जब भारत में पहली बार मनाया गया मई दिवसः इतिहास के झरोखे से-6
By सुकोमल सेन
नवंबर 1927 में कानपुर मे संपन्न ए.आई.टी.यू.सी. के आठवें सम्मेलन में महासचिव की रिपोर्ट में मुबंई और भारत के कई अन्य स्थानों पर मई दिवस मनाए जाने का उल्लेख है। सन् 1927 से ही भारत में संगठित रुप से मई दिवस मनाने की शुरूआत हुई।
भारत में मई दिवस मनाने की शुरूवात वास्तव में बहुत देर से हुई। अमरीकी मजदूर वर्ग ने उन्नीसवीं सदी के छठे दशक में आठ घंटे कार्यदिवस के लिए आंदोलन शुरू किया था।
यह आंदोलन 1 मई 1886 को शिकागो में अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया। पुलिस की बर्बरता ने चार मजदूरों की जान ले ली।
इसके बाद मुकदमा चलाने का प्रहसन हुआ और अमरीकी मजदूर वर्ग के चार नोताओं पारसंस, स्पाइज, फिशर और एंगेल को फांसी पर चढ़ा दिया गया।
शिकागो की घटना के तीन वर्ष बाद विश्व के विभिन्न देशों के समाजवादी सोशलिस्ट आंदोलन के नेता, बास्टिल के किले को जनता द्वारा ठहाए जाने की शानदार विजय की 100वीं वर्षगाठ मनाने के लिए 14 जुलाई 1889 को पेरिस में एकत्र हुए थे।
सोशलिस्टों के इस पेरिस सम्मेलन ने एक प्रस्ताव पारित कर दुनिया भर के मजदूरों से 1 मई 1890 को अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन का दिवस मनाने की अपील की।
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कैसे हुई मई दिवस की शुरुआत
इसके बाद यूरोप के तमाम देशों में 1890 मई दिवस मनाया गया। तभी से 1 मई को हर वर्ष दुनिया भर के मजदूरों द्वारा अंतरराष्ट्रीय एकजुटता के रुप में मई दिवस मनाया जाता है।
हालांकि भारत में एटक की अगुवाई में सन् 1927 में पहली बार मुंबई, कोलकाता, मद्रास और अन्य मजदूर केंद्रों पर मई दिवस मनाया गया, लेकिन इससे पहले भी बिखरे तौर पर मई दिवस मनाने का उल्लेख मिलता है।
सन् 1926 में भी मुंबई मे मई दिवस मनाया गया। इस आयोजन की मुख्य शक्ति म्युनिसिपैलिटी के कर्मचारी थे।
इस मई दिवस के प्रदर्शन का नेतृत्व एन.एम.जोशी, एस.एस मिराजकर, एस.बी घाटे और अन्य नेताओं ने किया।
लेकिन मार्क्सवाद में विश्वास रखने वाले क्रांतिकारी सिंगरावेलू चेट्टियर ने मद्रास में 1923 में सर्वप्रथम अपनी पहलकदमी से मई दिवस मनाया था।
मद्रास से प्रकाशित हिंदू अखबार ने मई दिवस मनाए जाने का समाचार छापा। समाचार के अनुसार, मद्रास में मई दिवस के दो सभाएं हुईं एक, उच्च न्यायालय के सामने समुद्र के किनारे जिसकी अध्यक्षता सिंगरावेलू चेट्ट्यर ने की और दूसरी त्रिपनीकेन बीच पर जिसकी अध्यक्षता एस. कृष्णास्वामी ने की।
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अख़बारों की ज़ुबानी
द हिंदू ने लिखा ‘वहां मजदूरों की उत्साहपूर्ण भीड़ एकत्र हुई।’ द हिंदू ने मई दिवस सभा में सिंगरावेलू चेट्टियर के भाषण के अंश से अपनी रिपोर्ट समाप्त की-
“एम सिगरावेल चेट्टियर ने मई दिवस का महत्व बताते हुए कहा कि 1 मई विश्व के तमाम मजदूरों के लिए एक पवित्र दिन है।
भारत के मजदूरों को भी इस प्रकार से मई दिवस मनाना चाहिए कि दुनिया के अन्य भागों के मजदूर उनके सहयोग को पहचान सकें और हम खुद अपनी शक्ति का औचित्य साबित कर सकें।
हमें मजदूर कार्यालय के लिए नींव के पत्थर की स्थापना करना चाहिए, ताकि आने वाले वर्षों में यह भव्य कार्यकाल बन सके और देश के शोषित-पीड़ित मजदूरों के लिए एक शक्ति का स्रोत बन सके। उनको वास्तव में यह महसूस हो कि वह भी एक वर्ग हैं।”
मद्रास मेल में एक विपरीत टिप्पणी छपी-
“नई पार्टी के संदर्भ में वक्ता ने कहा कि केवल ‘सद्भावना रखने वाले’ मजदूर ही मई दिवस मना रहे थे और इसलिए कोई चिंता की बात नहीं थी।
यह सभा समान उद्देश्य के प्रति एकजुटता दिखाने के लिए थी। विकास के स्वाभाविक क्रम में संघर्ष करते हुए मजदूर सत्ता पर नियंत्रण कर लेंगे।”
(भारत का मज़दूर वर्ग, उद्भव और विकास (1830-2010) किताब का अंश। ग्रंथशिल्पी से प्रकाशित)
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