एक अप्रैल से सेफ़्टी के मामले में कंपनियों को होगी खुली छूट- लेबर कोड पार्ट-3
कोड ऑन ऑक्युपेशनल सेफ़्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशन क़ानून को सबसे अधिक ख़तरनाक माना जा रहा है। क्योंकि इससे कारखाना संबंधित कई श्रम क़ानून ख़त्म हो जाएंगे। इसमें 13 श्रम कानूनों को संशोध्ति कर एक कोड में समेट दिया गया है।
इसमें कारखाना अधिनियम, ठेका श्रम अधिनियम, अंतर्राज्यीय प्रवासी मजदूर अधिनियम, भवन एवं निर्माण मजदूर, श्रमजीवी पात्रकार, बीड़ी मजदूर से लेकर सिनेमा कर्मचारियों पर लागू होने वाले विभिन्न कानून शामिल हैं।
भिन्न- भिन्न तरह के कामों के लिए बने भिन्न- भिन्न तरह के सुरक्षा उपायों, इत्यादि जिन्हें मजदूरों ने लम्बे संघर्ष में जीता था, को एक सपाट कोड में लाकर मजदूरों की विशिष्ट जरूरतों व मांगों को नकारा गया है।
सरलीेकरण के नाम पर विशिष्टताओं को ही नकारा गया है। इसके तहत सुरक्षा उपायों के लिए बने नियमों के पालन के लिए बने निरीक्षकों की निरीक्षण प्रक्रिया को कमजोर बनाया गया है।
निरीक्षक राज का आतंक बताकर मालिकों ने अपने लिए इस कानून को पारित करवाया है, जिसके तहत उनका दायित्व बहुत ही कम कर दिया गया है।
- एक अप्रैल से ख़त्म हो जाएगा बोनस अधिनियमः लेबर कोड पार्ट-2
- एक अप्रैल से नये लेबर कोड के लागू होते ही कम हो जायेगी आपकी सैलरी-लेबर कोड पार्ट-1
प्रस्तावित कोड अब निरीक्षक-सह-सुगमकर्ता की बात करता है यानी पहले जो सरकारी निरीक्षक होते थे वे अब श्रम कानूनों का पालन करने में मालिकों या प्रबंधन के मददगार के रूप मे काम करेंगे, उनकी सहायता करना इनका काम होगा और इन कानूनों की अवहेलना की स्थिति में उन्हें मालिकों को माफ करने का अधिकार भी होगा।
पहले के सख्त नियम सम्पत्ति जब्ती तक की बात करते थे अब वह सब खत्म कर दिया गया है। अब बेतरतीब जांच होगी और कई बार तो कम्प्यूटर द्वारा या फिर मोबाइल से पूछताछ कर ही निरीक्षण कर लिया जाएगा।
हर जोखिमभरे उद्योग के लिए जहां पहले सुरक्षा कमिटियों के गठन करने की बाध्यता थी वहीं अब यह एक ऐच्छिक चीज बना दी गई है । सरकारों को बहुत शक्ति दे दी गई है कि वे स्वास्थ्य और सुरक्षा मामलों के लिए नियम बनाए जबकि पहले ऐसे नियम उद्योग के किस्म के अनुसार लिपिबद्ध थे ।(धारा 125 व 126)।
इसी तरह से राज्य सरकारों को यह अधिकार दे दिया गया है कि वे तय करें कि ऐसे उद्योगों या खदानों में मजदूरों को कितनी मात्रा में रासायनिक व विषैले पदार्थों के सम्पर्क में आने की अनुमति होगी।
ज्ञात हो कि कारखाना अधिनियम की दूसरी अनुसूची इसी के लिए बनी थी। ऐसे मानक तो वस्तुपरक और अंतर्राष्ट्रीय नियमों से तय होते हैं। इन्हें अलग-अलग तय करने का मतलब ही है कि काम के दौरान हानिकारक पदार्थों के सम्पर्क से बचने के लिए बने उपायों में ढील होगी।
यह मजदूरों की जिन्दगी के साथ खिलवाड़ है और कोड बनाकर कानून के सरलीकरण के नाम पर यदि ऐसा होता है तो उसके हेतु स्पष्ट हैं।
फिर जहां इस तरह के उद्योग कम मजदूरों से चलते हैं उनके लिए ये कानून लागू नहीं होंगे क्योंकि ये कानून 10 मजदूरों या उससे ज्यादा वाली इकाइयों के लिए तय किए गए हैं।
भारत में अधिकांश काम छोटे पैमाने पर अनौपचारिक क्षेत्रा द्वारा किया जाता है और ऐसे में वहां की कार्यदशा पर नजर नहीं रखा जाना मजदूरों के लिए घातक है।
ठेकेदारी का लाइसेंस देने की प्रक्रिया में भी यह नजरअंदाज किया जा सकता है कि खास तरह के कामों के लिए ठेकेदार के पास उपयुक्त अनुभव व जानकारी है या नहीं ताज्जुब की बात है कि यह कोड प्रशिक्षुओं के लिए लागू नहीं होता तो जाहिर है कि उन्हें और भी खराब परिस्थितियों में काम करना पड़ेगा।
यह कोड मालिकों के सुरक्षा सम्बंधी दायित्वों को हल्का करता है और केवल मजदूर की मृत्यु की स्थिति में ही उन्हें दो साल की सजा झेलनी पड़ सकती है या भिन्न- भिन्न 5 लाख रु का जुर्माना देना पड़ सकता है या फिर दोनों हो सकते हैं।
दूसरी ओर मजदूरों पर भी यह दायित्व डाला गया है कि वे सुरक्षा मानकों का पालन करें और खुद अपने स्वास्थ्य का भी ख्याल रखें।
हालांकि मालिकों द्वारा उनके स्वास्थ्य की जांच का प्रावधन भी रखा गया है। मालिकों पर अपनी इकाइयों को हवादार रखने, यथोचित सही तापमान व जगह रखने, साफ पेय जल तथा शौचालय के प्रबंध्न का दायित्व है।
इसके अलावा सरकार कैन्टीन और पालना-घर बनाने के लिए नियम बना सकती है। ज्ञात हो कि ये सुविधएं कारखाना अधिनियम, 1948 में लिपिबध ( थी और मान्य थीं।
पिछले 5 सालों में 6500 मज़दूर दुर्घटनाओं में मारे गए, हर दिन करीब 4 मज़दूर मर रहे – रिपोर्ट
सुविधओं में इस तरह की कटौती मजदूर वर्ग के स्वास्थ्य और जीवन के साथ मनमाना खिलवाड़ है। जहां तक कई तरह की सुविधओं का सवाल है तो उन्हें 50 व उससे ज्यादा मजदूरों वाले संयंत्रों के लिए बताया गया है।
दूसरी ओर महिलाओं को रात्रि पाली में यानी 7 बजे शाम से 6 बजे सुबह तक काम करने की अनुमति दे दी गई है। बिना सुविधओं को ध्यान में रखे हुए ऐसा करना खतरनाक है।
विभिन्न तरह के संयंत्रों के लिए विभिÂ तरह के काम के घंटे के बारे में सरकार द्वारा सूचित किया जाएगा। अभी तक ये तय थे।
कारखाना अधिनियम के तहत एक दिन में ज्यादा से ज्यादा 10 घंटा और सप्ताह में ज्यादा से ज्यादा 60 घंटा काम लिया जा सकता है। इसी तरह के अन्य नियम हैं। यह अब सरकारी सूचनाओं के मनमानेपन पर निर्भर करेगा।
(क्रमशः)
(बिहार से निकलने वाली मज़दूर पत्रिका से साभार)
(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)