लॉकडाउन के एक सालः वापस काम पर लौटे मज़दूरों के भाड़े का खर्च भी उनके वेतन से काट लिये कंपनियों ने
झारखंड के रहने वाले प्रवासी मज़दूर रामलाल सिंह को उनकी नियोक्ता कंपनी ने 8 अगस्त को फ्लाइट की टिकट बुक की और कहा कि आप काम पर लौट आयें।
रामलाल सिंह बेहद खुश थे। क्योंकि पूरे लॉकडाउन के दौरान रामलाल को बहुत ही खराब माली हालत का सामना करना पड़ा था। लेकिन रामलाल की ये खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं टिकी।
एक महीने बाद सिंह को यह जानकर झटका लगा कि उनके नियोक्ता कंपनी की दरियादिली एक कीमत पर आई है । कंपनी ने हवाई किराया के रूप में उनके 10,000 वेतन से 3,000 की कटौती कर ली।
ये हालत सिर्फ रामलाल की अकेले नहीं है बल्कि मज़दूरों के शोषण की ऐसी अंतहीन कहानियों की पूरी एक श्रृंखला है।
झारखंड सरकार के श्रम विभाग ने प्रवासी मज़दूरों की दुर्दशा को रेखांकित करते हुए एक रिपोर्ट तैयार की है, जिसके अनुसार नियोक्ता कंपनियों ने मज़दूरों को दुबारा काम पर बुलाने के लिए कराये गये टिकट के पैसों को खस्ताहाल मज़दूरों के मामूली वेतन से काटा है।
आकड़ों के मुताबिक कोविड महामारी के फैलाव को रोकने के लिए लगाए गये लॉकडाउन के बाद देश भर में 12 करोड़ से ज्यादा प्रवासी मज़दूरों को अपने घरों की ओर लौटना पड़ा था।
पिछले साल मार्च से जून के बीच लगाये गये हार्ड लॉकडाउन के समय सबसे ज्यादा परेशानी इन्हीं मज़दूरों को झेलनी पड़ी। बिना किसी सरकारी मदद के भूखे-प्यासे इन मज़दूरों को हजारों- हजार किलोमीटर की दूरी पैदल,साइकिल या निजी व्यवस्था कर तय करनी पड़ी थी।
हांलाकि मज़दूरों के भारी विरोध और बदतर होते हालात के बाद सरकार को ट्रेन चलाने पर मजबूर होना पड़ा था। लेकिन इस दौरान ट्रेनों के बदइंतजामी की भी पोल खुल गई।
झारखंड सरकार के आकड़ों के मुताबिक इस दौरान लगभग 9 लाख झारखंड के प्रवासी मज़दूर अकेले मार्च-जुलाई में लौटे।
श्रम विभाग का कहना है कि हमने इन मामलों की तह तक जाने के लिए 24 घंटे की हेल्पलाइन की व्यवस्था की थी और हमे 100 ज्यादा ऐसे केस पता चले जहां मज़दूरों को वापस काम पर बुलाने पर खर्च हुए पैसे भी मज़दूरों से ही वसुले गये।
मुख्यमंत्री ने कहा कि “इन मामलों पर हमारी पैनी नज़र है और हमने कार्रवाई करने के तरीके पर विचार किया है।”
रामलाल ने बताया कि “उनके पास बेंगलुरु लौटने के अलावा कोई चारा नहीं था। मुझे काम करना था । इसलिए मुझे इतना बुरा नहीं लगता कि उन्होंने मेरे प्लेन के किराए को मेरे वेतन से काट लिया। मेरे घर में माता-पिता और एक जवान बेटा है, उन सब का पेट भरने के लिए मेरे पास काम का होना बेहद जरुरी था।”
रामलाल के मामले में उनके नियोक्ता कंपनी ने आंशिक रूप से उनके विमान किराए की कटौती की, लेकिन मोहम्मद इरशाद को मुंबई की एक गारमेंट फैक्ट्री में काम पर लौटने के लिए उन पर खर्च की गई पूरी रकम 4800 रुपये उन्हें खुद चुकानी पड़ी ।
इरशाद ने कहा कि “बस से जाने में 5000 रुपये का खर्च आ रहा था जबकि इसमें खाने-पीने का खर्च नहीं जुटा था। वही प्लेन से जाने में 4800 रुपये खर्च हो रहे थे। मेरे पास दुसरा कोई चारा नहीं था। काम नहीं होगा तो परिवार का पेट कैसे भरेंगे।”
झारखंड के श्रमायुक्त मुथु कुमार ने कहा कि “मज़दूरों के वेतन से की गई कटौती मज़दूरी भुगतान अधिनियम- 1936 का उल्लंघन करती है। हम उन सभी नियोक्ताओं को तत्काल कार्रवाई के लिए लिखेंगे। यह अमानवीय है कि लॉकडाउन के दौरान इतने बुरे वक्त में उन्होंने मज़दूरों के साथ ऐसा किया। यह कानूनों का स्पष्ट उल्लघंन है।”
झारखंड के पलामू के एक अन्य प्रवासी मज़दूर जुबैर अंसारी का कहना है कि “हमने जून के महीने में ये टिकट लिये थे जब टिकटों के दाम बहुत ज्यादा थे। हम आशा करते है कि सरकार हमारी मदद करेगी।”
महामारी के दौरान प्रवासी मज़दूरों के लिए हेल्पलाइन के लिए काम करने वाले जॉनसन टोपनो ने कहा कि “नियोक्ताओं ने प्रवासियों की कमजोरियों और संकट का फायदा उठाया है। उस वक्त इन मज़दूरों के हालत बेहद खराब थे और साथ ही उनके साथ रोजगार छिन जाने का भी खतरा था, उनके लिये ये बहुत ही जोखिम भरा समय था।”
(हिंदुस्तान टाइम्स की खबर से साभार)
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