अब कंपनी दिन में 12 घंटे काम ले सकती हैः श्रम मंत्रालय का नया प्रस्ताव

अब कंपनी दिन में 12 घंटे काम ले सकती हैः श्रम मंत्रालय का नया प्रस्ताव

मोदी सरकार ने अपनी मनमर्जी से ज़बरदस्ती पास कराए गए आक्युपेशनल सेफ़्टी हेल्थ एंड वर्किंग कंडिशन कोड (ओसीएच) का भी मान नहीं रखा और अब उसमें भी फेरबदल कर काम के घंटे को 12 घंटे तक करने का प्रस्ताव दिया है।

हालांकि बीते 19 नवंबर जो अधिसूचना जारी की गई है उसमें प्रति सप्ताह काम की सीमा को 48 घंटे तक ही फ़िक्स किया गया है।

कोरोना के समय बुलाए गए संसद सत्र में आनन फानन में तीन कोड पास करा लिए गए थे लेकिन इसके ड्राफ़्ट में श्रम मंत्रालय ने प्रति दिन काम के अधिकतम घंटे 12 करने का प्रस्ताव दिया है।

फ़ाइनेंशियल एक्सप्रेस की ख़बर के अनुसार, इसका चौतरफा विरोध शुरू हो गया है क्योंकि संसद में पारित कोड में अधिकतम एक दिन में आठ घंटे काम ही तय किया गया था।

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक श्रम मंत्रालय की दलील है कि ’12 घंटे का कार्यदिवस इस बात को ध्यान में रख कर तय किया गया है क्योंकि देश के विभिन्न इलाक़ों में अलग अलग मौसम होता है और कई जगह पूरे दिन काम होता है। इसके अलावा वर्करों को ओवरटाइम भत्ता से अधिक आमदनी करने का भी मौका मिलेगा।’

मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से पीटीआई ने कहा, “हमने ड्राफ़्ट क़ानून में इस तरह बदलाव किया है कि आठ घंटे के अलावा काम पर मज़दूरों को ओवरटाइम मिलेगा।”

अपने वादे पर ही नहीं टिकी मोदी सरकार

असल में उक्त अधिकारी ने ये भोलेपन में ही ये बयान दिया है क्योंकि शायद उसे नहीं पता कि कंपनियों में 12 घंटे ही नहीं बल्कि एक्सपोर्ट गारमेंट और सिक्योरिटी कंपनियों में ज़रूरत के समय 36-36 घंटे काम कराया जाता है।

आक्युपेशनल सेफ़्टी हेल्थ एंड वर्किंग कंडिशन कोड के ड्राफ़्ट में कहा गया है कि ओवरटाइम का हिसाब करते समय 15 से 30 मिनट के बीच के समय को भी आधा घंटा ही माना जाएगा।

इससे पहले 30 मिनट से कम समय को ओवरटाइम में शामिल नहीं किया जाता था।

लेकिन इस लॉलीपॉप के साथ मंत्रालय का कहना है कि प्रति दिन आठ घंटे काम की सीमा भले तय कर दी गई हो लेकिन कंपनी में ब्रेक, लंच को मिलाकर 12 घंटे से अधिक काम नहीं कराया जा सकता।

नए क़ानून के अनुसार, किसी भी वर्कर को कम से कम आधे घंटे के बिना आराम दिए पांच घंटे से अधिक काम नहीं कराया जा सकता।

हालांकि इन्हीं नियमों में चोर दरवाज़े से ये भी कह दिया गया है कि भले ही सप्ताह में अधिकतम 48 घंटे काम कराए जाने की सीमा तय कर दी गई है लेकिन ज़रूरत के हिसाब से इसमें फेरबदल किया जा सकता है।

यानी फेरबदल किए जाने के बाद 12 घंटे से अधिक नहीं काम कराया जा सकता।

यूनियनों का क्या कहना है?

ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं का कहना है कि कंपनियों में पहले ही 12 घंटे काम को आम बना दिया गया है और अब इस मोदी सरकार नियम बना रही है।

ऑटो उद्योग में काम करने वाले एक मज़दूर नेता ने कहा कि मोदी सरकार वो क़ानूनी अधिकार भी छीन रही है जिसके सहारे मज़दूरों को ये उम्मीद बनी रहती है कि उन्हें इंसाफ़ मिलेगा।

इंकलाबी मज़दूर केंद्र से जुड़े ट्रेड यूनयिन एक्टिविस्ट श्यामबीर का कहना है कि ये सारे श्रम क़ानून सरकार ने श्रमिक असंतोष को दबाने के लिए बनाए थे। ये मज़दूरों के लिए जितना सुरक्षा कवच थे, उतने ही सरकार के थे। अब जबकि इन क़ानूनों को खुद सरकार रद्दी की टोकरी में डाल रही है, वो खुद श्रम असंतोष के सामने बिना क़ानूनी कवच के खड़ा हो गई है।

उल्लेखनीय है कि बीते संसद सत्र में विपक्ष के बॉयकाट और उसकी अनुपस्थिति में मोदी सरकार ने ज़बरदस्ती तीन कोड बिल पास कराए थे।

सरकार के श्रम विरोधी क़ानून और सरकारी संस्थानों के निजीकरण के ख़िलाफ़ केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने 26 नवंबर को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया है। हालांकि जिस विभाजनकारी राजनीति के सहारे मोदी सरकार सत्ता में और मजबूत होती जा रही है, इन हड़तालों का उस पर कितना असर होगा, कहा नहीं जा सकता।

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Workers Unity Team

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