यूपी में कैसे अस्पतालों का लोड कम किया योगी सरकार ने?
कोरोना की दूसरी लहर ने देश के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश को अपने आगोश में ले लिया है। हर जगह त्राहिमाम मचा हुआ है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्तर प्रदेश में बिगड़े हालात पर रिपोर्टिंग हो रही है।
लाजमी है कि इससे प्रदेश की योगी सरकार पर परिस्थिति को काबू करने का दबाव बन रहा है। लेकिन सरकार ने इसके समाधान की जगह इसे नजरअंदाज करने का रास्ता चुना है। दावा किया जा रहा है कि यूपी में अस्पतालों का लोड लगातार कम हो रहा है।
लेकिन नाम न जाहिर करने की शर्त पर यूपी के एक बड़े सरकारी अस्पताल में कोविड वार्ड के इंचार्ज एक अनुभवी डॉक्टर ने इस दावे के पीछे के खेल को समझाया।
सरकार ने टेस्ट करवाने किए बंद
डॉक्टर का कहना है कि अस्पतालों में ऐसा हालात हैं कि अगर आपके पास कोरोना की पॉजिटिव रिपोर्ट नहीं है तो आपका एडमिशन नहीं होगा और सरकार ने टेस्ट करवाने ही बंद करवा दिए हैं। अगर कुछ जगहों पर टेस्ट हो भी रहे हैं तो वहां लंबी लाइन है। टेस्ट होने में ही तीन चार दिन बीत जा रहे हैं और रिपोर्ट आने में हफ़्ते भर। ऐसे में संक्रमण से लेकर रिपोर्ट तक 10 दिन बीत जा रहे हैं तबतक अस्पताल में भर्ती होना नामुमकिन है।
इस फैसले ने टेस्ट की रिपोर्ट के आधार पर अस्पतालों में एडमिशन के लिए पहुंचने वाले लोगों की संख्या को लगभग सीमित कर दिया है। यही कारण है कि बीते एक हफ़्ते में अस्पतालों पर लोड कम हुआ है।
लेकिन इससे पहले योगी सरकार ने एक और काम किया, जिसकी खासी आलोचना हुई और अंततः आदेश वापस लेना पड़ा। ये आदेश था, अस्पतालों में भर्ती होने के लिए मेडिकल अफ़सर की अनुमति लेने की अनिवार्यता। लेकिन इस पर जब हल्ला हुआ तो सरकार ने इस फैसले को वापस ले लिया। फिर भी सरकारी अस्पतालों में इसे जारी रहने दिया गया।
ये भी एक कारण है जिससे अस्पतालों में आने वालों की संख्या कम हुई।
सीटी स्कैन और प्राइवेट पैथोलॉजी का सहारा
लेकिन जो पैसे वाले हैं, जिनकी पहुंच है वे आरटीपीसीआर की जगह सीटी स्कैन करा रहे हैं। उसमें फेफड़े में संक्रमण के लिहाज से पता चल जा रहा है कि करोना का संक्रमण कितना घातक हुआ है।
ऐसे में भर्ती होने के लिए सीटी स्कैन की रिपोर्ट कारगर साबित हो रही है।
यानी अब वही लोग पहुंच पा रहे हैं जो जो या तो सीटी स्कैन करवा सकते हैं या फिर किसी प्राइवेट पैथोलॉजी से आरटीपीसीआर करवा पा रहे हैं। इसमें पॉजिटिव आने वाले लोग ही अस्पतालों में भर्ती होने के लिए पहुंच रहे हैं। ये दोनों ही तरीके थोड़े महंगे हैं।
और इस तरह योगी सरकार अस्पताल में भर्ती होने वाले और ज़ाहिर तौर पर कोरोना से मरने वालों की संख्या को काफ़ी कम करने में सफलता हासिल की है।
बड़ी आबादी का हाल बेहाल
डॉक्टर ने आगे बताया, ”अस्पतालों के बाहर जो मरीज एंबुलेंस या ऑक्सीजन सिलेंडर के सहारे हैं अब उनके पास टेस्ट की रिपोर्ट ही नहीं है तो वो कहीं जा ही नहीं सकते हैं। बड़ी आबादी का यही हाल है। इसी तरह से पहले अस्पतालों में जो भीड़ नजर आ रही थी उसे कंट्रोल किया गया है।”
जो रिपोर्ट आ रही है उसमें लोग घरों में सड़कों पर या अस्पताल के सामने मर रहे हैं। एक बड़ी आबादी अपने घर पर ही रहकर इलाज़ करा रही है। ऑक्सीजन सिलेंडर और दवाओं का इंतज़ाम वो खुद कर रही है। इसलिए दवाओं और ऑक्सीजन सिलेंडर की कालाबाज़ारी धड़ल्ले से हो रही है।
लेकिन अगर इनकी ज़रूरत को लेकर कोई आवाज़ उठा रहा है, सरकार उस पर मुकदमे लाद दे रही है। अभी हाल ही में ज़रूरतमंदों को ऑक्सीजन पहुंचाने वाले एक व्यक्ति पर मुकदमा कर दिया गया। जो पत्रकार इस त्रासदी को दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, उन पर एफ़आईआर दर्ज की जा रही है।
इस संबंध में रायबरेली के तीन पत्रकारों पर मुकदमा दर्ज किया गया जिन्होंने उस ऑक्सीजन टैंकर के कानपुर भेजे जाने की ख़बर ब्रेक की थी, जो रायबरेली के कोटे में भेजा गया था।
यही नहीं लखनऊ से लेकर गोरखपुर तक के शमशान घाटों को टीन से ढंक दिया गया ताकि सैकड़ों की तादाद में जलती लाशों की कोई तस्वीर न ले सके। इस तरह बड़े पैमाने पर मरने वालों की ख़बरों को गायब कर दिया गया।
कम्युनिटी स्प्रेड की बात
शहर और कस्बे ही नहीं गांव गांव में लोग बीमार हैं, बिना दवा इलाज के मर रहे हैं। इस समय घर घर ये बीमारी पहुंच रही है और महामारी के कम्युनिटी स्प्रेड की स्थिति में आने की सभी वजहें ज़ाहिर हैं। कम्युनिटी स्प्रेड का मतलब है कि समाज का हर वर्ग इससे प्रभावित है और ये इतने बड़े पैमाने पर है कि अब ट्रेसिंग और क्वारंटाइन का समय नहीं रह गया है।
मौजूदा परिस्थिति के बारे में अनुभवी डॉक्टर का कहना है, ”इस समय कम्युनिटी स्प्रेड चल रहा है लेकिन सरकार इस बात को मानने के लिए तैयार ही नहीं है। हालात ये हैं कि लगभग हर घर में लोग या तो कोरोना पॉजिटिव हो चुके हैं या हो रहे हैं। बावजूद इसके सरकार इसे कम्युनिटी स्प्रेड नहीं मान रही है।”
लेकिन इसके पीछे भी सरकार की रणनीति वास्तविक स्थिति को छुपाने की मंशा अधिक है।
वो कहते हैं, “सरकार इसे जैसे ही मान लेगी वैसे ही पूरा सिस्टम बदल जाएगा। दरअसल कम्युनिटी स्प्रेड की परिस्थिति में कई तरह की सुविधाएं बढ़ानी होंगी और काफी हद तक सिस्टम बदल देना पड़ेगा। अस्पतालों में भर्ती करने के लिए आरटीपीसीआर की बाध्यता खत्म कर देनी होगी। जिसके भी लक्षण हों उन्हें सीधे अस्पताल लाइए और उनका इसी स्तर पर इलाज करिए। फिर जांच करना छोड़ देना पड़ेगा। उसकी जरूरत ही नहीं होगी।”
लेकिन योगी सरकार ने यूपी में महामारी से निपटने की बजाय, इससे निपटने वालों को निपटाने का तरीका अख़्तियार कर रखा है। उसने ऐसे तरीके अपनाए हैं जिससे अस्पताल में लोग पहुंच ही न सकें और जो घरों में मर रहे हैं उनकी ख़बर भी बाहर न आ सके।
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