मेनका गांधी के लिए एक गर्भवती मज़दूर महिला से बड़ा है गर्भवती हथिनी का दुख?
By संदीप राउज़ी
एक गर्भवती मज़दूर औरत लॉकडाउन में पैदल ही अपने परिजनों के साथ घर को निकलती है। रास्ते में उसे प्रसव पीड़ा होती है और वो एक बच्चे को जन्म देती है। राहगीर महिलाएं इस प्रसव में मदद करती हैं। बच्चे का नाभिनाल काटा जाता है।
वो मज़दूर औरत जन्म देने के एक घंटे बाद ही नवजात को गोद में उठाए फिर अपने घर को निकल पड़ती है, लेकिन किसी मंत्री या किसी सत्तारूढ़ पार्टी के सांसद को ये ख़बर आक्रोशित नहीं करती। बल्कि पूरे लॉकडाउऩ के दौरान ऐसी सैकड़ों ख़बरों से वे अनजान बने रहते हैं।
इन सांसदों और मंत्रियों को गुस्सा तब आता है जब एक गर्भवती हथिनी की मौत हो जाती है। इंसानों के मारे जाने पर हद दर्ज़े तक पत्थर बना इस देश का मीडिया भी संवेदनशील हो जाता है। और फिर जो होता है वो हम दो दिन से सोशल मीडिया पर देख रहे हैं।
मल्लापुरम में एक गर्भवती हथिनी की दर्दनाक मौत होने के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी सांसद मेनका गांधी ने न केवल कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पर तंज कसा बल्कि इसे सांप्रदायिक रंग देने कोई कसर नहीं छोड़ी।
मेनका ने ट्वीट कर कहा, ‘मल्लापुरम जानवरों के साथ इस तरह की घनघोर आपराधिक घटनाओं के लिए जाना जाता है। एक भी शिकारी के ख़िलाफ़ आजतक कोई कार्यवाही नहीं हुई ताकि वे अपनी करतूत जारी रख सकें।’
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Mallapuram is know for its intense criminal activity specially with regards to animals. No action has ever been taken against a single poacher or wildlife killer so they keep doing it.
I can only suggest that you call/email and ask for action pic.twitter.com/ii09qmb7xW— Maneka Sanjay Gandhi (@Manekagandhibjp) June 3, 2020
इसके बाद उन्होंने केरल राज्य के जंगल विभाग से जुड़े अधिकारियों मंत्रियों के फ़ोन नंबर सार्वजनिक किए और लोगों से उन्हें फ़ोन करके कार्यवाही के लिए दबाव बनाने की अपील की।
यही नहीं केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर भी ट्वीट किया, “हम इस घटना की उचित जांच करने और दोषियों को पकड़ने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे. पटाखे खिलाना और हत्या करना भारतीय संस्कृति में शामिल नहीं हैं।’’
ये वो नेता और मंत्री हैं जिनके मुंह से अभी तक महापलायन के दौरान सड़कों, रेल पटरियों पर और ट्रेनों में मरते प्रवासी मज़दूरों के लिए उफ़ तक नहीं निकला।
मेनका गांधी के ट्विटर हैंडल पर लॉकडाउन के दौरान कुत्तों और जानवारों की परेशानियों का ज़िक्र और उनकी फ़ोटो के साथ कई ट्वीट हैं लेकिन पटरी पर मारे गए, ट्रकों के नीचे दबे, भूख प्यास से ट्रेनों में मरे पड़े मज़दूरों को लेकर एक भी ट्वीट नहीं है।
मेनका गांधी ने कहा है कि हथिनी की मौत हत्या है, तो जावडे़कर कहते हैं कि इसकी जांच होनी चाहिए।
लेकिन सरकारी आंकड़ों के ही हिसाब से श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में 80 मज़दूरों की मौत हो गई। अपने घरों को लौटते 600 से अधिक मज़दूर रास्ते में ही अपनी जान गंवा बैठे, क्या ये मौतें हत्या नहीं हैं, क्या क्या इनकी जांच नहीं होनी चाहिए?
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मोदी सरकार और उनके मंत्री सांसद मज़दूरों की मौतों और उनकी परेशानियों से लगातार ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहे हैं। कभी तबलीगी जमात तो कभी पाकिस्तान चीन लेकिन अभी तक उन्हें कामयाबी नहीं मिली।
इसी कड़ी में हथिनी की मौत को भी धार्मिक रंग दे कर मज़दूरों की तकलीफ़ों से ध्यान भटकाने की कोशिश की गई। मोदी सरकार के इस नापाक मंसूबे में मीडिया ने हमेशा की तरह बढ़चढ़कर हिस्सा लिया।
यहां तक कि एनडीटीवी ने इस ख़बर को ऐसे परोसा जैसे पत्रकार आखों देखा हाल बता रहा हो।
मोदी के छह साल के कार्यकाल का ये एक ढर्रा बन चुका है कि फ़ेक न्यूज़ गढ़ी जाती है और फिर गोदी मीडिया के पत्रकार और बीजेपी आरएसएस के मंत्री नेता इसमें घी डालकर उसे देश का प्रमुख मुद्दा बना देते हैं। और बीजेपी आईटी सेल का गिरोह उसे ट्रेंड और वायरल कराने में जुट जाता है।
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अगर ध्यान से देखें तो हथिनी की मौत के मामले में भी वही ढर्रा दिखाई देता है। प्लांटेड ख़बर, बयानबाज़ी और सोशल मीडिया पर हंगामा।
लेकिन कई लोग पूछ रहे हैं कि औरंगाबाद रेल हादसे में 16 मज़दूरों की मौत हो गई थी, उत्तरप्रदेश के औरैया जिले में ट्रक हादसे में 24 मज़दूर की मौत हो गई थी, मेनका गांधी और प्रकाश जावड़ेकर को इस पर गुस्सा कब आएगा?
जिन लोगों ने इस देश की अर्थव्यस्था को 2.94 ट्रिलियन डॉलर तक पहुचाने में साथ निभाया है, जिन के कंधों पर इस की 85 फीसदी अर्थव्यस्था टिकी हुई है, उनकी मौत कीड़ों मकोड़ों तरह हो रही है और पीएम से लेकर इन नेताओं की ज़बान पर ताला लगा हुआ है।
पटाखा खिलाने की ख़बर फर्ज़ी थी?
बुधवार को जब ख़बर आई थी तो उसमें कहा गया था कि भारी बारिश से अपना रास्ता भटक कर रिहाईशी इलाके में पहुंची हथिनी पानी में खड़ी थी और पटाखों से भरा अनानास खाने से उसके मुंह में ही विस्फ़ोट हो गया।
एनडीटीवी ने लिखा कि किसी ने उसे जानबूझ कर पटाखों से भरा फल दिया था और विस्फ़ोट के बाद उसका मुंह बुरी तरह घायल हो गया। इसके बाद आए बचावकर्मियों की काफ़ी कोशिशों के बाद भी वो पानी से नहीं निकली और आखिर वहीं पर भूख प्यास से उसकी मौत हो गई।
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इस दिल दहला देने वाली ख़बर के बाद सोशल मीडिया पर इंसानी क्रूरता के ख़िलाफ़ आक्रोश ज़ाहिर किया जाने लगा।
लेकिन दूसरे दिन इन ख़बरों का खंडन भी आ गया कि असल में पटाखों से भरा फल किसी दूसरे जंगली जानवर के लिए रखा गया था।
‘लल्लनटॉप’ की रिपोर्ट के अनुसार ‘वन्य अधिकारियों ने हथिनी को फटाकों से भरा अनानास खिलाने वाली बात को फर्जी बताई है उनका कहना है कि आमतौर पर जंगली इलाकों में लोग जानवरों से बचने के लिए इस तरह का तरिका अपनाते हैं जिसे हथिनी ने खा लिया होगा’।
लेकिन तबतक इस मामले में मोदी सरकार के मंत्री और बीजेपी के कई नेता कूद चुके थे और उसे केरल में सत्तारूढ़ दलों पर निशाना साधने का ज़रिया बना लिया, ताकि मज़दूरों और किसानों की समस्याओं से ध्यान भटकाया जा सके।
लेकिन लाख टके का सवाल है कि क्या मोदी सरकार इसमें क़ामयाब हो पाएगी? क्या मज़दूर वर्ग अपने पीठ पर लगे जख़्म को भूल पाएगा।
पूछा तो ये भी जाना चाहिए कि लॉकडाउन में गर्भवती महिलाओं के लिए मोदी सरकार ने क्यों नहीं अलग नियम बनाकर उनकी सुविधा का इंतज़ाम किया, जबकि इन औरतों को पैदल चलते, ट्रेन में, पुलिस की गाड़ी में बच्चे को जन्म देना पड़ा?
या उन महिलाओं के बारे में मेनका गांधी या प्रकाश जावड़ेकर ने अभी तक अपना गुस्सा क्यों नहीं दिखाया, जो कोरोना के समय में भी जेलों में बंद हैं। बल्कि सीएए एनआरसी के ख़िलाफ़ प्रोटेस्ट में शामिल एक गर्भवती छात्रा सफ़ूरा ज़रगर को इसी दौरान गिरफ़्तार कर जेल में डाला दिया जाता है और ज़मानत न मिलने का पूरा इंतज़ाम तक कर दिया जाता है?
या गर्भवती हथिनी की मौत, राजनीति की रोटियां सेंकने वाले मुहावरे के रूप में इस्तेमाल हो रहा है?
(लेखक वर्कर्स यूनिटी के संस्थापक संपादक हैं।)
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