मारुति मानेसर में जूनियर इंजीनियर ने की खुदकुशी की कोशिश, कटर से अपनी गर्दन काटी
By राम निवास
मारुति सुजुकी मानेसर प्लांट में मजदूरों का उत्पीड़न व शोषण थमने का नाम नहीं ले रहा है। बीते 5 अक्टूबर को एक जूनियर इंजीनियर ट्रेनी ने प्रबंधन के उत्पीड़न से परेशान होकर आत्महत्या करने की कोशिश की।
गौरतलब है कि 2011 में तीन बड़ी हड़तालों के बाद वर्कर अपनी यूनियन बनाने में सफल हुए थे। लेकिन 18 जुलाई 2012 की घटना के बाद बड़े पैमाने पर गिरफ्तार कर मजदूरों को जेल में डाल दिया गया।
आज भी 13 वर्कर आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे हैं।
लेकिन इन तमाम घटनाओं के बावजूद, वर्करों के अनुसार, मानेसर प्लांट में काम का दबाव और उत्पीड़न जारी है।
ट्रेनी इंजीनियर से लंबे समय से रात्रि पाली में काम लिया जा रहा था
हालांकि यूनियन बनने के बाद यूनियन के सदस्यों व ठेका मजदूरों का मैनेजमेंट उस तरीके से उत्पीड़न नहीं कर पा रहा है।
लेकिन 5 अक्टूबर की घटना ने यह सिद्ध कर दिया कि जिस तरीके से वर्ष 2011 से पहले ही मारुति कामगारों का उत्पीड़न व शोषण करती थी वह आज भी किसी न किसी रूप में निरंतर जारी है।
कौशल नाम का यह युवक लुधियाना से संबंध रखता है और 1 वर्ष के इंजीनियरिंग ट्रेनिंग के लिए मारुति मानेसर प्लांट में प्रशिक्षण ले रहा है।
प्रबंधन अपनी मर्जी के मुताबिक उससे रात्रि पाली में लगातार कार्य करवाता रहा है।
बताया जाता है कि अचानक आंख लग जाने के कारण इस युवक को तलब किया गया और मानसिक दबाव बनाया गया।
ट्रेनी इंजीनियर के दोस्तों ने बताया कि पांच अक्टूबर को इसके डीपीएम ने ऐसी ही घटना के कारण इसे डांटा और जनरल शिफ्ट तक रुकने के लिए बोला।
किस तनाव में था वर्कर?
वर्कर ने मना किया और कहा कि वो रात से ही ड्यूटी पर है और यदि जनरल शिफ्ट तक रुकेगा तो उस दिन जनरल शिफ्ट ही करेगा। इसके बाद इसके डीपीएम ने उसे डांटा और ज़बरदस्ती आने का दबाव बनाया।
उसके दोस्तों ने बताया कि ये उसे बर्दाश्त नहीं कर पाया और उच्च प्रबंधन को ईमेल करके इसने अपनी जान लेने की कोशिश की और कटर से अपना गला काट लिया।
फिलहाल इसका इलाज अभी रॉकलैंड हॉस्पिटल, मानेसर में चल रहा है।
चूंकि यह मामला मारुति की शाख या इज्जत से जुड़ा है इसलिए कहीं पर भी किसी मीडिया में इसकी कोई खबर नहीं है।
वहीं यदि किसी मजदूर की लापरवाही से कुछ हो जाता है तो पूरे देश में पूंजीवादी मीडिया चिल्ला चिल्ला कर उसको बदनाम कर देता है।
इस घटना से आज भी साफ़ है कि किस तरीके से 2011 से पहले मारुति प्रबंधन मजदूरों को परेशान करता रहा है मुनाफे की अंधी हवस में कंपनियां मजदूरों को एक यंत्र की तरह इस्तेमाल करती है, लगातार उनसे 12 घंटे से ज्यादा काम लेती है।
काम के हालात और दबाव से परेशान वर्कर
इस दौरान उनसे छोटी सी भी गलती हो जाए तो उन्हें कंपनी से बाहर निकाल सकती है, लगातार काम के दबाव के कारण किसी मजदूर की आंख लग जाए या नींद आ जाए तो वह अपने हाथ पांव व जान भी गंवा देता हैं। कारखाने में लगातार ऐसी घटनाएं घटती रहती हैं।
चूंकि वह मजदूर है इसलिए उनकी जान की कोई क़ीमत नहीं है और इसीलिए समाज में उनकी घटना पर कभी शोक व्यक्त नहीं किया जाता।
मुनाफे की हवस में कम्पनियां लगातार अपने मजदूरों से डबल शिफ्ट में कार्य लेती हैं। तमाम परिस्थितियों में उन्हें अतिरिक्त समय कार्य करना पड़ता है।
यदि कोई मजदूर अतिरिक्त समय रुकने से मना कर देते हैं तो मैनेजमेंट उन्हें बाहर निकाल फेंकती है।
मजदूरों की मौत होना समाज के लिए भी बड़ी बात नहीं है। आए दिन मजदूर मर रहे हैं चाहे वो कंपनियों में हो, या सफाई करते समय गटर में, या कुंआ खोदते समय खेत में कहीं पर भी मजदूर की मौत हो लेकिन एक घर को छोड़कर किसी पर कोई फर्क नहीं पड़ता।
इन संवेदनशील मुद्दों पर सोचना और संघर्ष करना अगुआ मज़दूरों के लिए ज़रूरी है।
(राम निवास, प्रोविजनल कमेटी, मारुति के सदस्य रहे हैं। मारुति से बर्खास्त किए जाने के बाद मज़दूरों के अधिकारों के लिए मुखर हैं। वो वर्कर्स सॉलिडेरिटी सेंटर के प्रेसिडेंट भी हैं।)
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