सरकारी स्कूलों पर ताला, ग़रीब बच्चों को छठी से ही मज़दूर बनने की ट्रेनिंगः शिक्षा का सर्वनाश-4
By एस. राज
NEP अधिक छात्रों को शिक्षा से जोड़ने के नाम पर शिक्षा प्रणाली को ही बर्बाद करने की तरफ कदम बढ़ाता है।
देश में ड्रॉपआउट बच्चों (जिन्हें शिक्षा पूरी होने से पहले ही स्कूल छोड़ देना पड़ता है) की बड़ी संख्या से निपटने के लिए इसमें जिस तरीके के बैंडएड ‘उपाय’ सुझाए हैं उनसे और बड़ी समस्याएं पैदा होंगी।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, जो केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध है, को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
NEP के तहत ड्रॉपआउट बच्चों को वापस सार्वजानिक शिक्षा प्रणाली में शामिल करने के बजाए वैकल्पिक एवं नवीन शिक्षा केंद्र में शामिल किया जाएगा। (अनुच्छेद 3.2)
इसके अतिरिक्त, ओपन एंड डिस्टेंस लर्निंग प्रोग्राम (ODL), जो कि नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ ओपन स्कूलिंग (NIOS) व राज्यों के ओपन स्कूलों में होते हैं, को और बढ़ावा मिलेगा ताकि वंचित छात्र उसमें दाखिला लें, ना कि रेगुलर/व्यवस्थित कोर्स व स्कूलों में। (अनुच्छेद 3.5)
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सरकारी स्कूलों पर ताला
NEP में गैर-सरकारी फिलैंथ्रोपिक संस्थानों को स्कूल बनाने व शिक्षा प्रदान करने का प्रोत्साहन देते हुए शिक्षा के वैकल्पिक मॉडल को बढ़ावा देने की बात हुई है।
ऐसे संस्थानों, जिसमें आरएसएस जैसे संगठन भी आ सकते हैं, के लिए विनियम आसान बना दिए जाएंगे और इनके लिए इनपुट पर कम और परिणाम/आउटपुट पर ज्यादा ध्यान दिया जाएगा।
ताकि यह वैकल्पिक मॉडल के तहत आधिकारिक रूप से अपने प्रकार की ‘शिक्षा’ प्रदान कर सकें और अपने स्कूलों का नेटवर्क खड़ा कर पाएं। इन क़दमों से व्यवस्थित शिक्षा प्रणाली की जगह वैकल्पिक अनौपचारिक शिक्षा प्रणाली को सरकार प्रोत्साहन देगी। (अनुच्छेद 3.6)
छात्रों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति से निरपेक्ष सभी के लिए एक सार्वजानिक सामान्य स्कूल प्रणाली का कम से कम जिक्र पिछली सभी शिक्षा नीतियों और कमीशनों में था, हालांकि उसे किसी भी सरकार ने लागू नहीं किया।
परंतु NEP में इस लक्ष्य को त्याग ही दिया है और भिन्न तबकों के छात्रों के लिए भिन्न शिक्षा प्रणाली की वकालत करता है।
NEP में व्यावसायिक व उच्चतर शिक्षा के लिए लाइट लेकिन टाइट विनियम की बात की गई है, जो कि केवल विनियम ढीला करने के लिए एक मनोहर वाक्यांश है। (अनुच्छेद 9.3(ज))
NEP में बड़े स्कूल क्लस्टर/कॉम्प्लेक्स बनाने का प्रस्ताव है जिसका अर्थ होगा एक बड़े क्षेत्र में एक ही बड़े स्कूल का होना। इसके लिए संसाधन दक्षता के नाम पर कई छोटे सरकारी स्कूलों को बंद किया जाएगा।
ऐसे समाज में जहां बड़ी संख्या में बच्चों को घर से स्कूल तक की लंबी दूरी के कारण स्कूल छोड़ना पड़ता है, वहां लक्ष्य होना चाहिए था कि स्कूल नेटवर्क को और बड़ा बनाया जाए और छोटे से छोटे इलाकों में भी गुणवत्तापूर्ण स्कूल खोले जाएं, लेकिन इसके उलट सरकार अधिकांश सरकारी स्कूलों को क्लस्टर बनाने के नाम पर बंद करेगी।
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छठी कक्षा से मज़दूर बनने की ट्रेनिंग
यह प्रस्ताव इस मुद्दे पर मौन है कि इतने स्कूल बंद होने पर विशाल गरीब मेहनतकश तबके के बच्चों का क्या होगा जो इन क्लस्टरों की उनके घरों से और अधिक लंबी दूरी के कारण स्कूल छोड़ने पर मजबूर हो जाएंगे, और उन शिक्षकों-कर्मचारियों का क्या जो बड़ी संख्या में रोजगार से हाथ धो बैठेंगे। (अनुच्छेद 7.6)
व्यावसायिक (वोकेशनल) शिक्षा को NEP में कई जगहों पर सक्रिय रूप से बढ़ावा देने की बात की गई है। यहां तक कि इसके लिए एक अलग अध्याय बनाया गया है (अनुच्छेद 16)।
हालांकि गुणवत्तापूर्ण व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण संपूर्ण बुनियादी स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद प्रदान करना उचित भी है, लेकिन NEP ने इसे माध्यमिक शिक्षा से ही जोड़ दिया है और छठी कक्षा से ही व्यावसायिक शिक्षा शुरू करने का प्रस्ताव दिया है, जिसके बाद दसवी कक्षा में बच्चों को स्कूली शिक्षा से हट कर कोई व्यवसायिक कोर्स चुनने का ‘अवसर’ मिलेगा। (अनुच्छेद 4.2)
इससे ना ही केवल गरीब व मेहनतकश तबकों के छात्रों को बुनियादी स्कूली शिक्षा प्राप्त करने में अड़चनें आएंगी, बल्कि दसवीं कक्षा के बाद जो छात्र अपनी सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के कारण ऐसे भी स्कूल छोड़ कर कोई छोटा-मोटा काम तलाशने के लिए मजबूर होते थे।
उनकी मजबूरी को बरकरार रखते हुए उसे ‘व्यावसायिक प्रशिक्षण’ प्राप्त करने का ‘अवसर’ का नाम दे कर पर्दे के पीछे छुपा दिया जाएगा।
जाहिर है, छठी कक्षा से मिलने वाली यह व्यावसायिक शिक्षा निम्न/प्रवेश स्तर से ज्यादा और कुछ भी प्रदान नहीं करेगी, जो कि गरीब-मेहनतकश घरों के छात्रों को छोटे-मोटे निम्न कार्य के लिए ही तैयार करेंगे।
इससे संकटग्रस्त पूंजीपति वर्ग के लिए एक तरफ अनौपचारिक व आकस्मिक मजदूरों की एक सेना तैयार होगी जो कि सस्ते दामों पर बिना सुविधा व अधिकार की मांग किए अपनी श्रम शक्ति बेचेगी, वहीं दूसरी तरफ केवल मुट्ठीभर अभिजात व उपरी वर्गों के छात्रों को मोटी रकम वाली सफेद कॉलर की नौकरियां मिलेंगी।
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डिज़िटल के नाम पर ग़रीब छात्रों को शिक्षा प्रणाली से बाहर करने की मंशा
इनके अतिरिक्त, ऑनलाइन और डिजिटल शिक्षा का भी NEP में एक अलग अध्याय है (अनुच्छेद 24)। ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली को सरकार द्वारा ना केवल NEP में बल्कि अपनी अन्य नीतियों व वक्तव्यों में व्यापक तौर पर प्रसारित किया जा रहा है।
हालांकि सुनने में डिजिटल शिक्षा का आगमन एक प्रगतिशील कदम की तरह प्रतीत होता है, आइये एक बार जमीनी सच्चाइयों पर नजर डालते हैं।
राष्ट्रीय पतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (NSSO) की 2017-18 की एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार भारत में कुल ऐसे घरों में, जिसमें युवा भी रहते हैं, से महज 8% घरों में कंप्यूटर के साथ इंटरनेट लिंक मौजूद है।
ग्रामीण इलाकों में स्थिति और भी अधिक गंभीर है। इस स्थिति को नजरअंदाज करते हुए देश में प्रगति व आधुनिकीकरण के नाम पर छात्रों पर डिजिटल शिक्षा थोपी जा रही है।
कुछ यूनिवर्सिटियों में तो ऑनलाइन माध्यम से नए सत्र शुरू भी हो गए हैं, वहीं कई संस्थान एडमिशन के लिए देशव्यापी ऑनलाइन परीक्षा आयोजित करने की योजना बना रहे हैं।
बिना छात्रों की समस्याओं को सुने और उनके निवारण के लिए ठोस कदम उठाए हुए, ऑनलाइन और डिजिटल शिक्षा को थोपने से गरीब व मेहनतकश तबके से आने वाली छात्रों की एक विशाल आबादी शिक्षा व्यवस्था से बाहर धकेल दी जाएगी और शिक्षा से ही वंचित कर दी जाएगी। (क्रमशः)
(पत्रिका यथार्थ से साभार)
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