कोरोना के समय 16 जन संगठनों पर तेलंगाना सरकार के बैन का बढ़ा विरोध, कोर्ट में होगा चैलेंज
तेलंगाना सरकार ने 16 जन संगठनों को माओवादी पार्टी का फ्रंटल संगठन करार देते हुए उन पर प्रतिबंध लगा दिया है जिसका कई सामाजिक संगठनों ने विरोध किया है। इन संगठनों में प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन भी है जिसके
टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक खबर के अनुसार, रविवार को मानवाधिकार संगठनों के लोगों ने तेलंगाना की टीआरएस सरकार से तत्काल इन संगठनों पर प्रतिबंध हटाने की मांग की है।
इन 16 संगठनों में रेवोल्यूशनरी राइटर्स एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए- विरसम), तेलंगाना विद्यार्थी वेदिका (TVV), तेलंगाना विद्यार्थी संगम (TVS), डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स यूनियन (DSU), आदिवासी स्टूडेंट्स यूनियन सहित कुल 16 संगठन हैं जिन्हें तेलंगाना सरकार ने प्रतिबंधित किया है।
रिवोल्यूशनरी राइटर्स एसोसिएशन की स्थापना क्रांतिकारी कवि वरवर राव ने की थी, जोकि बीते दो साल से भीमाकोरेगांव हिंसा मामले में जेल में बंद थे। 80 साल के वरवर राव की सेहत खराब होने के कारण उन्हें हाल ही में ज़मानत दी गई है।
सिविल लिबर्टीज़ कमेटी के अध्यक्ष लक्ष्मण गडदम ने रविवार को हैदराबाद में एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि ये संगठन कभी भी माओवादी पार्टी के समर्थक नहीं रहे हैं और सरकारी आदेश को उपयुक्त अदालत में चुनौती दी जाएगी।
उन्होंने कहा कि इन संगठनों पर लगाए गए आरोप निराधार हैं और किसी संगठन पर प्रतिबंध लगाने के लिए ट्रिब्यूनल बनाने संबंधी कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। इन संगठनों ने कभी भी माओवादियों का समर्थन नहीं किया। जबकि दूसरी तरफ तेलंगाना आंदोलन के दौरान टीआरएस प्रमुख के चंद्रशेखर राव ने कहा था कि माओवादियों का एजेंडा उनका एजेंडा है।
सिविल लिबर्टीज़ कमेटी के सदस्यों ने कहा कि रिवोल्यूशनरी राइटर्स एसोसिएशन पर इसी तरह 2006 में कांग्रेस सरकार ने गैरकानूनी तरीके से बैन लगाया था जिसे चुनौती दी गई थी। कांग्रेस की तरह ही टीआरएस सरकार ने ये बैन लगाया है।
उधर, भगतसिंह छात्र मोर्चा ने बयान जारी कर कहा है कि ‘आज जब पूरा देश कोरोना वायरस और बदहाल स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण चरमरा गया है, जनता किसी तरह अपनी जान बचाने की कोशिश में है, तब तेलंगाना की राज्य सरकार और मोदी की केंद्र सरकार जनवादी- लोकतांत्रिक संगठनों को प्रतिबंधित करने में जुटी है। यह सीधे-सीधे जनता और इसके संघर्षों पर एक और हमला है।’
बयान के अनुसार, ‘पूरे देश में अभी ऑक्सिजन, बेड, दवाईओ को लेकर मारामारी चल रही, हज़ारों लोग अपनी जान गवाँ चुके हैं तब सरकारें जनता की सच्ची आवाज़ को दबाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाह रही। संगठनों को प्रतिबंधित करके सरकार विरोध की आवाज़ को दबाकर देश को जेल बना देना चाहती है।’
बयान के अनुसार, ‘2018 में भीमाकोरेगाँव हिंसा के मामले में सुधा भारद्वाज, वरवरा राव, रोना विल्सन, शोमा सेन, वर्णन गोंजालवेज आदि को जेल में कैद कर रखा है वहीं हिंसा के असली जिम्मेदार संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोटे मोदी-अमित शाह की शह पर खुले खुले घूम रहे हैं। पिछले साल 2020 में भी फासीवादी मोदी सरकार ने कोरोना आपदा को अवसर बनाते हुए दर्जनों झूठी गिरफ्तारियां की और सभी को जेल में भर दिया जिनमें उमर खालिद, मशरत ज़हरा, हैनी बाबू, देवांगना, नताशा आदि शामिल हैं।’
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