कॉलेज और यूनिवर्सिटी को ब्राह्मणवादी प्रोपेगैंडा की नर्सरी में बदलने की साजिशः शिक्षा की सर्वनाश नीति-5
By एस. राज
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का विरोध लगभग समस्त प्रगतिशील व जनवादी तबकों द्वारा किया जा रहा है जो इसे अपवर्जन और गैर-बराबरी पर आधारित नीति बता रहे हैं, जिससे छात्रों की एक विशाल आबादी जो गरीब व मेहनतकश तबके से आती है वह शिक्षा व्यवस्था से और दूर कर दी जाएगी एवं जिससे सामाजिक-आर्थिक गैर-बराबरी और अधिक बढ़ेगी।
यह पूरी तरह सही भी है, लेकिन NEP इससे भी ज्यादा खतरनाक परिणामों को अंजाम देगा जिसपर ध्यान डालना अतिआवश्यक है।
जो नीति आक्रामक रूप से शिक्षा में अपवर्जन, अनौपचारिकरण, निजीकरण-बाजारीकरण करने के साथ उसका भगवाकरण या फासिवादीकरण करते हुए उसे पूरी तरह फासीवादी शासकों के कब्जे में डाल देती हो, वह शिक्षा को चंद सुधारों से महज चोट नहीं पहुचाएगी बल्कि शिक्षा को पूरी तरह बर्बाद कर देगी।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, जो केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध है, को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह कोई सामान्य उदारवादी शिक्षा नीति नहीं बल्कि फासिस्टों द्वारा लाइ गई एक नीति है। इतिहास में फासिस्टों को क्या कभी शिक्षा व ज्ञान की प्रगति की जरूरत हुई है? कभी नहीं। उनकी मंशा शिक्षा के प्रसार और ज्ञान के विकास की नहीं, बल्कि उनके पतन की रही है।
शिक्षा और ज्ञान फासिस्टों के दुश्मन हैं, जिनका राज ही झूठ और मिथकों पर टिका होता है। इसलिए शिक्षा का नाश और समाज की बौद्धिक संरचना पर लगातार चोट करना फासिस्टों के मुख्य लक्ष्यों में से है।
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समाजद्रोही नीति
किसी क्षेत्र में वैज्ञानिक स्वभाव व प्रक्रिया एवं वस्तुगत मेथडॉलोजी पर आधारित अनुसंधान का विकास फासीवादी शासन, जिसका पूरी तरह समेकित होना अभी शेष है, के लिए घातक साबित होगा।
परिणामतः ऐसे शासन में अनुसंधान का मतलब झूठ की खेती और ज्ञान की हत्या से ज्यादा और कुछ नहीं रह जाएगा। दरअसल फासिस्टों को एक ऐसी शिक्षा प्रणाली चाहिए जिसमें झूठ, मिथक, छल, हिंसा, साजिश, अपराध आदि ही पढ़ाए जाएं।
NEP जैसी दीर्घकालिक नीति यह सुनिश्चित करेगी कि सभी यूनिवर्सिटी एवं कॉलेज कैम्पसों से शिक्षा व जनवादी स्पेस को ध्वस्त कर दिया जाए, ताकि वह फासिस्टों की अभिजनन भूमि (ब्रीडिंग ग्राउंड) और बौद्धिक कंसंट्रेशन कैंप में तब्दील हों।
अभी ही यह होते हुए देखा जा सकता है। आइआइटी व अन्य प्रसिद्ध विज्ञान व अनुसंधान संस्थानों को गौमूत्र व गोबर पर रिसर्च करने को कहा जा रहा है। विज्ञान के भिन्न मंचों पर मिथकों व पौराणिक कहानियों को ऐतिहासिक तथ्यों की तरह पेश किया जा रहा है।
इसे ही अब आम बात (न्यू नॉर्मल) कहा जाएगा। इतिहास को झूठ के पुलिंदों से भर कर पेश किया जाएगा। विज्ञान और वैज्ञानिक स्वभाव को बर्बाद कर इन संस्थानों को फासिस्टों की सेवा में लगाया जाएगा।
NEP के लागू होने से जरूर एक विशाल गरीब आबादी शिक्षा से वंचित कर दी जाएगी, लेकिन अमीरों को भी कोई असली शिक्षा, विशेषतः उच्च शिक्षा जो पहले से ही शासकों के निशाने पर रही है, प्रदान नहीं की जाएगी।
अतः NEP गरीब-विरोधी होने के साथ पूर्णतः शिक्षा-विरोधी है, और इसलिए यह समाज द्रोही और मानव द्रोही भी है।
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विरोध नहीं दमन का साथ देना सीखेंगे छात्र
फासिस्ट यह भली-भांति समझते हैं कि असली शिक्षा किसी को भी, चाहे वह उच्च वर्गों से भी क्यों न आते हों, चेतनाशील बना सकती है और अन्याय के विरुद्ध और यहां तक की अन्याय पर टिकी इस व्यवस्था के विरुद्ध भी लड़ने के लिए तैयार कर सकती है।
वे पूंजीवाद के अंतर्गत हो रहे मानवता के विनाश के बुनियादी कारकों का ज्ञान हासिल करते हुए मानवता के दुश्मनों के खिलाफ आवाज बुलंद करना सीख सकते हैं।
शिक्षा व अनुसंधान के विध्वंस की चाह फासिस्टों में भी इसलिए है क्योंकि वह इसकी संभावना को समझते हैं। एक असली, वस्तुगत और वैज्ञानिक ज्ञान के कारण अंततः क्रिटिकल सोच और प्रगतिशील एवं सामाजिक प्रगति के विचारों का उदय होता है।
उससे सामाजिक प्रगति के रास्ते में खड़े ऐतिहासिक रुकावटों की भी पहचान होती है।
असल रूप में कोई भी अनुसंधान हमें आंतरिक सामान्य नियमों से नियंत्रित होने वाली इतिहास की सतत गति को, और पुराने समाज के अवशेषों पर नए समाज की स्थापना को मानने वाले एक क्रांतिकारी विचार की पहचान की ओर ले जाता है।
जाहिर है, ऐसे विचार का प्रसार समाज के फासिवादीकरण के अजेंडा से सीधे टकराता है।
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बुनियाद को ध्वस्त करने की मंशा
इसलिए फासिस्ट किसी भी रूप में असली ज्ञान व अनुसंधान से घृणा करते हैं और उसे बर्बाद करने के लिए सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में निजीकरण व मुनाफाखोरी को बढ़ावा देते हुए किए जा रहे लगातार नवउदारवादी एवं फासीवादी हमले शिक्षा की बुनियाद को ही ध्वस्त कर ‘अशिक्षा’ को प्रतिस्थापित करेंगे, जो कि जनतंत्र को ही ध्वस्त करने के लिए आवश्यक है।
शिक्षा व्यवस्था किसी अन्य उत्पादक क्षेत्र जैसी नहीं होती। इसमें जो भी उत्पादन होता है यानी जिस प्रकार की शिक्षा प्रसारित होती है, वह समाज के साथ-साथ फासिस्टों के लिए भी काफी मायने रखती है।
आज जब एक फासीवादी सरकार एक दीर्घकालिक व देशव्यापी शिक्षा नीति को ला रही है तो हमारे लिए इसके पीछे के उसके लक्ष्य को ठीक से समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है, और उसे NEP-विरोधी अभियान में भी सामने लाना जरूरी है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को हर एक व्यक्ति द्वारा हर तरफ से खारिज किया जाना चाहिए। (समाप्त)
(पत्रिका यथार्थ से साभार)
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