पुलिस ने थाने में धमका कर कोरे कागज़ों पर कराया हस्ताक्षर: जेएनएस मज़दूर
जेएनएस के गिरफ़्तार किए गए मज़दूरों को 24 घंटे बाद मानेसर पुलिस ने छोड़ दिया जबकि आठ लोगों को 24 घंटे बाद थाने से रिहा किया गया।
आम हड़ताल के दूसरे दिन मंगलवार को हरियाणा के आईएमटी मानेसर में एक ऑटो कंपोनेंट मेकर कंपनी जेएनएस इंस्ट्रूमेंट लिमिटेड में हुई हड़ताल के दौरान पुलिस ने 130 वर्करों को गिरफ़्तार कर लिया था, जिनमें इसमें 78 महिलाएं थीं।
उसी दिन 123 वर्करों को रात 12 बजे छोड़ दिया गया। लेकिन इन मज़दूरों का समर्थन करने पहुंचे इंकलाबी मज़दूर केंद्र के योगेश और हरीश, मज़दूर बिगुल के श्याम और चार अन्य पुरुष मज़दूरों को पुलिस ने गिरफ़्तार कर 24 घंटे तक थाने में रखा। बाद में दूसरे दिन डीसीपी मानेसर से उन्हें ज़मानत मिली।
मज़दूर नेता अजीत सिंह ने बताया कि इन मज़दूरों पर पर्चा नंबर 94 और 95 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था। पर्चा नंबर 94 में हिंसा, धमकी, अशांति आदि की धाराएं लगाई गईं। जबकि पर्चा नंबर 95 में आगजनी, हत्या की कोशिश, आपराधिक धमकी जैसे संगीन आरोप लगाए हैं लेकिन दिलचस्प बात है कि पर्चा नंबर 95 में अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की गई और पर्चा नंबर 94 के आधार पर डीसीपी के यहां से ही ज़मानत दे दी गई।
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चुन्नी से गला चोक करने की कोशिश
उनका दावा है कि जिन सात लोगों पर गंभीर आरोप लगाए गए, उनमें तीन मज़दूर अधिकार कार्यकर्ता हैं और पर्चा नंबर 95 के तहत एफ़आईआर असल में उन्हें फंसाने के लिए दर्ज किया गया है।
वर्कर्स यूनिटी से बातचीत में महिला मज़दूर नेता रिंकी ने बताया कि वर्कर कंपनी गेट के सामने 29 मार्च, मंगलवार को सुबह पांच बजे ही धरने पर बैठ गए थे। उनका प्रदर्शन शांतिपूर्ण था लेकिन शाम साढ़े पांच बजे उन पर बिना किसी उकसावे के पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया, जिसमें कई महिला वर्करों को गंभीर चोटें आई हैं।
जबिक पुलिस ने इनपर दंगा करने, आपराधिक धमकी देने और सरकारी काम में बाधा डालने समेत कई धाराएं लगाई हैं। पुलिस का कहना है कि कंपनी की एक बस को जला दिया गया और एक अन्य बस को क्षतिग्रस्त कर दिया गया।
एफ़आईआर के अनुसार, ” दिनाँक 29.03.2022 को प्रात: 05:45 AM कम्पनी के गेट पर कर्मचारी कम्पनी के गेट पर आकर बैठ गए व धरना देने लगे और अंदर काम करने वाले कर्मचारियों को अंदर आने से जबरदस्ती रोक दिया, जिसके कारण कम्पनी का कार्य भी बंद हो गया जबकि माननीय न्यायालय के द्वारा दिनांक 24.12.2021 को जारी आदेशों के अनुसार धरना कम्पनी गेट से 1000 मीटर दूर किया जाना चाहिए। कंपनी के कर्मचारियो ने माननीय न्यायालय के आदेशों की अवहेलना की है तथा कम्पनी में कार्य कर रहे कर्मचारियों को जान से मारने की धमकी दी है।”
रिंकी ने कहा, “गिरफ़्तारी के समय पुलिस इतनी बेरहमी से पेश आई कि उनके गले को चुन्नी से दोनों तरफ़ से दो पुलिसकर्मी खींच रहे थे। गला चोक हो गया था। ये मुझे मारने की साज़िश थी और वे मुझे मार डालना चाह रहे थे।”
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सादे कागज़ों पर ज़बरन कराए हस्ताक्षर
रिंकी ने कहा कि गिरफ़्तार करने के बाद क़रीब डेढ़ सौ वर्करों को थाने में ले जाया गया और रात डेढ़ बजे छोड़ने से पहले उनकी शिनाख़्त की गई और कई सारे सादे कागज़ों पर हस्ताक्षर कराए गए और पढ़ने भी नहीं दिया गया। ये हर वर्कर के साथ किया गया।
रिंकी बताती हैं कि “उनके गले से खून निकल रहा था और जब एसएचओ से इस बारे में कहा गया तो उस पुलिस अधिकारी ने कहा कि खून निकल रहा तो मैं क्या करूं, पानी से धो ले और चुप होकर बैठ जा।”
रिंकी के अनुसार, उनके साथ ही कई वर्करों को गंभीर चोटें आई हैं और उनका कोई इलाज भी नहीं किया गया। वे सभी घर पर ही इलाज करा रहे हैं। जो वर्कर सुरक्षित हैं वे धरने में शामिल हैं जबकि कंपनी बाहर के मज़दूरों को लाकर काम करा रही है।
असल में ये वर्कर बीते दो सालों से वेतन बढ़ोत्तरी, यूनियन बनाने की मांग, नियमितीकरण आदि को लेकर समय समय पर प्रदर्शन करते रहे हैं। ताजा धरना प्रदर्शन अगुवा महिला मज़दूर नेताओं के निलंबन को रद्द कराने की मांग को लेकर बीते तीन मार्च से शुरू हुआ था।
बीते साल 17 नवंबर 2021 को नौ महिला वर्करों को कंपनी ने अपने भीवाड़ी प्लांट में ट्रांसफ़र कर दिया था। ट्रांसफ़र के ख़िलाफ़ वर्करों ने लेबर डिपार्मटमेंट में शिकायत की लेकिन वहां से उन्हें कोई राहत नहीं मिली।
वर्करों का कहना है कि यूनियन बनाने की अगुवाई कर रहीं मज़दूर नेताओं का ट्रांसफ़र कर दिया गया ताकि यूनियन बनाने की कोशिश को नाकाम किया जा सके।
महिला नेताओं के ट्रांसफ़र से भड़का आक्रोश
अखबार द हिंदू ने पुलिस के हवाले से लिखा है कि ट्रांसफ़र किए गए वर्करों को प्रमोशन दिया गया था और उनकी सैलरी में बढ़ोत्तरी की गई थी। पांच महिला वर्करों ने ड्यूटी भी ज्वाइन कर ली लेकिन चार महिला वर्करों ने इसे अस्वीकार कर दिया।
एक महीने तक धरना प्रदर्शन के बाद वर्करों ने आम हड़ताल के दूसरे दिन कंपनी गेट पर बैठने का फैसला लिया, जिसकी वजह से कंपनी में प्रोडक्शन बंद हो गया।
अख़ाबार ने लिखा है, “पुलिस का कहना है कि वर्करों का धरना प्रदर्शन, सुप्रीम कोर्ट के उस आर्डर का उल्लंघन जिसमें कंपनी से एक किलोमीटर के दायरे में धरना प्रदर्शन प्रतिबंधित है।”
पुलिस का कहना है कि प्रदर्शनकारी वर्करों ने कंपनी में काम करने की इच्छा रखने वालों को जान से मारने की धमकी दी। जबकि वर्करों का आरोप है कि पुलिस और मैनेजमेंट की मिलीभगत के चलते उनपर लाठीचार्ज किया गया और महिला वर्करों को भी नहीं बख़्शा गया। मज़दूर नेता रिंकी के गले में चोट के निशान साफ़ देखे जा सकते हैं।
गिरफ़्तार वर्करों के समर्थन में थाने पहुंचे बेलसोनिका यूनियन के महासचिव अजीत सिंह का कहना था कि यूनियन बनाने से रोकने के लिए मैनेजमेंट ने ये पूरी कहानी रची है। एक महीने से वर्कर प्रदर्शन कर रहे हैं लेकिन मैनेजमेंट ने कोई ध्यान नहीं दिया।
अजीत सिंह ने वर्करों की ओर से हिंसा किए जाने के पुलिसिया आरोप को खारिज किया और कहा कि वर्करों को हिरासत में लिए जाने तक कोई भी बस क्षतिग्रस्त नहीं हुई थी।
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