प्रवासियों को रोजगार दिलाने में कारगर नहीं पुरानी योजनाएं, सरकारों को लीक से हटकर सोचने की दरकार

प्रवासियों को रोजगार दिलाने में कारगर नहीं पुरानी योजनाएं, सरकारों को लीक से हटकर सोचने की दरकार

कोरोना के चलते देश एक बार फिर जान और जहान बचाने के दोराहे पर आ खड़ा हुआ है। प्रधानमंत्री ने इस बार लॉकडाउन का फैसला राज्यों पर छोड़ दिया है।  हालांकि स्थितियां ज्यादा खराब होने पर देशव्यापी लॉकडाउन का फैसला भी लिया जा सकता है।

दिल्ली और महाराष्ट्र जैसे राज्य पहले ही लॉकडाउन लगा चुके हैं और पिछली बार की तरह इस बार भी इन राज्यों से मजदूरों का पलायन शुरू हो चुका है। जीवनयापन से पहले जीवन को वरीयता दिया जाना जरूरी है लेकिन जिस देश में करोड़ो प्रवासी मजदूर बसते हों, उसके लिए इकोनॉमी को चलाए रखना भी आवश्यक है। इसके लिए ऐसी नीतियों की जरूरत होगी जो प्रवासी मजदूरों के लिए बेहतर हों।

सरकार को देखना पड़ेगा कि अधिकांश प्रवासी मजदूर किन राज्यों का रुख करते हैं। उनके जन्मस्थानों पर किस तरह का रोजगार पैदा किया जा सकता है और सरकार इसमें किस तरह से मदद कर सकती है।

इंफरेंशियल सर्वे स्टेटिक्स एंड रिसर्च फाउंडेशन यानी आईएसएस एंड आरएफ और आईसीआरआईईआर ने यूपी, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे छह राज्यों के 14 जिलों में 2917 प्रवासी मजदूरों पर एक अध्ययन किया। इन राज्यों में पूरे देश के दो तिहाई प्रवासी मजदूर रहते हैं। ये वही मजदूर थे जो कोविड की पहली लहर के दौरान अपने गांव, घर लौटे थे। यह सर्वे तीन चरणों में, जुलाई-अगस्त 2020, नवंबर – दिसंबर 2020 और फरवरी 2021 के अंतिम सप्ताह में किया गया।

इसमें पाया गया कि शहर और इंडस्ट्रियल कस्बों को छोड़कर लौटने वाले 35.4 फीसद मजदूरों के पास गांव लौटने पर उनके पास कोई काम नहीं था। इनमें से 35.8 फीसद मजदूरों के पास खेती से जुड़ा कोई अपना काम था, जो संभवत: संयुक्त परिवारों में रहते थे। 9.7 फीसद मजदूरों के पास खेतों में मजदूर बनने का काम था जबकि 4.6 फीसद मजदूरों के पास मनरेगा में काम करने का विकल्प था।

12.2 फीसद मजदूरों के पास खेती के अलावा अन्य दूसरे कामों में मजदूरी करने के अवसर थे। इसमें पाया गया कि बिहार के प्रवासियों में सबसे कम बेरोजगारी यानी 3.6 फीसद थी। पश्चिम बंगाल में यह सबसे ज्यादा, 54.9 फीसद थी। बेरोजगारी का औसत फीसद 35 था। जन्मस्थान पर प्रवासी मजदूरों के लिए खेती से जुड़े स्वरोजगार का औसत 36 प्रतिशत था। झारखंड में यह 67 तो पश्चिम बंगाल में दस फीसद था। पांच महीने बाद भी यह स्थिति ज्यादा नहीं बदली है।

सरकार को देखना होगा कि मनरेगा जैसी योजना से प्रवासी मजदूरों को ज्यादा लाभ नहीं मिल रहा। या तो मनरेगा से उन्हें काम नहीं मिल रहा या यह इसमें बदलाव लाने और नई योजनाएं बनाने की जरूरत है।

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)

 

Amit Singh

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.