सैलरी मांगने पर जबरन वसूली का केस, भिवाड़ी कॉन्टिनेंटल के तीन मज़दूर नेताओं को जेल, दो की पिटाई, एक का गेट बंद
वेतन समझौते को लेकर मज़दूरों के असंतोष को दबाने के लिए पुलिस ने मज़दूर नेता और उसके दो सहयोगियों पर कई धाराओं में मुकदमा दर्ज कर जेल में बंद कर दिया। एक मज़दूर का गेट बंद कर दिया गया और दो मज़दूरों की अज्ञात व्यक्तियों ने पिटाई कर दी।
मज़दूर के जिस क़रीबी व्यक्ति ने मदद की कोशिश की उसपर धोखा धड़ी का आरोप लगाकर थाने में बंद कर दिया गया है। अब इन मज़दूरों को कंपनी के आसपास जाने से पुलिस ने मना कर दिया है।
ये घटना राजस्थान के भिवाड़ी औद्योगिक इलाके में स्थित ऑटो पार्ट्स मेकर कंपनी कॉन्टिनेंटर इंजन के प्लांट की है।
होली की छुट्टी के बाद जब कंपनी खुली तो मज़दूरों की अगुवाई करने वाले मज़दूर नेता होशियार सिंह का 31 मार्च को गेट बंद कर दिया गया और अनुभव से संबंधित फर्जी दस्तावेज लगाने का आरोप लगाया गया।
होशियार सिंह को यहां काम करते हुए साढ़े चार साल हो गए हैं और पिछली दो कंपनियों के अनुभव प्रमाण पत्र उन्होंने जमा कर दिए थे, जिसे यहां का मैनेजमेंट मानने से इनकार कर रहा है।
इसके बाद कंपनी गेट पर होशियार सिंह धरना पर बैठ गये और कंपनी के अंदर बाकी मज़दूर भी काम रोक कर धरने पर बैठ गए थे। मैनेजमेंट की शिकायत पर पुलिस होशियार सिंह को थाने ले गई और वहां कई धाराओं में मुकदमा दर्ज कर दिया।
क़रीब चार दिन जेल भुगत कर ज़मानत पर छूटे होशियार सिंह ने बताया कि अपनी जायज मांगों को उठाने के लिए पहले प्रबंधन ने सताया और उसके बाद पुलिस ने फर्ज़ी मुकदमे लाद दिए।
होशियार सिंह ने बताया कि पुलिस ने पहले कहा कि वो समझौता करा देगी और इसी बहाने थाने ले जाया गया लेकिन वहां धारा 327 (जबरन वसूली के लिए जानबूझ कर चोट पहुंचाना), 384 (जबरदस्ती वसूली) और 441 (दूसरे की संपत्ति में अनाधिकृत प्रवेश) लगाकर जेल भेज दिया।
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हड़ताल ख़त्म, साज़िश का आरोप
वो कहते हैं कि उनके अलावा दो अन्य मज़दूरों सोनू और करन को पुलिस ने जेल भेजा था जिसमें दो यानी होशियार सिंह और करन की ज़मानत मंगलवार तक हो चुकी है जबकि सोनू अभी भी जेल में बंद हैं।
मंगलवार को एक मज़दूर यशपाल का कंपनी ने गेट बंद कर दिया। वो दो साल से ट्रेनिंग पर थे और अभी दो साल पूरे नहीं हुए हैं, एक महीना अभी बाकी है। मैनेजमेंट का कहना है कि अगले 10 दिन तक गेटबंद है लेकिन इसे लेकर कोई लेटर भी नहीं दिया गया।
होशियार सिंह का आरोप है कि इस बीच धोखे से मैनेजमेंट और पुलिस की मिलीभगत से मज़दूरों की हड़ताल तुड़वा दी गई और कंपनी को चालू कर दिया गया।
वो कहते हैं कि बीते रविवार 4 अप्रैल को पुलिस ने मज़दूरों पर प्रेशर बनाकर कंपनी चालू करवा दी, इस वादे के साथ कि मैनेजमेंट के साथ वो समझौता खुद करवाएगी।
हालांकि कंपनी खुलने पर होशियार सिंह के दो साथियों ने सहमति दे दी थी। उनका कहना है कि अब जब कंपनी में हड़ताल ख़त्म हो गई है, मैनेजमेंट अब बात भी सुनने को राज़ी नहीं है।
कंपनी में पिछले कई दिनों से वेतन समझौते को लेकर मैनेजमेंट पर दबाव बढ़ रहा था लेकिन वो इस बारे में वार्ता करने को राज़ी नहीं था।
होशियार सिंह ने आरोप लगाया है कि तीन लोगों को जेल में बंद करने के बाद अगुवा किस्म के दो अन्य मज़दूरों को किसी तीसरे के मार्फत पिटवा दिया गया, जिसमें एक का पता नहीं चल पाया है। जेल में बंद होने के बाद यही लड़के मज़दूरों की अगुवाई कर रहे थे।
वो कहते हैं कि उनके एक रिश्तेदार को भी मैनेजमेंट ने फंसा दिया है। गिरफ़्तार होने के बाद यही रिश्तेदार मदद के लिए भागादौड़ी कर रहा था।
होशियार सिंह ने बताया कि सोमवार को जेल से छूटने के बाद मंगलवार को थाने में अपना सामान लेने वो पहुंचे तो वहां पहले से मैनेजमेंट के लोग मौजूद थे और तभी एक अनजान व्यक्ति आया जिसने उस रिश्तेदार पर एटीएम से धोखाधड़ी करने का आरोप लगाते हुए लिखित शिकायत दे दी।
उनका आरोप है कि उस रिश्तेदार को वहीं थाने में बैठा लिया गया। जबकि एक साथी की ज़मानत की क़ानूनी कार्यवाही अभी जारी है।
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ज़मानत करवाएं या थाने से छुड़वाएं
होशियार सिंह कहते हैं, “मैं इतना परेशान हो गया हूं कि क्या बताऊं। मैं जेल से बाहर आया तो उसे थाने में बैठा लिया गया। अब हम अपने साथी की ज़मानत करवाएं कि इसे थाने से छुड़वाएं, समझ नहीं आ रहा।”
वो कहते हैं कि उनका रिश्तेदार एटीएम से पैसे निकालने गया था। जब पैसे निकाल कर वो बाहर आया तो वहीं मौजूद एक व्यक्ति ने उसे आवाज़ लगाई और फिर उसकी फोटो खींच ली। वही व्यक्ति बुधवार को थाने में उसी समय अचानक पहुंचा जब वे लोग अपना जमा तलाशी का सामान लेने पहुंचे थे।
होशियार सिंह आरोप लगाते हैं कि ‘एचआर हेड सुनील जैन और संजय परमार वहीं बैठे थे और जब मैं और मेरा रिश्तेदार वहां पहुंचे तो पता नहीं उन्होंने ही उस लड़के को बुला लिया।’ होशियार इसे साज़िश करार देते हैं।
मज़दूरों को लेकर पुलिस का रवैया कैसा है, इस बारे में होशियार सिंह कहते हैं कि जब कंपनी में हड़ताल थी तो यशपाल वहां जाते थे। पुलिस ने उनका कई बार पीछा किया और जेल में डाल देने की धमकी दी।
होशियार सिंह कहते हैं कि क़रीबी थाने के एसएचओ जितेंद्र सिंह ने कहा है कि वो कंपनी के आसपास भी फटक नहीं सकते, वरना कार्यवाई की जाएगी।
वो आरोप लगाते हैं कि यशपाल को भी मज़दूरों से काटने के लिए ही कंपनी के बाहर किया गया क्योंकि वो उनके क़रीब है और इससे मज़दूरों को उनका संदेश मिल सकता था।
होशियार सिंह कहते हैं कि कंपनी में दूर दूर से आए मज़दूर काम करते हैं, उन्हें कमरे का किराया देना होता है, बच्चे पढ़ाने होते हैं और चार दिन कंपनी बंद रही इससे उनकी हालत खराब होने का ख़तरा पैदा हो गया था, इसीलिए कंपनी चालू करने पर सहमति देनी पड़ी।
हालांकि वो कहते हैं कि अंदर काम कर रहे मज़दूरों में इस बात को लेकर अभी भी गुस्सा है कि हड़ताल क्यों ख़त्म कर दी गई।
होशियार सिंह ने बताया कि कंपनी में तीन किस्म के मज़दूर हैं। परमानेंट मज़दूरों की संख्या 350 है, जबकि 100 दो साल के फ़िक्स टर्म एम्प्लाई (एफटीई) में हैं और 700 कैजुअल मज़दूर हैं। हड़ताल में ये सभी एक साथ थे।
वो कहते हैं कि कंपनी ने कैजुअल वर्करों को हड़ताल तोड़ने के लिए एक हज़ार प्रति दिन देने का लालच दिया था लेकिन वे ये कहते हुए नहीं गए कि आज इनके साथ हो रहा है कल उनके साथ भी यही होगा।
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फोन टैप, जासूस और दबाव
इस कंपनी के तीन और प्लांट हैं। होशियार का आरोप है कि जो मज़दूर दूसरे प्लांटों के उनके टच में थे, उन्हें क्वारंटाइन कर दिया गया है ताकि वो सम्पर्क न कर सकें।
वो आरोप लगाते हैं कि उनका मोबाइल भी पुलिस ट्रेस कर रही है। कोई मीटिंग होती है तो बिना सूचना के पुलिस वहां पहुंच जा रही है। गुप्तचर भी कंपनी ने छोड़ रखे हैं जो हर डेवलपमेंट की फोटो, वीडियो, सूचना मैनेजमेंट तक पहुंचा रहे हैं।
वो कहते हैं कि जितने भी अगुवा साथी हैं सबका मोबाइल रिकॉर्ड पर है। अगर वकील से बात करते हैं तो वो बात तुरंत मैनेजमेंट को पता चल जाती है।
होशियार कहते हैं कि मुख्य मज़दूरों की एक मीटिंग हुई थी। मीटिंग ख़त्म होते ही इसकी पूरी वीडियो मैनेजमेंट के पास पहुंच गई। वो कहते हैं, “जाने ये कौन सा खेल खेल रहे हैं, कौन सा वाईफाई इनके पास आ गया है। हमारी वाज़िब मांग क्या थी, वेतन समझौता।”
यहां काम करने वाले होशियार सिंह के दो अन्य साथियों को कंपनी में रहते हुए 14-15 साल हो गए हैं। लेकिन कंपनी ने एक झटके में उनपर जबरन वसूली का केस दायर करवा दिया।
जबकि ठेके प्रथा उन्मूलन एक्ट के तहत परमानेंट जैसा काम करने वाले मज़दूर को 240 दिन के अंदर परमेंट वर्कर कर देने का नियम है। लेकिन एफ़टीई, नीम, कौशल विकास के नाम पर मज़दूरों को सालों साल ठेका प्रथा का शिकार बनाए रखने का बहाना मिल गया है।
अभी तो मोदी सरकार ने 44 श्रम क़ानून ख़त्म कर चार लेबर कोड बना दिया है जिसे एक अप्रैल को लागू करना था जिसे भारी दबाव के चलते फिलहाल स्थगित कर दिया गया है। लेकिन जब ये क़ानून नहीं रहेंगे तब कंपनियों में मज़दूरों का क्या हाल होगा, इसकी बस कल्पना ही की जा सकती है।
एक जो सबसे महत्वपूर्ण बात है कि मज़दूरों के साथ जो रवैया पेश आता है, उसमें किसी की भी सरकार को, उसमें अंतर नहीं किया जा सकता। हरियाणा में बीजेपी की सरकार है जिसने सिंघु बॉर्डर के पास कुंडली औद्योगिक क्षेत्र में लॉकडाउन के दौरान का बकाया पैसा दिलाने वाली मज़दूर नेता नवदीप कौर पर जबरन वसूली का आरोप लगाकर उत्पीड़न किया और 40 दिन जेल के अंदर रखा।
राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है, यहां भी कान्टिनेंटल इंजिन्स में वेतन समझौते की बात करने वाले मज़दूर नेताओं पर जबरन वसूली का केस दर्ज कर जेल के अंदर बंद कर दिया गया। बस अंतर इतना है कि बीजेपी के राज में पुलिस कुछ ज़्यादा ही लोहे के हाथों से निपटती है।
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