मज़दूर का शव लेकर फ़ैक्ट्री गेट पर करते रहे प्रदर्शन, मुआवज़ा तो दूर अफसोस जताने भी नहीं आया मैनेजमेंट
By नरेश कुमार, फ़रीदाबाद संवाददाता
फ़रीदाबाद में एक फ़ैक्ट्री के मज़दूर की मौत के बाद परिजनों ने गेट पर शव रख कर प्रदर्शन किया लेकिन न तो फ़ैक्ट्री के प्रबंधन ने इस बारे में आगे आकर बात की ना ही श्रम विभाग का कोई अधिकारी पहुंचा।
फ़रीदाबाद सेक्टर 24 प्लॉट नंबर 84 -85 स्थित फैक्ट्री कबीरा हाइड्रोलिक प्रेस प्राइवेट लिमिटेड के सामने 16 अक्टूबर की शाम 4:00 बजे के एक परिवार व उनके साथ अन्य परिजन व पड़ोसियों ने मिलकर प्रदर्शन किया।
प्रदर्शनकारी फैक्ट्री गेट पर मज़दूर के शव को रख कर प्रदर्शन कर रहे थे। इस संवाददाता ने जब प्रदर्शनकारियों से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि कबीरा फैक्ट्री में कार्यरत रोहित नामक लगभग 30 वर्षीय मजदूर कुछ दिनों पहले घायल हो गया था। फैक्ट्री मालिक ने ही उसे अस्पताल में भर्ती कराया था और शनिवार सुबह रोहित की मौत हो गई।
मौत होने के बाद पोस्टमार्टम हो गया और इधर मालिक ने फैक्ट्री के अन्य सभी मजदूरों के बीच छुट्टी की घोषणा कर फैक्ट्री बंद कर दी। काफ़ी देर तक प्रदर्शनकारी फैक्ट्री गेट पर प्रदर्शन करते रहे परंतु मालिक या मैनेजमेंट की तरफ से कोई प्रतिनिधि प्रदर्शनकारियों से बातचीत करने नहीं आया।
प्रदर्शनकारियों का साथ दे रहे वार्ड नंबर 3 के पार्षद जगबीर खटाना ने मीडियाकर्मियों को बताया, “हम सिर्फ चाहते हैं कि मृतक मजदूर के परिजनों को वाजिब मुआवजा मिले। जो हो गया उसे कोई नहीं लौटा सकता और हम प्रयास करेंगे कि परिजनों को इंसाफ़ मिल सके।”
उन्होंने यह भी बताया कि ‘थाने में एसएचओ ने मालिक को और परिजनों को बुलाया है, हमें वहां सकारात्मक बातचीत और फैसले की समझौते की उम्मीद है।’
विश्वस्त सूत्रों ने यह भी बताया कि रोहित के साथ यह दुर्घटना एक क्रेन पर काम करते के दौरान हुई। क्रेन की स्पीड बहुत ज्यादा थी जो कई दिनों पहले से मालिक के संज्ञान में थी मगर मालिक स्पीड को कम कराने में लापरवाही बरतता रहा और आखिरकार लापरवाही से एक मज़दूर की जान चली गई। रोहित के बच्चे अनाथ हो गए, उसकी पत्नी विधवा हो गई।
फैक्ट्री में कार्यरत एक अन्य मजदूर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि ‘फैक्ट्री में किसी तरह की कोई सुरक्षा व्यवस्था नहीं है। तमाम तरह के ख़तरे उठा कर काम करना ही पड़ता है। ईएसआई पीएफ जैसी सुविधा भी कुछ मजदूरों को ही मिलती है।’
उन्होंने आगे बताया कि, ‘बहुत कम तनख्वाह मिलती है, मज़दूरों के लिए बने ढेर सारे कानूनों का इस फैक्ट्री में कोई मतलब नहीं है। मालिक फैक्ट्री वर्करों पर रोब जमाना, डांटना फटकारना करता रहता है। जिस किसी ने आवाज उठाई वह फैक्ट्री से बाहर हो जाता है। फैक्ट्री मालिक ने बहुत शातिराने ढंग से वर्करों के बीच में ही अपने जासूस चमचे बना रखे हैं ,जो फैक्ट्री वर्करों में फूट डाले रखते हैं और उन्हें एकजुट नहीं होने देते।’
एक अन्य मजदूर नेता ने बताया कि फरीदाबाद की तमाम फैक्ट्रियों में अक्सर दुर्घटनाएं होती रहती हैं ,और ज्यादातर दुर्घटनाएं मालिक की लापरवाही और सुरक्षा व्यवस्था पर होने वाले खर्च को बचाने की कोशिश के कारण होती हैं।
लखानी अग्निकांड इसका एक बड़ा उदाहरण है। लेकिन फरीदाबाद का श्रम विभाग चैन की नींद सोया रहता है, या मालिकों के साथ उनकी मिलीभगत चलती रहती है। जब तक मज़दूर अपने एकता के दम पर सुरक्षा व्यवस्थाओं को लागू नहीं करवाएंगे तब तक यह दुर्घटना आए दिन होती रहेंगी।
इस घटना के समय भी देखिए,- ना लेबर विभाग की तरफ से कोई प्रदर्शनकारियों से बातचीत करने आया , ना फ़रीदाबाद में मजदूरों के बीच में काम करने वाले कई संगठन है उनमें से कोई आकर इन मजदूरों के साथ खड़ा हुआ।
ये मज़दूर एक पार्षद के नेतृत्व में प्रदर्शन कर रहे हैं और अब उम्मीद है कि पार्षद के नेतृत्व में किसी एक रकम पर समझौता हो जाएगा और मामला ठंडे बस्ते में चला जाएगा, यहां तक कि इस मौत पर कोई एफ़आईआर तक दर्ज नहीं की जाएगी।
लेकिन इन सवालों को कौन उठाएगा कि फरीदाबाद में हजारों की संख्या में अंग भंग हुए लोग हैं जो इसी तरह की दुर्घटनाओं के शिकार हैं। सैकड़ों लोग होंगे जो इन फैक्ट्रियों में अपनी जान गवां चुके हैं।
लेकिन यह सिलसिला रुकता नहीं है, और इसे रोकने के लिए कहीं से भी कोई प्रयास नजर नहीं आता। ना सरकार की तरफ से कोई प्रयास आता है ना ही मजदूर संगठनों की तरफ से कोई आवाज उठती है ना ही मजदूरों के बीच ही कोई ऐसी है खलबली या आक्रोश ऐसी घटनाओं के प्रति आज दिख रहा है।
मज़दूर एकजुट नहीं हैं, इसके कई कारण हो सकते हैं। मगर समय की सबसे बड़ी जरूरत यह है कि मज़दूरों को एकजुट होना ही पड़ेगा।
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