भारतीय रेलवे छंटे हुए ठग की तरह पेश आ रही, 3 साल में टिकट रद्द करने में 9000 करोड़ रु. वसूले
By एस. वी. सिंह
बीती फ़रवरी में कम दूरी के रेल किराए में जो वृद्धि की घोषणा हुई थी- 300%, इसे सुनकर तो मोदी भक्तों के मुंह भी फ़ैल गए थे।
इतनी वृद्धि का आईडिया एक फासीवादी सरकार के अलावा भला और किसे आ सकता है! वैसे भी रेलवे के ‘शोध एवं विकास’ में एक शोध हमेशा ज़ारी रहता है; बगैर किराया बढ़ाए भी मुसाफिरों की जेब खाली कैसे की जा सकती है?
सेंट्रल रेलवे इनफार्मेशन सिस्टम द्वारा सूचना अधिकार में दी गई एक जानकारी के अनुसार, 1 जनवरी 2017 से 31 जनवरी 2020 दरम्यान तीन साल में रेलवे ने 9.5 करोड़ प्रतीक्षा सूची वाले मुसाफिरों से टिकट कैंसिलेशन शुल्क के रूप में कुल 4,335 करोड़ रुपये वसूले हैं।
इसी अवधि में आरक्षित टिकट वाले मुसाफिरों से टिकट कैंसिलेशन शुल्क के रूप में 4684 करोड़ रुपये वसूले हैं। मतलब तीन साल में अकेले टिकट रद्द करने के नाम पर ही कुल 9019 करोड़ रुपये आम ग़रीब की जेब से लूट लिए गए।
इसे सरकारी डकैती ना कहा जाए तो क्या कहा जाए!! ये लूट अब इस स्तर पर पहुँच चुकी है कि जैसे हवाई यात्रा टिकट कैंसिल करने पर कुछ वापस नहीं मिलता, उसी तरह रेल टिकट कैंसिल कराने पर भी शायद ही कभी कुछ वापस आता है। इसी तीन साल और 1 महीने में कुल 219 करोड़ टिकट ख़रीदे गए, रेल यात्रा पर लोग इस क़दर निर्भर हैं कि रेलवे विभाग इस संख्या को अपना खजाना भरने का जरिया बनाता जा रहा है।
ग़रीब मुसाफिरों की ज़ेबें खाली करने का दूसरा बहुत ही क्रूर तरीका है तत्काल आरक्षण सुविधा को इस तरह बदल डालना कि जितनी देर से आरक्षण करेंगे उतनी ही ज्यादा रक़म देनी पड़ेगी, कभी-कभी तो इस लूट स्कीम के तहत रेल टिकट हवाई जहाज के टिकट से भी मंहगा हो जाता है।
लेकिन उससे सरकार को क्या? 2015 से 2019 के 4 सालों में रेलवे ने इसी तत्काल स्कीम में बदलाव लाकर रेल यात्रियों की जेबें काटकर कुल 25,000 करोड़ रुपये बनाए हैं।
पूरी रेल आरक्षण व्यवस्था को इस तरह घुमाया जा रहा है कि किसी भी स्थिति में जनरल टिकट कोई खरीद ही ना पाए, रिजर्वेशन ही कराए जिससे टिकट कैंसिल करने पर पैसा ऐंठा जा सके।
ग़रीब को निचोड़ने की नित नई विधियाँ खोजने को ही आजकल शोध एवं विकास (R & D) बोला जाता है। रेलवे विभाग इस मामले में छंटे हुए ठग की तरह बर्ताव कर दूसरे विभागों के सामने मिसाल क़ायम करना चाहता है।
फरवरी महीने में ही मुंबई में 10 रुपये में मिलने वाले प्लेटफार्म टिकट को सीधा 50 रुपये कर दिया गया। 500% की वृद्धि!! ऐसा स्टेशन पर भीड़ कम करने के लिए किया जा रहा है, अति बुद्धिमान रेलवे मंत्री ने फरमाया!
गरीबों की भीड़ कम करने का यही उपाय बचा है अब इस ‘राष्ट्रवादी’ सरकार के पास। जब भी रेल या बस के किराए बढ़ाए जाते हैं, बहाना डीज़ल क़ीमतों के बढ़ने का ही दिया जाता है।
किराए व सम्बंधित शुल्क जिस तरह बढ़ रहे हैं उसने काफी बड़ी ग़रीब आबादी के लिए रेल व बस का सफर असंभव बना दिया है।
(यथार्थ पत्रिका से साभार।)
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