क्या भारत सरकार दिवालिया हो चुकी है? बिना जीएसटी हिस्सेदारी राज्य कर्मचारियों की सैलरी भी संकट में
By गिरीश मालवीय
‘घर मे शादी है पैसे नही है’ ….जब भी मुझे नोटबन्दी के दो दिन बाद दिया गया नरेंद्र मोदी का भाषण याद आता है खून खौल जाता है।
आठ नवम्बर 2016 के शाम 8 बजे से भारत के दुर्भाग्य की शुरुआत हुई …..आखिर उसके प्रभाव को सरकार ने स्वीकार किया है।
वित्त सचिव अजय भूषण पांडे ने मंगलवार को संसदीय स्थायी समिति (वित्त) को बताया कि सरकार मौजूदा राजस्व बंटवारे के फार्मूले के अनुसार राज्यों को उनकी जीएसटी हिस्सेदारी का भुगतान करने की स्थिति में नहीं है।
वित्त सचिव के ऐसा कहे जाने पर वित्त मामलों की स्टैंडिंग कमेटी के सदस्यों ने सवाल किया कि सरकार राज्यों की प्रतिबद्धता पर किस तरह से अंकुश लगा सकती है?
नाम ना जाहिर करने की शर्त में एक सदस्य ने बताया कि इसके जवाब में अजय भूषण पांडे का कहना था, ‘अगर राजस्व संग्रह एक निश्चित सीमा से नीचे चला जाता है तो जीएसटी एक्ट में राज्य सरकारों को मुआवजा देने के फार्मूले को फिर से लागू करने के प्रावधान हैं।’
दरअसल GST कानून में साफ है कि राज्यों को 14 प्रतिशत वृद्धि दर के हिसाब से पांच वर्षों तक राजस्व कमी की भरपाई की जाए, लेकिन अब मोदी सरकार इससे साफ़ मुकर रही है।
जनवरी, 2019 से मार्च, 2020 के दौरान राज्यों को किए जाने वाले मुआवज़े का भुगतान करीब 60,000-70,000 करोड़ रुपये है।
केंद्र को इसका भुगतान 2020 की पहली तिमाही तक करना था लेकिन अब तक वह रकम देनी बाकी है।
रेलवे को अपने 15 लाख कर्मचारियों को पेंशन देने के लिए 55 हजार करोड़ की ज़रूरत है। सरकार के पास वो भी नही हैं देने के लिए।
जीएसटी से हासिल केंद्रीय राजस्व की बात करें तो वह पिछले साल के मुकाबले तय लक्ष्य से करीब 40 फीसदी कम रहा है।
पिछले सालों के मुकाबले जीएसटी राजस्व घटा है। वहीं उपकर (सेस) भी ज़रूरत से कम आया है।
यह कोरोना काल से पहले की बात हो रही है तो ऐसा क्यों हो रहा है? हम सब अच्छी तरह से जानते हैं कि भारत नोटबन्दी के बाद से ही आर्थिक मंदी के जाल में फंस चुका है।
लेकिन मोदी सरकार यह स्वीकार ही नहीं करना चाहती कि देश में आर्थिक मंदी है जीएसटी संग्रह में कमी का कारण भी आर्थिक सुस्ती है।
कब तक बचोगे एक न एक दिन असलियत आपको बताना ही होगी। आज वित्त सचिव अजय भूषण पांडे ने यह स्वीकार किया है।
कुछ दिनों पहले ही लिख दिया था कि जल्द ही वह दिन आने वाले हैं जब राज्य सरकारों के पास अपने कर्मचारियों को तनख्वाह देने के पैसे नहीं होंगे।
राज्य सरकारों ने अपने सारे सोर्स तो केंद्र सरकार के हवाले कर दिए हैं, जल्द ही सरकारी कर्मचारियों और सरकारी पेंशन धारकों को यह दिन देखना पड़ेगा जो मोदी जी ने बोला था …..’घर मे शादी है पैसे नही है’।
अगर सरकारों के पास अपने कर्मचारियों को वेतन देने तक के पैसे नहीं हैं तो इसका मतलब हुआ कि सरकार दिवालिया हो चुकी है।
लेकिन अपदा में भी अवसर तलाशने वाले नरेंद्र मोदी ने इस दिवालियेपन को भी पूंजीपतियों की तिजोरी भरने का सुनहरा मौका बना डाला है।
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