वो महान मज़दूर नेता, जिसकी कही हुआ बातें आज भी सच हैं- ‘पूरी दुनिया को आज भी कम्युनिज़्म का भूत सता रहा है’
मज़दूर वर्ग के महान नायकों में से एक और कार्ल मार्क्स के अभिन्न दोस्त फ्रेडरिक एंगेल्स के जन्म की 200वीं वर्षगांठ पूरी दुनिया मना रही है।
एंगेल्स जर्मनी के राइन प्रान्त में स्थित बारमेन नगर में 28 नवंबर 1820 में जन्म लिया था। महज 24 साल की उम्र में ही ”इंग्लैंड में मजदूर वर्ग की दशा’ – जैसी अद्भुत प्रखरता से युक्त क्लासिकी किताब लिखी, जो उस समय पूरी दुनिया की आंख खोलने वाली साबित हुई।
मज़दूर वर्ग के महान नेता कार्ल मार्क्स के साथ उनकी दोस्ती की मिसालें आज भी दी जाती हैं। दोनों ने मिलकर ‘कम्युनिस्ट घोषणा पत्र’ लिखा, जिसका आज पूरी दुनिया के हर कोने में, हर भाषा में अनुवाद कर पढ़ा जाता है। आज भी मज़दूरों और समाज बदलने वालों के लिए ये बाइबिल की तरह है।
कम्युनिस्ट घोषणा पत्र की शुरुआती लाइनें आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उस समय थी। उदाहरण के लिए-
भारत में सामाजिक बदलाव के पुरोधा डॉ. भीम राव अम्बेडकर ने जिन पांच पुस्तकों को अनिवार्य रूप से पढ़ने की सलाह दी थी, उसमें ‘कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणा पत्र’ भी शामिल है।’
एंगेल्स ने अपनी किताब “इंग्लैंड में मजदूर वर्ग की दशा” में 1844 में इंग्लैंड के औद्योगिक इलाकों में आकर काम करनेवाले आयरिश प्रवासी मजदूरों की जो अकथ कहानी लिखी है, वही हाल आज बिहार, यूपी, झारखण्ड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और एमपी के प्रवासी मजदूरों की है।
एंगेल्स एक दार्शनिक, वैज्ञानिक, पत्रकार थे और मार्क्सवाद के संस्थापक कार्ल मार्क्स के साथी थे।
जर्मनी में धनी व्यवसायी मालिकों और प्रोटेस्टेंट परिवार में जन्मे, फ्रेडरिक शुरू से ही अन्यतम विद्रोही थे। उन्होंने नास्तिक मान्यताओं को रखा और इंग्लैंड में काम करने वाले गरीबों की स्थिति पर अपना पहला काम लिखने के लिए अपने परिवार को छोड़ दिया।
1845 में उनकी पहली पुस्तक, द कंडीशन ऑफ द वर्किंग क्लास इन इंग्लैंड, ने शहरी सर्वहारा वर्ग के प्रथम-वृत्तांत को उजागर किया। एंगेल्स ने ब्रिटिश औद्योगीकरण के भार के तहत श्रमिक वर्ग की पीड़ा का दस्तावेजीकरण किया।
इसमें, उन्होंने श्रमिक वर्ग की स्थितियों का वर्णन किया – बाल श्रम, असमान काम करने की स्थिति, और औद्योगिक कार्य दुर्घटनाओं से व्यापक विकृतियाँ आदि। उन्होंने यहां तर्क दिया कि मजदूर वर्ग पूंजीपति वर्ग के खिलाफ क्रांति का नेतृत्व करेगा क्योंकि समाज समाजवाद की ओर अग्रसर है।
एंगेल्स ने पूंजीवाद में महिलाओं के उत्पीड़न के सवालों पर विस्तार से चर्चा की।
उनकी पुस्तक “द ओरिजिन ऑफ द फैमिली, प्राइवेट प्रॉपर्टी एंड द स्टेट” ही सबसे पहले पूंजीवाद की अभिन्न प्रमुख विशेषता के रूप में विषम पारिवारिक संरचना और महिलाओं की अधीनता पर चर्चा की थी।
उन्होंने विस्तार से बताया कि “परिवार” वास्तव में एक सबसे हालिया आगमन था और अधिकांश सहस्राब्दियों के लिए न केवल यह अस्तित्व में था, बल्कि बहुपत्नी, सामूहिक समुदायों का आदर्श था।
वह अपने परिवार के पूंजीपति वर्ग के खिलाफ हो गए और वैचारिक और वैज्ञानिक सोच की स्थापना की जो दुनिया भर में श्रमिकों के क्रांतियों को प्रेरित करेगा।
अपनी संपत्ति के साथ, उन्होंने कार्ल मार्क्स के बहुत सारे काम किए, जिसमें उनकी प्रभावशाली ‘पूंजी’ भी शामिल थी।
अपनी एक और बहुचर्चित किताब ‘वानर से नर बनने में श्रम की भूमिका’ में एंगेल्स ने लिखा है, “राजनीतिक अर्थशास्त्रियों का दावा है कि दुनिया की सारी दौलत का स्रोत मेहनत। वास्तव में वह स्रोत है लेकिन प्रकृति के बाद। वही इसे यह सामग्री प्रदान करती है जिसे मेहनत दौलत में बदल देता है। पर वह इससे भी कहीं बड़ी चीज है। वह समूचे मानव अस्तित्व की प्रथम मौलिक शर्त है और इस हद तक है कि कहा जा सकता है कि इंसान को भी मेहनत ने ही बनाया है।”
साल भर पहले एंगेल्स की किताब वर्किंग कंडिशन इन इंग्लैंड (इंग्लैंड में मज़दूर वर्ग की दशा) किताब का हिंदी अनुवाद गार्गी प्रकाशन लेकर आया था। उस समय वर्कर्स यूनिटी ने वर्ल्ड बुक फ़ेयर में ही एक परिचर्चा आयोजित की थी।
उस परिचर्चा में वक्ताओं का कहना था कि अगर इस किताब से इंग्लैंड की जगह भारत कर दिया जाए या उसकी जगह इस देश के किसी राज्य का नाम रख दिया जाय तो वही हालात मिलेंगे जो आज से डेढ़ सौ साल पहले इंग्लैंड में मज़दूरों के हुआ करते थे।
और इसमें कोई शक नहीं कि असमान पूँजीवादी विकास के चलते भारत के राज्यों के मेहनतकश नौजवान ज्यादा उद्योग-धंधे वाले विकसित राज्यों और महानगरों में काम की तलाश में जाते हैं।
वे सबसे खराब सेवा शर्तों पर, सबसे कम मजदूरी पर, नारकीय और अमानवीय स्थितियों में रहते और काम करते हैं। अर्थव्यवस्था की सबसे निचली पायदान पर खड़े ये मेहनतकश जितना पाते हैं, उससे कई गुना ज्यादा कमाकर मालिकों की तिजोरी भरते हैं।
औद्योगिक दुर्घटनाओं में, भवन निर्माण में, सीवर या टैंक में मरनेवाले मजदूरों में सबसे ज्यादा संख्या इनकी ही होती है। वे जहाँ भी जाते हैं, जी तोड़ मेहनत करते हैं, अकूत मूल्य योगदान करते हैं। बदले में इनको अपमान, तिरस्कार और दमन-उत्पीड़न के सिवा क्या मिलता है?
गुजरात में प्रवासी मजदूरों के साथ जो हो रहा है वह पहले भी असम, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में हुआ है। फर्क इतना ही है कि गुजरात मे यह हमला कहीं ज्यादा संस्थावद्ध और संगठित है।
जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र के नाम पर नफरत और हिंसा फैलानेवाली फासीवादी ताकतें आज देशी-विदेशी पूंजीपतियों के हक में खुलकर काम कर रही हैं। उनके खिलाफ मेहनतकशों की एकता कायम करना और लड़ना बेहद जरूरी है। लेकिन इस दुर्दशा की असली जड़ पूँजीवाद है। उसे ही उखाड़ना इसका अन्तिम समाधान है।
एंगेल्स ने – 6 अगस्त 1895 को अंतिम सांस ली और अंत तक मज़दूर वर्ग के लिए अपनी ज़िंदगी को समर्पित किया।
मार्क्स की 14 मार्च 1883 में जब मौत हुई तो एंगेल्स ने इंग्लैंड में उनकी कब्र पर अपने परम दोस्त के बारे में एक संक्षिप्त भाषण दिया था। वो भाषण आज उस दोस्ती के लिए याद किया जाता है जिसके केंद्र में मज़दूर वर्ग मुक्ति थी, जिसमें इतिहास के सबक थे और भविष्य की अंतरदृष्टि थी।
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