मज़दूर वर्गीय एकता की मिसाल, जिसने मारुति आंदोलन को ऐतिहासिक बना डाला

मज़दूर वर्गीय एकता की मिसाल, जिसने मारुति आंदोलन को ऐतिहासिक बना डाला

By काॅ. सतबीर सिंह

मारुति मज़दूर आंदोलन के एक दशक देखते देखते पूरे हो गए। एक ऐसा आंदोलन जिसमें सभी संगठनों, यूनियनों, सामाजिक संस्थाओं, जागरूक नागरिकों के सहयोग की अनूठी मिसाल देखने को मिली।

उद्योग विहार से लेकर बावल तक के मज़दूरों की एकजुटता जिसमें होंडा, हीरो मोटर कॉर्प सहित सभी के शानदार सहयोग और सभी के केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के समर्थन को इसमें कम करके नहीं आंक सकते। जनता के अन्य संघर्षशील तबकों, संगठनों की सहायता और जन सहयोग को भी दर्ज करना जरूरी है। इसके साथ साथ अंतरराष्ट्रीय श्रमिक आंदोलन जिसमें डब्ल्यूएचडीयू सहित सभी का सहयोग रहा

गुड़गांव में मारुति उद्योग केंद्र सरकार द्वारा 1982-83 में स्थापित किया गया था। स्थापित होने से पूरे क्षेत्र में खास तौर पर ऑटोमोबाइल क्षेत्र के विकास की दिशा में इसकी प्रमुख भूमिका रही है। लेकिन इसमें भी बदलाव आया। मारुति उद्योग को वाजपेई की भाजपा सरकार ने मारुति सुजुकी में बदल डाला, सरकार की हिस्सेदारी वाली कंपनी पूरी तरह से प्राईवेट बन गई।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार उद्योग में जापानी कम्पनी सुजुकी ने मारुति सुज़ुकी के विस्तार के साथ आईएमटी मानेसर में 2008 में कार प्लांट की स्थापना की। भारी मुनाफ़े के साथ इसने कार उद्योग में छलांग लगाई जबकि 2008 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मंदी की मार शुरू हो चुकी थी। इसके बाद के समय में मज़दूरों का शोषण भी चरण पर पहुंच रहा था।

उदारीकरण निजीकरण तथा वैश्वीकरण की नीतियों की मार  यहां पर साफ दिखाई दी। देश व प्रदेश भर से आईटीआई पास पढ़े लिखे मज़दूरों को यहां पर भर्ती किया गया। बाद के सालों में होंडा के मज़दूरों के संघर्ष की जीत और उसके प्रभाव की भूमिका तथा अन्य संघर्षों से सीख लेकर मज़दूरों में संगठित होने की तड़प साफ दिखाई देने लगी।

आधुनिक उद्योग के आधुनिक युवा मज़दूरों ने धीरे-धीरे संगठित होने का प्रयास किया। वहीं ये मज़दूर, हरियाणा में आईटीआई के निजीकरण के ख़िलाफ़ 2007 में छात्रों के रूप में संघर्ष जीत कर आए थे। उनमें एकता की भावना प्रबल थी। इस पृष्ठभूमि में जून 2011 में यूनियन बनाने की प्रक्रिया शुरू की गई।

जैसे ही यूनियन बनाने की कोशिशें शुरू हुईं मैनेजमेंट ने दमन की प्रक्रिया शुरू की। किसी भी ढंग से यूनियन ना बने मैनेजमेंट का प्रयास यही रहा। वहीं मज़दूरों ने ठान लिया की यूनियन तो बन कर रहेगी। इसी अंतरविरोध के चलते 13 वर्करों को जून 2011 में नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया, जिसके खिलाफ संघर्ष की शुरुआत हुई और मज़दूर मोर्चा लगा कर बैठ गए।

पूरे मारुति सुजुकी उद्योग को पुलिस छावनी में बदल दिया गया। दमन और गैरक़ानूनी हथकंडों से मारुति मज़दूरों के साथ पूरे क्षेत्र के मज़दूरों को ये बात समझने में देर नहीं लगी। मैनेजमैंट और हरियाणा सरकार के दमन के ख़िलाफ़ पूरा मज़दूर आंदोलन एकजुट हुआ और मारुति मजदूरों के रूप में उठ खड़ा हुआ।

ये संघर्ष इतना तीखा था कि ऐसा लग रहा था कि बहुराष्ट्रीय कंपनी के दमन के ख़िलाफ़ यह मज़दूरों का मुक्ति युद्ध हो। इस आंदोलन के समर्थन में आईएमटी मानेसर में मज़दूरों की संयुक्त बैठक हुई और उसी समय ट्रेड यूनियन काउंसिल बनी।

पांच सदस्यीय कमेटी भी बनी जिसने बहुत नजदीक से उस आंदोलन को सहयोग दिया। इस कमेटी में होंडा के तत्कालीन प्रधान सुरेश गौड़, हीरो होंडा धारूहेड़ा के कपिल, हीरो होंडा गुड़गांव के प्रधान नवनीत, स्वतंत्र यूनियनों के रूप में प्रधान राजकुमार और सीटू की ओर से कॉ. सतवीर सिंह शामिल हुए।

आंदोलन अपने उफान पर था और कंपनी के अंदर मोर्चा लगाए मज़दूरों के समर्थन में भारी रैली मारुति गेट पर की गई। कमेटी ने अंदर बैठे मज़दूरों को हर प्रकार का सहयोग देना शुरू किया। अंततः मजदूरों की शानदार जीत हुई और सभी 13 बर्ख़ास्त मज़दूरों को ड्यूटी पर बहाल करने का फैसला हुआ। मारुति आंदोलन में ये पहली बड़ी जीत थी।

उसके कुछ ही समय बाद अगस्त सितंबर में यूनियन रजिस्टर न हो, मैनेजमेंट ने मज़दूर नेताओं को निशाना बनाना शुरू कर दिया। दूसरी ओर हरियाणा सरकार ने मैनेजमेंट के दबाव में मज़दूरों की रजिस्ट्रेशन संबंधी फ़ाइल को रद्द कर दिया। यही नहीं कंपनी के अंदर निलंबन और बर्खास्तगी की जैसे बाढ़ा आ गई।

इसी बीच में पॉवरट्रेन के मज़दूरों की यूनियन, सुजुकी बाइक प्लांट की यूनियन भी इसी संघर्ष के बीच बन गई।  इस प्रकार मारुति सुजुकी से जुड़े मजदूरों की एकता बनी जबकि मारुति कार प्लांट, पॉवरट्रेन, इंजन प्लांट तथा बाइक प्लांट में कुल 132 वर्करों को सस्पेंड या बर्खास्त किया गया। मैनेजमेंट ने मज़दूर वर्गीय एकता तोड़ने के प्रयास किए परंतु वह सफल नहीं हुई। मज़दूर मजबूती से डटे रहे। लंबी लड़ाई चली। हाई कोर्ट द्वारा स्टे की आड़ में भारी पुलिस तैनात कर दिया गया।

अंततः दोनों पक्षों में समझौता हुआ जिसके आधार पर सब वर्कर अंदर चले गए। लेकिन यहां भी फूट डालने की कोशिश की गई। मैनेजमेंट ने स्थाई वर्करों को काम पर ले लिया और ठेके पर लगाए गए वर्कर को बाहर रोक दिया गया। जिसकी भारी प्रतिक्रिया हुई। और इस प्रकार आर पार का संघर्ष छिड़ गया। स्थाई वर्कर दोबारा अंदर मोर्चा लगा कर बैठ गए और ठेका मज़दूर बाहर बैठ गए।

मज़दूरों की मजबूत एकता और ज्यादा मजबूत ना बने और इस संघर्ष को दबाने के लिए कोर्ट का स्टे और पुलिस दखल बढ़ाने का प्रयास किया गया परंतु मजदूर डटे रहे। उस समय मुख्यमंत्री गुड़गांव में आकर बैठ गए और वहीं पूरा श्रम विभाग आ गया। अंततः तीनों प्लांटों का त्रिपक्षीय समझौता हुआ जिसमें सुजुकी बाइक प्लांट के सभी बर्खास्त वर्कर वापस लिए गए, पॉवर ट्रेन में तीन को छोड़कर बाकी सभी वापस ले लिए गए, जबकि कार प्लांट में 30 सस्पेंड वर्करों को छोड़कर बाकी सभी को वापस ले लिया गया।

इस प्रकार सभी स्थाई तथा ठेका कर्मियों को काम पर वापस लिया गया। परंतु यहां यूनियन की लीडरशिप गच्चा खा गई। जो दबाव मैनेजमेंट और सरकार पर था उसको समझने की बजाए यूनियन के मुख्य दो पदाधिकारियों ने अंदर खाते इस्तीफा लिख कर दे दिया और बाकी 28 सस्पेंड वर्करों का भी हिसाब करवाने की बात सामने आ गई जिसके कारण जीती हुई लड़ाई निराशा में बदल गई। उस शुरुआती संघर्ष का पटाक्षेप इस तरह हुआ।

उसी समय सीटू की तरफ से मज़दूरों के नाम एक अपील जारी की जिसमें कहा गया कि मारुति मज़दूरों की कुर्बानी और संघर्ष बेकार नहीं जाएगा बहुत ही जल्द मजदूर संभाल लेंगे और अपनी यूनियन बनाकर रहेंगे।

ये वही समय था जब मारुति गुड़गांव में यूनियन दोबारा बनाई गई थी। अब मैनेजमेंट चाहता था कि  मारुति सुजुकी कामगार यूनियन को ही बाकी मानेसर के मज़दूर अपना लें, जबकि मज़दूर अपनी अलग यूनियन बनाने पर अड़े थे।  हालांकि वह यूनियन पूरे जोर पर संघर्ष में नहीं उतरी और कहीं ना कहीं दबाव में दिखी। उधर मज़दूर चाहता था कि अब मौका ही मौका है, परंतु उस समय के यूनियन के नेतृत्व ने स्टैंड नहीं लिया।

लेकिन मज़दूर रुके नईं उन्होंने यूनियन बनाने की प्रक्रिया शुरू की और अंततः यूनियन बनी और रजिस्टर्ड भी हो गई। हालांकि उसके संविधान में एक शर्त जोड़ दी गई कि किसी भी केंद्रीय ट्रेड यूनियन से संबंधित नहीं होगी। मज़दूरों में यूनियन को लेकर जीत का माहौल बना और 1 मार्च 2012 में यूनियन का झंडा लहरा दिया गया।

अपनी यूनियन का झंडा गेट पर लगाने के साथ ही यूनियन ने मांग पत्र यूनियन ने तैयार किया और प्रबंधकों को दिया गया जिसको लेकर यूनियन और प्रबंधकों में वार्ता चली प्रबंधकों का दबाव था कि परमानेंट वर्करों के लिए समझौता कर ले जबकि यूनियन ने ठेका मज़दूरों चाहे वे सफ़ाई वर्कर हों या कोई और सबके लिए बातचीत की मांग रखी।।

मैनेजमेंट ने अपनी चालबाजियां चलाने की पूरी कोशिश की, परंतु वर्कर भी सारा एकजुट था। यूनियन की बॉडी पर एक मॉरल दबाव था कि पिछली बॉडी चली गई थी इसलिए सतर्क रहना होगा।

कंपनी में जो वर्कर काम कर रहे थे, वे सभी 25 से 30 वर्ष तक की आयु के थे और उनमें काफ़ी जोश था। टी ब्रेक को लेकर एक विवाद आया जिसके चलते वर्करों में रोष फैल गया। दरअसल  मैनेजमेंट मज़दूरों  को निशाना बना रही थी, काम का दबाव, अभद्र व्यवहार, निलंबन और टर्मिनेशन जैसे हथकंडों से मज़दूर तंक आ गए थे।

और इसे लेकर वर्करों में भारी रोष था। मारुति आंदोलन में 2012 एक टर्निंग प्वाइंट आया जब यूनियन और वर्करों ने जियालाल को बहाल करने की मांग रखी।  मैनेजमेंट गहरी चाल चल रही थी तथा पूरे उकसावे में पूर्ण कार्यवाही कर रही थी। असल में वो एक तीर से दो निशाने लगाना चाहती थी।

अंततः 18 जुलाई की शाम को ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति बनी और प्रबंधक अपनी साजिश में सफल हुए जिसमें तोड़फोड़ आगजनी और उसमें एक अधिकारी की मौत होना भी शामिल है, जिसको लेकर बहुत ही गंभीर स्थितियां बनीं। इसका प्रबंधकों व सरकारी मशीनरी ने मज़दूरों के ख़िलाफ़ ज़हर उगलने में फायदा उठाया। प्रबंधकों ने इस घटना का पूरा इस्तेमाल करके दमन के लिए सरकार ने एक एफआईआर दर्ज की जिसमें 150 नामजद और 660 अन्य के नाम से एक एफआईआर दर्ज की गई।

मज़दूरों के प्रदर्शन को दबाने के लिए सरकार ने पुलिस फोर्स का इस्तेमाल किया और  दमन शुरू कर दिया। मारुति की ड्रेस में कोई वर्कर कहीं भी मिल गया उसे उठा लिया गया। रातों-रात वर्कर गिरफ्तार कर लिए गए। यूनियन का नेतृत्व अंडरग्राउंड हो गया। उसी रात मारुति सुजुकी के एमडी आरसी भार्गव का बयान आया कि यह एक क्लास वार (वर्ग युद्ध) है। अगले ही दिन 19 जुलाई को मैं स्वयं एवं सीटू ज़िला नेता मेजर एसएल प्रजापति मामले की जानकारी लेने मानेसर गेट पर पहुंचे।

हमने वेशभूषा बदल रखी थी और वहां जाकर देखा तो सन्नाटा छाया हुआ था। चारों तरफ पुलिस ही पुलिस थी। उसके बाद वापस आए। सभी यूनियनों ट्रेड यूनियनों से संपर्क किया गया। तुरंत एक बैठक हुई और ज्ञापन तैयार किया गया। लगभग 40 से अधिक प्रतिनिधि इसमें शामिल हुए। डीसी, पुलिस कमिश्नर, एडिशनल लेबर कमिश्नर से मिलने के बाद मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन दिया गया जिसमें चार बातें उठाई गई थीं-

इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय निष्पक्ष जांच की जाए, निर्दोष वर्करों को उठाकर जेल में डालना बंद किया जाए, बिना किसी शर्त डोमेस्टिक जांच के तहत बर्खास्त किए गए वर्करों को काम पर वापस लिया जाए, गैर कानूनी तालाबंदी वापस ली जाए और हालात को सामान्य बनाया जाए।

ध्यान रहे 546 वर्करों और अप्रेंटिस को बर्खास्त किया गया था व 1800 से अधिक ठेका मज़दूरों को बाहर कर दिया गया था और 147 वर्करों को गिरफ्तार किया गया था। हम सब के लिए यह एक चुनौती थी कि वर्कर को एकजुट कैसे किया जाए।

18 जुलाई 2012 के बाद पहली कार्यवाही 25 जुलाई को होंडा कांड की बरसी पर विशाल जनसभा को साथ किया गया। हालांकि यह सभा न हो इसके लिए प्र्सशान व सरकार व तथाकथित पंचायतों ने कोई कसर नहीं छोड़ी परन्तु इस सबके बावजूद सीटू समेत तमाम केन्द्रीय श्रमिक संगठनों व स्वतंत्र यूनियनों द्वारा व्यापक एकता बनाते हुए जनसभा की गई।

इस प्रक्रिया में हमने पूरे हरियाणा के सभी ज़िलों व गांवों तथा यूपी राजस्थान कुछ पंजाब में भी संपर्क किया। सीटू केन्द्रीय मुख्यालय दिल्ली, हरियाणा मुख्यालय रोहतक, जीन्द में मज़दूरों की बैठकें की गईं। हालांकि हालात बुरे थे।

हरियाणा में कहीं भी कोई मीटिंग करते तो वहीं पुलिस पहुंच जाती। हमारे दफ्तरों का घेराव करके वर्करों को गिरफ्तार किया गया। 17 अगस्त 2012 को राज्यव्यापी विरोध दिवस मनाया गया व गुड़गांव में विशाल जनसभा की गई।

30 अगस्त को अग्रवाल धर्मशाला में मजदूर सम्मेलन किया गया। इस प्रकार जिलों में जिसमें प्रोविजनल कमेटी का प्रस्ताव आया था और उस सम्मेलन में राज्य और पूरे देश में बैठकें आयोजित करने का फैसला लिया गया।

21 सितंबर 2012 को डीसी कार्यालय पर भारी जनसभा का आयोजन किया गया जिसमें पहली बार मारुति सुजुकी व अन्य कम्पनियों के वर्करों की बड़ी स्तर पर भागीदारी हुई।

इनमें उन मज़दूरों की भी भारी संख्या थी जो कंपनी के अंदर गए थे। इसके बाद धरने प्रदर्शनों का दौरा शुरू हुआ जिसमें सीटू, एटक, इंटक, एचएमएस, एआईटीयूसी, राज्य कर्मचारी संगठन, जनवादी महिला समिति, छात्र संगठनों, नौजवानों व अन्य संगठनों के सहयोग से  मारूति मज़दूरों के इस संघर्ष में राज्य भर में साइकिल जत्थे निकाले गए और रोहतक में विशाल जनसभा हुई जिसके दबाव में मुख्यमंत्री को वार्ता का समय देना पड़ा।

इसी प्रकार कैथल में कई महनों तक धरना-प्रदर्शन की कार्यवाही चली और एक बड़ी कार्यवाही पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया, जिसमें सीटू समेत कई संगठनों के नेता बुरी तरह से घायल हुए। सीटू नेता व कैथल के प्रेमचन्द को भी अन्य साथियों की तरह कई महीने जेल में गुजारने पड़े।

कैथल की सभा में सीटू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं सांसद वासुदेव आचार्य जैसे बड़े नेताओं ने हिस्सा लिया था। सरकार पर भारी दबाव बना। और कहा जा सकता है कि केंद्रीय ट्रेड यूनियनों की भूमिका को किसी भी तरह नकारा नहीं जा सकता।

इस पूरे प्रकरण में कुछ स्वयंभू संगठन भी अपने ढंग से कार्रवाई करते रहे। कुल मिलाकर जिसने भी जिस रूप में सहयोग दिया उसको स्वीकार करना चाहिए क्योंकि अंततः प्लांट के अंदर दोबारा यूनियन बनी।

18 मार्च 2017 कोर्ट द्वारा 13 वर्करों को आजीवन कारावास, पांच वर्करों को जेल के दौरान पूरी सज़ा भुगतने को स्वीकार करते हुए रिहा कर दिया गया और अन्य सभी वर्करों को कोर्ट ने बाइज्जत बरी किया।

अब पूरा मामला माननीय उच्च न्यायालय में है। हालांकि फाइल में जाकर तथ्यों पर गौर करने करें तो सभी वर्करों को ही बरी होना चाहिए था। सज़ा को लेकर वर्करों में रोष ज़ाहिर था।

सरकारी दमन के ख़िलाफ़ एक लाख से अधिक वर्करों ने लंच बायकॉट किया और मारुति वर्करों ने एक घंटा प्रोडक्शन बंद रखा। बाद के दौर में भी मारुति व अन्य कम्पनियों के वर्कर जेल में बंद साथियों की आर्थिक, मॉरल व हर प्रकार मदद कर रहे हैं।

मैनेजमेंट और यूनियन के बीच बेहतर समझौते हुए लेकिन बाहर निकाले गए वर्करों और बरी किए वर्करों को अभी तक वापस नहीं लिया गया। जेल में बंद साथी जियालाल और एक साथी पवन दहिया अब इस दुनिया में नहीं हैं।

दो धाराएं हमारे मज़दूर आंदोलन में पहले से हैं और वह मारुति मज़दूर आंदोलन में भी दिखीं। एक सरकार तथा प्रबंधकों की दलाली की और दूसरी मज़दूरों की एकता और संघर्ष की।

मारुति मज़दूर आंदोलन ने ये सिखाया कि मुद्दों और सवालों को लेकर एकजुट आवाज़ बुलंद की जाए तो एक हद तक सरकार को बैकफुट पर डाला जा सकता है।

हम मजदूरों में पूंजीवादी सामंती व्यवस्था के विचारों का गहरा प्रभाव आज भी है, क्योंकि पूंजीवादी राज व्यवस्था में और उनके विचार बार-बार हिलोरे मारते रहते हैं। तो दूसरी ओर मज़दूर वर्ग की एकता, वर्ग संघर्ष, वर्गीय विचार और वर्गीय राजनीति है जिस पर काम होना ज़रूरी है।

दुश्मन वर्ग, जाति, धर्म, भाषा, इलाका व अन्य मामलों में बार-बार हमारी एकता तोड़ने की साज़िश करता है हमें इन बातों से सजग व जागरूक होना ज़रूरी है।

हम सीआईटीयू गुड़गांव और हरियाणा राज्य कमेटी की ओर से मारुति मज़दूरों के संघर्ष को सलाम करते हैं, जिसने देश व प्रदेश को मजदूरों के आंदोलन में ऐतिहासिक रूप से छाप छोड़ी है, जिसकी गूंज अंतर्राष्ट्रीय मजदूर आंदोलन तक गई है।

(लेखक सीटू, हरियाणा के उपाध्यक्ष हैं। ये लेखक के अपने विचार हैं। ज़रूरी नहीं कि संपादकीय रूप से इस पर पूरी सहमति हो।)

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Workers Unity Team

One thought on “मज़दूर वर्गीय एकता की मिसाल, जिसने मारुति आंदोलन को ऐतिहासिक बना डाला

  1. Some statement are wrong …..They are not authentic….I was also in this compay..at that time… whenever strike held in Maruti Suzuki manesar plant…I was there ..to see everything…I was a casual labour there….I know everything what the management and union thinks…When the day 18 July 2012 I was in second shift…and I told everything to DPM .. second plant…Paint shop ….and at 16:45….all that happened what I told…it was too scary…secniro…to save life.. ourselves….

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