वर्कर्स यूनिटी हेल्पलाइन ने दो हज़ार मज़दूर परिवारों को मदद पहुंचाई, क्राउड फंडिंग से खर्च किए साढ़े चार लाख रु.
वर्कर्स यूनिटी हेल्पलाइन के मार्फ़त 21 अप्रैल तक क़रीब 4 लाख 60 हज़ार रुपये का राशन और अन्य मदद मज़दूरों और उनके परिवारों को पहुंचाई जा चुकी है।
हमारा आंकलन है कि अबतक वर्कर्स यूनिटी के फंड से और देश भर में स्थानीय नेटवर्क के ज़रिए क़रीब दो से ढाई हज़ार मज़दूर परिवारों को मदद पहुंचा पाने में हम कामयाब हुए हैं।
पहले लॉकडाउन में 15 दिन और 10 दिन का राशन वितरित किया गया, जबकि बाद में हफ़्ते और कुछ दिनों तक का राशन दिया गया।
दूसरे नेटवर्कों के ज़रिए क़रीब 100 परिवारों को यमुना खादर, (लक्ष्मी नगर के सामने) और खोड़ा कॉलोनी में पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश के क़रीब 300 प्रवासी मज़दूरों को 15 दिनों का राशन वितरित किया गया।
बताते चलें कि लॉकडाउन की घोषणा के बाद मज़दूरों की मदद के लिए वर्कर्स यूनिटी के साथियों ने 24 मार्च को वर्कर्स यूनिटी हेल्पलाइन की शुरुआत की थी।
क़रीब पांच दिनों तक बिना किसी फंड के हेल्पलाइन के मार्फ़त मज़दूरों की सूचनाओं का आदान प्रदान किया जाना और स्थानीय सक्रिय टीमों से तालमेल कर मज़दूरों की मदद का प्रयास किया जा रहा था।
इस दौरान क्राउड फंडिंग साइट ‘मिलाप’ के ज़रिए क़रीब ढाई लाख रुपये इकट्ठे हुए और दोस्तों मित्रों से सहयोग मिलना शुरू हुआ जिसके बाद मदद में तेज़ी आई।
24 मार्च के बाद मज़दूरों का जो रेला दिल्ली में उमड़ा तो हेल्पलाइन की टीम ने यूपी बॉर्डर पर आनंद विहार से लेकर लाल कुआं तक पैदल जाते मज़दूरों को पानी और अन्य खाने पीने की चीजें और दवाएं वितरित कीं।
हालांकि इस दौरान नागरिक समाज ने मज़दूरों की काफी मदद की। हर एक किलोमीटर पर खाना खिलाने वाले लोग थे, पानी का इंतज़ाम था। और ये नज़ारा दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश में ग़ाज़ियाबाद के लालकुआं तक था।
लेकिन जैसे ही दो चार दिन बीते और लॉकडाउन को और कड़ा कर दिया गया, लाखों मज़दूर जहां तहां फंस गए।
इसके बाद वर्कर्स यूनिटी का काम थोड़ा और चुनौतीपूर्ण हो गया क्योंकि न केवल एनसीआर से बल्कि देश अन्य औद्योगिक हिस्सों से भी संदेश आने लगे कि मज़दूर फंसे हुए हैं और उनके पास बस एक दो दिन तक का ही राशन बचा हुआ है।
हरियाणा
इस दौरान वर्कर्स यूनिटी हेल्पलाइन की पहलकदमी से हरियाणा में अपनी क्षमता भर बड़े पैमाने पर राशन वितरण का काम हाथ में लिया गया और मानेसर और गुड़गांव में प्रवासी मज़दूरों को राशन पहुंचाया गया।
काम की शुरुआत के तौर पर मानेसर के कासन की ढाढ़ी गांव में करीब 65 मज़दूर परिवारों के लिए तीन जगह मज़दूर रसोई की शुरुआत कराई गई।
मानेसर में ही नाहरपुर गांव में कुछ मज़दूर परिवारों को राशन दिलाया गया।
गुड़गांव में सेक्टर 39 में मेदांता अस्पताल के पीछे झारसा गांव में खाली प्लाटों पर बनी टीन की तीन झुग्गियों में राशन पहुंचाने का काम किया गया जिनमें कुल 58 परिवार और लगभग 180 लोग थे।
गुड़गांव सेक्टर 35 के पास कादीपुर औद्योगिक इलाक़े में क़रीब 500 प्रवासी मज़दूरों की ओर से मिली सूचना पर वहां गुड़गांव के नागरिक एकता मंच और मज़दूर सहयोग केंद्र के ज़रिए पके हुए खाने की व्यवस्था की गई। यहां क़रीब हफ़्ते भर तक 500 फूड पैकेट रोज़ाना पहुंचा।
इसी बीच 17 अप्रैल को गुड़गांव के सेक्टर 53 के बीचोबीच स्थित सैकड़ों प्रवासी मज़दूरों की बस्ती में एक मज़दूर के आत्महत्या की ख़बर ने सबका दिल दहला दिया।
वर्कर्स यूनिटी ने इस ख़बर को प्रमुखता से प्रकाशित किया और इसको फ़ेसबुक लाईव के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की, जिसकी ख़बर चंडीगढ़ में हरियाणा के उच्च अधिकारियों तक पहुंची और प्रशासन ने वर्कर्स यूनिटी टीम की मदद से यहां सूखा राशन देने का प्रबंध किया।
इस ख़बर पर गुड़गांव प्रशासन ने वर्कर्स यूनिटी के साथ तत्काल संपर्क किया और तत्काल प्रबंध करने का आश्वासन दिया।
यही नहीं मानेसर सेक्टर-7 में स्थित इकोलाइट टेक्नोलॉजी कंपनी के वर्करों को फ़रवरी से तनख्वाह नहीं मिली थी क्योंकि विवाद चल रहा था और इसी बीच लॉकडाउन घोषित हो गया। इंकलाबी मज़दूर केंद्र ने इस ओर कोशिश की और यहां भी प्रशासन के हस्तक्षेप से इनकी फ़रवरी महीने की सैलरी मिल गई।
हरियाणा से जुड़ी कई ऐसी कहानियां हैं जहां हमने सीधे मदद पहुंचाई, रिपोर्टिंग के ज़रिए मज़दूरों की समस्याओं से प्रशासन को रूबरू कराया और व्यक्तिगत फंसे हुए लोगों को भी राशन आदि की मदद पहुंचाई।
दिल्ली
हेल्पलाइन के मार्फ़त दिल्ली के आनंद विहार, वसंत कुंज में जेजे कैंप, यूपी गेट, लक्ष्मी नगर, गाज़ीपुर, ओखला, यमुना खादर, गांधी नगर, महिपालपुर, कापसहेड़ा आदि जगहों पर राशन वितरण का काम किया गया।
लॉकडाउन के शुरू होते ही जब हज़ारों मज़दूरों का रेला दिल्ली यूपी बॉर्डर को पार कर रहा था उस समय दवा (पैरासीटामाल, दर्द की दवा और इलेक्ट्राल), पानी और भुना चना-पेठा, केला आदि का वितरण जाते हुए मज़दूरों को किया गया।
लेकिन जो मज़दूर रह गए और केजरीवाल सरकार की ओर से तमाम घोषणाओं और राशन देने के वादे ज़मीन पर नहीं उतरे तो हेल्पलाइन को रोज़ाना सैकड़ों ऐसे संदेश आने लगे जहां मज़दूरों को राशन की ज़रूरत थी।
गाज़ीपुर में क़रीब 50 मज़दूरों को वसंत विहार के जेजे बंधु कॉलोनियों में क़रीब 500 मज़दूरों को, ओखला में 150 मज़दूरों को, यमुना ख़ादर की झुग्गियों में 80 परिवारों को, गांधी नगर में 50 सिलाई कारीगरों को, महिलापालपुर में 7 कश्मीरी मज़दूरों को, डूंडाहेड़ा और कापसहेडा़ में क़रीब 125 मज़दूरों को दस दिन का राशन उपलब्ध कराया गया।
दिल्ली में केजरीवाल सरकार की ओर से जारी आधार कार्ड पर राशन की योजना को मज़दूरों के बीच प्रसारित करना और उन्हें पंजीकृत कराने में भी टीम ने मदद पहुंचाई।
यमुना खादर में जो 4 क्विंटल चावल और दाल वितरित किया गया वो गुजरात के पीपुल्स लिबरेशन पार्टी के मुखिया अभिषेक परमार की मदद से संभव हो पाया।
इसी तरह वसंत विहार में एक स्वतंत्र एनजीओ की भी मदद ली गई, जिसके सदस्यों में जाह्नवी और डॉ रज़ा शामिल हैं।
उत्तर प्रदेश
लेकिन राशन को लेकर सबसे अधिक हालत दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के इलाक़ों में ख़राब थी।
नोएडा और ग़ज़ियाबाद में खोड़ा कॉलोनी और प्रताप विहार के कांशीराम आवास में राशन वितरण का काम किया गया। नोएडा सेक्टर 15 के नया बांस में पश्चिम बंगाल के क़रीब 14 मज़दूर परिवार फंसे थे जिन्हें 15 दिनों का राशन दिया गया।
इसी तरह बिहार के सासाराम के 25 मज़दूर ग्रेटर नोएडा के कासना गांव में थे, जिन्हें हफ़्ते भर का राशन उपलब्ध कराया गया। ये कुल 50 के क़रीब मज़दूर थे लेकिन संपर्क करने में 24 घंटे की देरी के कारण इनमें क़रीब डेढ़ दर्जन मज़दूर पैदल ही सासाराम के लिए चले गए थे।
लेकिन मुख्य काम को नोएडा और दिल्ली से घिरे ग़ाज़ियाबाद के खोड़ा कॉलोनी में केंद्रित किया गया। यहां चार चरणों में क़रीब 300 मज़दूर परिवारों को 15 दिनों का राशन मुहैया कराया गया, जिनमें अधिकांश पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश से संबंध रखते हैं।
ग़ाज़ियाबाद में सिद्धार्थ विहार के कांशीराम आवास में उन 26 परिवारों को राशन वितरित किया गया जिनके पास राशन कार्ड नहीं था और आधार कार्ड आदि का फार्म भरे जाने के बाद भी उन्हें राशन नहीं मिला।
एनएच-24 पर नोएडा सेक्टर 62 और सीआरपीएफ़ कैंप के पास क़रीब 32 मज़दूर परिवार हैं, जिन्हें दवाएं और कुछ राशन उपलब्ध कराया गया। ये सभी मज़दूर परिवार मध्य प्रदेश के रहने वाले हैं।
नागपुर, चेन्नई, मुंबई, जम्मू, कोलकाता
लेकिन वर्कर्स यूनिटी हेल्पलाइन का काम यहीं नहीं रुका। कोआर्डिनेशन के लिए जो ह्वाट्सऐप ग्रुप बना उसमें दूर दराज़ और दूसरे शहरों में फंसे मज़दूरों के संदेश आने लगे।
शुरुआती दिनों में ही नागपुर में फंसे उत्तर भारतीय मज़दूरों का संदेश मिला और वहां स्थानीय ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं के ज़रिए उन्हें रसद पहुंचाया गया।
अभी भी दूर दराज़ से जो फ़ोन आ रहे हैं, उन्हें कोआर्डिनेशन के ज़रिए रसद पहुंचाने की कोशिश की जा रही है। इसी सिलसिले में चेन्नई, कोलकाता, मुंबई, नागपुर, लुधियाना, गुजरात के अहमदाबाद, जम्मू तक सीधे या स्थानीय टीमों के मार्फ़त मदद पहुंचाई जा चुकी है।
मुंबई के न्यू परेल में सैकड़ों मज़दूर फंसे हुए हैं, उनका संदेश मिला तो टीयूसीआई के नेता अरविंद नायर के मार्फ़त उनमें से कुछ मज़दूरों को राशन पहुंचाया गया।
इसी तरह जम्मू में बिहार के कुछ मज़दूर फंसे हुए थे जिन्हें स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं के ज़रिए मदद पहुंचाई गई।
लुधियाना में 40 मज़दूर हैं जिन्हें राशन की किल्लत होनी शुरू हो गई। ये संदेश हमें बरेली में मौजूद एक रेलवे यूनियन पीआरकेयू के नेता राकेश मिश्रा से पता चला और पंजाब में स्थानीय ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं के ज़रिए राशन का प्रबंध किया गया।
सैलरी बड़ी समस्या
लेकिन 10 अप्रैल तक बहुत से मज़दूरों की शिकायत आने लगी कि उन्हें मार्च महीने की सैलरी नहीं मिली है। इस संबंध में सैलरी की ख़बरों को तरजीह देनी शुरू की और कुछ जगह सफलता भी मिली।
इंकलाबी मज़दूर केंद्र के ट्रेड यूनियन एक्टिविस्ट और वर्कर्स यूनिटी हेल्पलाइन के सदस्य श्यामवीर की ओर से लगातार प्रशासन के संज्ञान में लाए जाने के बाद, हरियाणा के मानेसर में इकोलाइट कंपनी को क़रीब 150 मज़दूरों की फ़रवरी महीने की सैलरी देनी पड़ी।
इसी तरह जयपुर के एक ट्रक ड्राइवर ने फ़ोन कर हमें सैलरी न मिलने की परेशानी बताई। उसकी ख़बर प्रकाशित करने के बाद मालिक ने उसे घर बुलाया और बकाया वेतन का भुगतान किया।
इसी दौरान आठ अप्रैल को आईएमटी मानेसर में मारुति के मज़दूरों पर अलीहर गांव के दबंगों ने हमला बोल दिया। ये मामला तूल पकड़ता उससे पहले वर्कर्स यूनिटी ने घायल लड़कों का इंटरव्यू प्रसारित किया और ख़बर प्रसारित की, जिससे प्रशासन पर दबाव बना और आरोपियों की गिरफ़्तारी हुई।
वर्कर्स यूनिटी की टीम जहां भी गई, वहां खुद को सिर्फ राशन देने तक सीमित नहीं रखा बल्कि मज़दूरों की सैलरी और कमरे के किराए के बारे में भी पूछताछ की और कई मामले तो मौके पर ही हल कराए।
मोबाइल का बैलेंस तक ख़त्म
सरकार चाहे जो दावे करे ज़मीनी हालात इतने बदतर हैं और केंद्र और स्थानीय सरकारें इतनी धीमी गति से काम कर रही हैं कि हमारी कोशिशें ऊंट के मुंह में जीरे जैसी प्रतीत हो रही हैं।
दिल्ली में सभी को राशन देने की घोषणा के बाद भी राशन नहीं मिल पा रहा है। यूपी में भी आधार कार्ड को देखकर राशन देने का आदेश हुआ लेकिन ज़मीन पर भुखमरी की हालत बनी हुई है।
मज़दूरों के मोबाइल का बैलेंस ख़त्म होने से वे अपने क़रीबियों से भी मदद मांगने की स्थिति में नहीं रह गए हैं। ऐसे में वर्कर्स यूनिटी हेल्पलाइन पर कई ऐसे संदेश आए जिसमें फ़ोन रिचार्ज करने की गुजारिश की गई और सदस्यों ने कई मज़दूरों के फ़ोन रिचार्ज कराए।
दिल्ली के महिपालपुर में कश्मीर के सात मज़दूर फंसे हुए हैं। इनके बीच चार मोबाइल फ़ोन थे, जिनमें दो को इन्हें बेचना पड़ा तब जाकर पहले लॉकडाउन का खर्च चल पाया।
दूसरे लॉकडाउन में मोबाइल फ़ोन बेचने से पहले इन्हें मदद मिल गई और वो कुछ और दिन इस मुसीबत को टालने की स्थिति में हैं।
गुड़गांव में मज़दूर की आत्महत्या का मामला भी कुछ ऐसा है। मुकेश नामका ये मज़दूर अपना मोबाइल बेचकर परिवार के लिए राशन ले आया और फिर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।
मज़दूर घर जाना चाहते हैं
मुंबई से कुछ मज़दूरों का संदेश आया कि वो घर जाना चाहते हैं और सरकार से दरख़्वास्त करते हैं कि उन्हें पैदल ही जाने की इजाज़त दी जाए। ये सभी मज़दूर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के क्षेत्र गोरखपुर से सटे गोंडा के रहने वाले हैं और कीसी तरह सीएम योगी आदित्यनाथ से संपर्क भी साधने की कोशिश की।
इन मज़दूरों का संदेश मिला कि अगर 24 घंटे में उन्हें कोई मदद नहीं मिलती है तो वो मुंबई से गोंडा के लिए पैदल ही निकल पड़ेंगे।
अपनी जगहों पर फंसे मज़दूरों की हालत कमोबेश एक जैसी है और घर जाने की बेताबी अब बढ़ती जा रही है।
सूरत में फंसे हज़ारों मज़दूर सरकार से लगातार गुहार लगा रहे हैं कि उन्हें घर भेजा जाए। यही कारण है कि सूरत, मुंबई के बांद्रा जैसी जगहों पर मज़दूरों ने एकजुट होकर प्रदर्शन किया।
वर्कर्स यूनिटी हेल्पलाइन के सदस्यों का सर्विलांस
पिछले दिनों अज्ञात नंबरों से हेल्पलाइन के सदस्यों को कॉल आए, जिनमें फ़ोन करने वलों ने खुद को दिल्ली पुलिस से जुड़ा बताया और पूछताछ की। इसकी लिखित शिकायत दिल्ली सरकार को और पुलिस विभाग को की गई है।
इस बीच दिल्ली पुलिस की ओर से हेल्पलाइन के सदस्यों के पास फ़ोन आने लगे और पूछताछ बढ़ गई, बावजूद हम अभी फ़ील्ड में काम करना जारी रखे हुए हैं।
क्राउड फंडिंग और लोगों के सहयोग विशेषकर संतोष कुमार, रवींद्र गोयल, वासवी अग्रवाल, सुरेंद्र विश्वकर्मा, शांति राय जैसे सजग लोगों ने वर्कर्स यूनिटी को आर्थिक और अन्य तरह से मदद करते हुए हौसला अफ़जाई की जिसके कारण हेल्पलाइन टीम इतना कुछ कर पा रही है।
टीम के पास कर्फ्यू पास होने के साथ साथ इन लोगों ने दो कारें भी मुहैया कराईं जिससे पूरे एनसीआर में दौरा करना आसान हुआ। इन दोस्तों की हौसलाअफ़जाई के लिए हम आभारी हैं और तमाम बाधाओं के बावजूद हिम्मत बनी हुई है।
21 अप्रैल तक क़रीब 6,22,784/- रुपये वर्कर्स यूनिटी हेल्पलाइन के लिए फंड इकट्ठा हुआ था। इसमें अभी कुल 1 लाख 42 हज़ार रुपये मौजूद हैं और इसी के दम पर मदद को जारी रखा गया है।
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