पेंशन पीएफ़ बाज़ार के हवाले, वेल्फेयर बोर्डों के बंद होने से चार करोड़ मजदूरों पर ख़तरा पार्ट-4
लम्बे मजदूर वर्गीय संघर्षों के दौरान, अलग-अलग सेक्टर के उद्योगों के मजदूरों के संघर्षों के फलस्वरूप उद्योगों की विशिष्टताओं के अनुसार सुरक्षात्मक कानून बने थे।
कुल 44 श्रम कानूनों को सरलीकरण के नाम पर 4 संहिताओं (कोड) में संहिताबद्ध कर आज इस पर प्रहार हो रहा है।
उदाहरण के तौर पर भवन और अन्य निर्माण मजदूर एक्ट, 1996 के रद्द होने से निर्माण क्षेत्र के मजूदरों के लिए बने कल्याण परिषद ;वेल्फेयर बोर्ड रद्द हो जाएंगे।
यह लम्बे संघर्ष ;1985 से 1996 का परिणाम था। अब सामाजिक सुरक्षा व कल्याण संहिता के तहत इन वेल्फेयर बोर्ड के बंद हो जाने से चार करोड़ मजदूरों के पंजीकरण के रद्द हो जाने की सम्भावना बनती है। वेल्पफेयर बोर्ड या श्रम कार्यालय को अब यह काम नहीं देकर जिला प्रशासन को दे दिया गया है और यहां सटीक उत्तरदायित्व की भी चर्चा नहीं है।
बता दें कि अब कल्याण के लिए निजी क्षेत्रा या पी.पी.पी. माॅडल से काम लिये जाने की बात है। यहां तक कि ई.पी.एफ.ओ. की वर्तमान स्थिति को खत्म कर उसे फण्ड मैनेजर बना दिए जाने का भी प्रस्ताव है। व्यापक विरोध के चलते सरकार इन कामों को क्रमशः करने वाली है।
पेंशन-पी.एफ. के मद में मजदूरों से देय रकम लेकर बाजार के हवाले करने की नीति है और यह खतरनाक है। गरीबी रेखा वाली न्यूनतम मजदूरी, काम के अभाव, बेरोजगारी की स्थिति में ऐसी अंशदायी स्कीमों का क्या होगा समझा जा सकता है।
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कितने घातक लेबर कोड
मजदूरों की सुरक्षा और कार्यदशा के लिए बना संहिता भी घातक ही है। इसके लिए राज्य में सलाहकार समितियां बनाकर सुरक्षा प्रबंधों का राज्यस्तरीय मानकीकरण उनमें मनमानापन लाएगा और एक तरह के सेक्टर के लिए एक तरह के मानकों की व्यवस्था का उल्लंघन होगा।
हम देख सकते हैं कि लचीले श्रम कानूनों की मांग जो हर आर्थिक सर्वेक्षण में रहती थी का क्या मायने है। यह पूंजीपतियों के लिए मजदूरों के अतिशोषण का, उनके काम के स्थल पर बने सुरक्षा मानकों की अवहेलना का, वाजिब मजदूरी के आकलन की अवहेलना का द्वार खोल देता है। यह एक तरह से सभी मजदूरों को कानूनन अनौपचारिक मजदूरों की स्थिति में धकेल देता है।
ठेका मजदूरी को प्रश्रय दिया जाना इसका बड़ा उदाहरण है। ऐसी स्थिति में हमारे सामने गम्भीर चुनौती है कि हम रस्म अदायगी से आगे बढ़कर प्रतिरोध खड़ा करें। आखिर अब तो सरकार ने अपनी घोषणा में स्पष्ट कर दिया है कि ये श्रम संहिता ‘व्यवसाय करने की सुगमता’ को बढ़ाने के लिए लाया गया है।
यानी श्रम कानूनों के पीछे के सिद्धांत मजदूर अधिकार व सुरक्षात्मक उपाय को बिना लागलपेट के तिलांजलि दे दी गई है। पूंजीपतियों के पक्ष में ये कानून बनाए जा रहे हैं ,ऐसी बात खुद सरकार मान रही है। यह तो साफ ललकार है और वर्ग संघर्ष में जीते हमारे हकों पर कुठाराघात है।
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हम यदि इसे रोक नहीं पाते हैं तो बहुत बुरा होगा। इस पश्चगमन की स्थिति का विश्लेषण करने पर हम क्या देखते हैं?
यही कि सभी तरह के स्थापित केन्द्रीय यूनियनों द्वारा इसका समुचित प्रतिरोध करने में अक्षमता के पीछे राजनीतिक प्रतिबद्धता है। आखिर हर स्थापित केन्द्रीय यूनियन किसी न किसी संसदीय राजनीतिक पार्टी से जुड़ाव रखता है और यहीं उसकी सीमा बताता है।
हमें इससे आगे जाना होगा क्योंकि स्पष्टतः चुनौती राजनीतिक है और इसका मुकम्मल जवाब केवल क्रांतिकारी मजदूर वर्ग ही दे सकता है। (क्रमशः)
(बिहार से निकलने वाली मज़दूर पत्रिका से साभार)
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