500 ट्रेनें, 10,000 स्टेशन बंद करने जा रही मोदी सरकार और दावा है 1500 करोड़ रु. अतिरिक्त कमाई की
एक समय था जब अपने कस्बे में ट्रेन हाल्ट के लिए आंदोलन हुआ करते थे और समय समय पर रेल मंत्री इसका आश्वासन देते थे। आम तौर पर ट्रेन स्टापेज की मंज़ूरी मिल भी जाती थी।
लेकिन मोदी सरकार के राज में अब स्टेशन ही बंद हो रहे हैं। नया फरमान आया है कि भारतीय रेलवे 500 ट्रेनें और 10,000 रेलवे स्टेशन बंद कर देगा।
2014 में सत्ता में आऩे के तुरंत बाद बनारस के डीएलडब्ल्यू में एक विशाल कार्यक्रम में ‘रेलवे कभी नहीं बिकने देंगे’ की कसम खाने वाले मोदी पहले ही उन रेलवे स्टेशनों को निजी हाथों में बड़े पैमाने पर बेचना शुरू कर दिया है जो कमाऊ स्टेशन हैं और जिन्हें सरकार ने सरकारी खजाने से खर्च कर सुविधाएं बेहतर कीं हैं।
जनसत्ता में प्रकाशित एक ख़बर के अनुसार, महामारी के बाद भारतीय रेलवे नया टाइम टेबल तैयार कर रहा है, जिसे ज़ीरो बेस्ट टाइम टेबल का नाम दिया गया है। इसमें 500 रेगुलर ट्रेनों को बंद कर दिया जाएगा।
नए टाइम टेबल के अनुसार, इन कोशिशों से रेलवे बोर्ड ने 1500 करोड़ रुपये की अतिरिक्त कमाई करने का लक्ष्य रखा है। लेकिन ये समझना मुश्किल है कि ट्रेनें और रेलवे स्टेशन बंद करने से कमाई कैसे बढ़ेगी?
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छोटे स्टेशनों की बलि
मोदी सरकार भारतीय रेलवे के अकूत चल अचल संपत्तियों को नीलाम कर रही है। निजी ट्रेनें चलाने की शुरुआत हो ही चुकी है।
अब जो नया टाइम टेबल बना है, जिसके लिए कहा जा रहा है कि आईआईटी बांबे के विशेषज्ञों की मदद से तैयार किया गया है, उसमें उन ट्रेनों को बंद कर दिया जाएगा जिसमें आधी से कम सवारी होगी।
इसके अलावा महानगरों को जाने वाली ट्रेनों का स्टापेज कम करके 200 किलोमीटर कर दिया जाएगा, अलबत्ता अगर 200 किमी के अंदर कोई शहर न पड़े।
भारतीय रेलवे पिछले कुछ समय से आलोचनाओं के केंद्र में है, खासकर लॉकडाउन के दौरान मज़दूरों को घर पहुंचाने में ट्रेनों को अनावश्यक डायवर्ट किए जाने के मामले को लेकर।
उस दौरान कई ट्रेनों को निर्धारित समय से कई गुना समय लगा और रेलवे बोर्ड के अधिकारियों का सफ़ाई थी कि ट्रेन रूट व्यस्त होने के कारण ऐसा हुआ जबकि ट्रेड यूनियनें और सामाजिक संगठनों का सवाल था कि जब सारी ट्रेनें बंद थीं तो ट्रेन रूट कैसे व्यस्त हो सकते थे?
लेकिन इस सवाल का जवाब भी नए टाइम टेबल में मिल गया है। नए नियमों के अनुसार, माल गाड़ियों को विशेष सुविधा दी जाएगी और मोदी सरकार पहले ही उद्योगपतियों से वादा करती रही है कि माल गाड़ियों को कम समय में गंतव्य तक पहुंचाने की व्यवस्था की जाएगी।
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रेलवे प्राइवेट प्रापर्टी?
नए निज़ाम में अब ये तय हो गया है कि कोई रेलवे सार्वजनिक संपत्ति नहीं रही कि उसे लोगों को सुविधाओं के अनुसार चलाया जाए बल्कि अब वो प्राइवेट कंपनियों की निजी मिल्कियत हो गई है जिसे माल ढोने, मुनाफ़ा कमाने, प्राइवेट हाथों में देने की लिए मोदी सरकार आज़ाद है।
दूसरी तरफ़ रेलवे के निजीकरण से छात्रों में भारी आक्रोश है। नई भर्तियों पर मोदी सरकार ने रोक लगा दी है और जो परीक्षाएं हुई हैं, जिनके रिज़ल्ट तक आ चुके हैं उसपर नियुक्तियां तक नहीं हो रही हैं।
इस मामले में बिहार के सासाराम में छात्रों ने रेल पटरियों पर विरोध प्रदर्शन भी किया लेकिन रेलवे की ट्रेड यूनियनें चुप्पी लगाए हुए हैं या सिर्फ ज़बानी जमा खर्च कर रही हैं।
छोटी छोटी ट्रेड यूनियनें रेलवे में हड़ताल की घोषणाओं पर घोषणाएं कर रही हैं लेकिन फ़ेडरेशनें मोदी सरकार की शरण में हैं और दिखाने के लिए ही सही, अपील पर अपील कर रही हैं कि सरकार निजीकरण का कोई कदम न उठाए।
लेकिन क्या इन अपीलों, घोषणाओं, बयानबाज़ियों या छोटे मोटे प्रदर्शनों से रेलवे का निजीकरण रुक जाएगा, ये एक बड़ा सवाल बना हुआ है।
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