अब पंजाब के खेतिहर मजदूरों ने खोला मोर्चा, पूरे पंजाब में रोकीं ट्रेनें

अब पंजाब के खेतिहर मजदूरों ने खोला मोर्चा, पूरे पंजाब में रोकीं ट्रेनें

भूमि सीमांकन से अधिक भूमि की सूची बनाने के लिए पंजाब के मुख्यमंत्री चन्नी के पत्र को वापस लेने से आक्रोषित पंजाब के खेतिहर मज़दूर और भूमिहीन मज़दूरों ने रविवार को पूरे पंजाब में ट्रेनें रोक दीं। रेल रोको कार्यक्रम 12 बजे से 4 बजे तक आयोजित किया गया।

खेतिहर मज़दूर संगठनों का आरोप है कि पत्र वापस लिया जाना इस बाद का सबूत है कि चन्नी जागीरदारों के ही प्रतिनिधि हैं।

पंजाब के ग्रामीण और कृषि श्रमिक संगठनों के संयुक्त मोर्चे के आह्वान पर हज़ारों पुरूषों और महिला खेतिहर और पेंडू मजदूरों ने 10 स्थानों पर ट्रेनें रोकीं जिसमें मनन वाला (श्री अमृतसर साहिब), फिल्लौर (जालंधर), जेथुके, संगत मंडी और रामपुरा (बठिंडा), गिद्दरबाहा (श्री मुक्तसर साहिब), जैतो (फरीदकोट), अजीतगिल (मोगा), सुनाम (संगरूर) रेलवे स्टेशनों पर हजारों की संख्या में मजदूर इकट्ठे हुए।

मोर्चा में शामिल संगठनों में पंजाब खेत मजदूर यूनियन, क्रांतिकारी पेंडू मजदूर यूनियन (पंजाब), दिहाती मजदूर सभा, मजदूर मुक्ति मोर्चा पंजाब और पंजाब खेत मजदूर सभा के विभिन्न नेता और कार्यकर्त्ता शामिल हुए |

वक्ताओं ने पंजाब सरकार द्वारा ग्रामीण और खेतिहर मजदूरों से किए गए वादाखिलाफी की आलोचना करते हुए कहा कि “चन्नी सरकार भी वही पैंतरे अपना रही है जो पूर्व की सरकारों ने किया है। चन्नी सरकार, श्रमिकों की मांगों को हल करने के लिए 23 नवंबर को संयुक्त मोर्चा के प्रमुख कार्यकर्ताओं से चंडीगढ़ में मीटिंग कर उनकी मांगों पर विचार करने का आश्वासन दिया था।”

“तय हुआ था कि बेघर और जरूरतमंदों को 5-5 मरला के भूखंड, सहकारी समिति में एक चौथाई हिस्सा और 50 हज़ार रुपये तक का ऋण उपलब्ध कराया जायेगा। साथ में आसमान छूती महंगाई को देखते हुए ये भी सुनिश्चित करना था कि सरकार खाद्य पदार्थ सस्ती कीमतों पर उपलब्ध कराए।”

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नेताओं ने कहा कि मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के वादाखिलाफी से साबित होता है कि उन्होंने भी सारे नेताओ के जैसे ही पूंजीपति वर्ग का पक्ष लेकर राज्य के सत्ता को मजबूत करने में अहम भूमिका निभा रहे है और दलित और गरीब मजदूर वर्ग पर पहले की तरह दमन और शोषण चल रहा है।

उन्होंने कहा कि इन मजदूर विरोधी चालों को किसी भी कीमत पर सफल नहीं होने दिया जाएगा। सदियों से अपने अधिकारों से वंचित और जाति परंपरा में बंटे उत्पीड़ित मजदूर वर्ग को बड़े पैमाने पर लामबंद किया जा रहा है और यह मांग की जा रही है कि सभी जरूरतमंद मज़दूरों के लिए 10 – 10 मरले की जमीन का प्लाट, माकन बनाने के लिए 5 लाख रुपये का अनुदान, मनरेगा के माध्यम से सभी योग्य मज़दूरों को पूरे साल काम, दिहाड़ी 600 रुपये प्रतिदिन, नरेगा में हो रहे भ्रष्टाचार पर नियंत्रण, वृद्धावस्था व विधवा पेंशन 5000 रुपये, मजदूर व गरीब किसान के सिर पर सरकार के साथ साथ तमाम गैर सरकरी ऋण जिसमें माइक्रो फाइनेंस कंपनियों का कर्ज खत्म करने के लिए नया ऋण कानून बनाया जाए।

इसके अलावा जरूरतमंदों को कम ब्याज पर सरकारी ऋण उपलब्ध कराने, पंचायत आरक्षित भूमि का तीसरा हिस्सा सस्ते ठेके पर उपलब्ध कराने, सार्वजनिक वितरण प्रणाली की आपूर्ति को मजबूत करने, भूमिहीन मजदूरों को सस्ती कीमत पर रसोई के बर्तन, आधी कीमत पर रसोई गैस, बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं बिल्कुल मुफ्त, मजदूरों के शिक्षित लड़के और लड़कियों को स्थायी सरकारी रोजगार की व्यवस्था करने की मांग है।

नेताओं ने कहा कि यह संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक सरकारी संस्थानों का निजीकरण की प्रक्रिया बंद नहीं हो जाती और दलितों का सामाजिक और सरकारी उत्पीड़न बंद नहीं हो जाता। साथ में सरकार को भूमि सीलिंग कानून को प्रभावी बनाना ही होगा जिसमे सीलिंग से अतिरिक्त जमीन को भूमिहीन मज़दूरों के बीच बांटना होगा।

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एक बार खेतिहर श्रमिक संगठनों के दबाव में पंजाब कांग्रेस सरकार ने अतिरिक्त भूमि को देने के आदेश जारी किए थे लेकिन वापस भी ले लिया। यह सरकार की पंजाब के जागीरदार की हितों की रक्षा को दिखता है जो कांग्रेस सहित सभी शासक वर्ग के राजनीतिक दलों के स्तंभ हैं।

यूनाइटेड वर्कर्स फ्रंट के नेता तरसेम पीटर, देवी कुमारी, जोरा सिंह नसराली, संजीव मिंटू, भगवंत सिंह समो, दर्शन नाहर और कुलवंत सिंह सेलबराह ने घोषणा की कि यदि राज्य सरकार अभी भी स्वीकृत मांगों को लागू नहीं करती है और मांगें नहीं मानती हैं तो वे मजदूरों के अगले संघर्ष का सामना करने के लिए तैयार रहे जिसकी रूपरेखा 15 दिसंबर को यूनाइटेड वर्कर्स फ्रंट की प्रांतीय बैठक में रखी जाएगी।

नेताओं ने आरोप लगाया कि हालांकि कांग्रेस ने साढ़े चार साल की विफलता के कारण लोगों के गुस्से को शांत करने के लिए मुख्यमंत्री को बदल दिया था, लेकिन उसकी मजदूर विरोधी और जनविरोधी नीतियों में कोई बदलाव नहीं आया है।

संगठनों ने मजदूरों के संघर्ष के लिए भूखंड आवंटित करने, रेड लाइन स्वामित्व अधिकार देने और बिजली बकाया माफ करने और श्रमिकों के हटाए गए मीटरों को बिना शर्त जोड़ने की मांग की।

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Workers Unity Team

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