क्वारंटाइन सेंटर हैं या जेल!

क्वारंटाइन सेंटर हैं या जेल!

By आशीष सक्सेना

कोरोना संक्रमण थामने को गांव पहुंच रहे प्रवासी मजदूरों को गांव में क्वारंटाइन किया जा रहा है, लेकिन उनको वहां जेल जैसा माहौल मिल रहा है। कई बार तो जेल से भी खराब अनुभव हो रहा है।

गोंडा के ही इटियाथोक क्षेत्र के दरियापुर माफी गांव के परिषदीय विद्यालय में क्वॉरंटाइन हुए लगभग ढाई दर्जन प्रवासी मजदूरों के भोजन का प्रबंध दो दिनों बाद तक स्थानीय प्रशासन ने नहीं कराया। जानकारी के मुताबिक बीते दिनों मुंबई से गांव लौटे 33 मजदूरों को ग्राम प्रधान ने गांव के प्राथमिक विद्यालय में क्वॉरेंटाइन कराया।

लगातार दो दिनों तक भूख प्यास से तड़प रहे लोगों को जब कोई मदद न मिली तो यूपी डायल 112 पर अपनी शिकायत दर्ज कराई। असहाय परदेसी युवकों ने पुलिस को बताया कि पहले तो ग्राम प्रधान ने उन्हें खाने-पीने की पूरी सहूलियत मुहैया कराने का वादा किया , लेकिन अब कहीं दिखाई नहीं पड़ रहे। गांव के बाकी लोगों और परिजनों ने भी संक्रमण के डर से मुंह मोड़ लिया।

कुछ अरसे पहले उत्तरप्रदेश के लखीमपुर खीरी में एक प्रवासी मजदूर को क्वारंटाइन सेंटर से निकलने पर पुलिस ने इतना पीटा कि उसने खुदकुशी कर ली। उसकी खता ये थी कि क्वारंटाइन सेंटर में खाना नहीं होने से घर आकर खा लेता था। एक दिन घर पर भी आटा नहीं था तो वह चक्की पर गेहूं पिसाने चला गया और उसी दौरान पुलिस पहुंच गई। उसे सरेआम चक्की पर ही बेहरहमी से पीटा गया।

हालत ये है कि ज्यादातर क्वारंटाइन सेंटरों पर बुनियादी सुविधाएं नहीं है। खाने या पानी की ही नहीं, लेटने और मच्छरों से बचने का भी कोई इंतजाम नहीं है। गोंडा में एक प्रवासी मजदूरों को सांप ने ही काट लिया, जिससे उसकी मौत हो गई। ये आलम देहात के क्वारंटाइन सेंटरों में ही नहीं, शहरी क्षेत्रों में भी हैं। शहरों में शेल्टर होम में सोशल डिस्टेंसिंग की परवाह किए बगैर बेहिसाब संख्या भरी जा रही है और खाने के नाम पर भी खानापूरी है।

क्वारंटाइन सेंटर में मजदूरों का हंगामा
उत्तरप्रदेश के बरेली में दिल्ली हाइवे स्थित डीपीएस स्कूल में क्वॉरंटाइन किए गए प्रवासी मजदूरों ने अव्यवस्था और घर जाने को लेकर हंगामा कर दिया। गुस्साए मजदूर स्कूल गेट पर समान लेकर सडक़ पर बैठ गए। सूचना पर पहुंची पुलिस ने आला अधिकारियों के निर्देश के बाद सभी को बसों रवाना कर दिया।

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ashish saxena