर्शन को कवर करने गई एक मज़दूर पत्रकार वैष्णवी को पुलिस ने न केवल गिरफ़्तार किया बल्कि उनका मोबाइल भी जब्त कर लिया जबकि वहां सेक्युलर कही जाने वाली डीएमके की स्टालिन सरकार है।
अभी हाल ही में उत्तराखंड में चुनाव कवर करने जा रहे जनज्वार के संपादक अजय कुमार की गाड़ी को बीच रास्ते में ही रोककर उसे चुनावी ड्यूटी में लगाने का फरमान सुना दिया गया। इसका प्रतिरोध करने पर अजय कुमार और उनके साथियों पर कई धाराएं लगा दी गईं।
हाल ही में पीयूसीएल और पत्रकारों के अधिकारों की बात उठाने वाली संस्था काज ने एक संयुक्त रिपोर्ट प्रकाशित कर बताया है कि बीते पांच सालों में अकेले यूपी में ही 12 पत्रकारों की हत्या कर दी गई और 138 पत्रकारों पर हमले हुए जिसमें सरकार की ओर से ही पत्रकारों पर मुकदमे दर्ज किए जाने के मामले शामिल हैं।
ये उन पत्रकारों के हालात हैं जो मुख्यधारा के समझे जाते हैं और राजनीति से लेकर तमाम सामाजिक मुद्दों पर काम करते हैं। मज़दूरों की ख़बर को ऐसे समय में सबके सामने लाना, जबकि मुख्यधारा की मीडिया ने भी लेबर बीट को बंद कर दिया है, मज़दूर पत्रकारों के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन गई है क्योंकि उन्हें कंपनी मालिक के कानून से भी लंबे हाथ, उसकी ताक़त, रसूख और राजनीतिक दलों और पुलिस सबसे एक साथ मुकाबिला करना होता है।
नरेश कुमार कहते हैं, “24 घंटे तक थाने में बंद करना, वालेट जब्त कर लेना, उसे लौटाने के लिए बार बार दौड़ाना, मालिक के गुंडों द्वारा पुलिस के सामने मेरी पिटाई करना, ये सब मुझे परेशान करने की कोशिश है। मुझे चुप कराने की ये कोशिश किसी काम नहीं आएगी क्योंकि मैं इसी तरह मज़दूरों की आवाज़ उठाता रहूंगा।”
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