चार साल की चुप्पी के बाद मामूली अंतरिम राहत देने पर फूटा गुस्सा, इंटरार्क मज़दूरों की आंदोलन की चेतावनी
चार सालों से वेतन समझौता न होने और इसकी जगह अपने साथियों के टर्मिनेशन, सस्पेंशन और उत्पीड़न को लेकर आखिरकार रुद्रपुर में स्थित इंटरार्क कंपनी के मज़दूरों का गुस्सा फूट पड़ा है।
पिछले डेढ़ साल से कोविड के दौरान मैनेजमेंट विपरीत आर्थिक स्थिति का बहाना बना रहा था लेकिन इस बार मैनेजमेंट और इसके स्टाफ़ की सैलरी में बढ़ोत्तरी की गई, जबकि वर्करों की सैलरी में 1000 से 1200 रुपये की अंतरिम राहत की घोषणा की गई थी।
मज़दूर यूनियन का कहना है कि मैनेजमेंट को इस बारे में यूनियन से बातचीत करनी चहिए और 2018 के बाद से जो समझौता वार्ता नहीं हुई है, उसे तत्काल करने की ज़रूरत है। अंतरिम राहत लेने से यूनियन ने इनकार कर दिया है और कंपनी गेट पर प्रदर्शन किया है।
इन्टरार्क बिल्डिंग प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड कंपनी पंतनगर जिला उधमसिंह नगर, उत्तराखंड में है और बीते कई सालों से मैनेजमेंट और वर्करों के बीच वेतन समझौते को लेकर विवाद चलता आ रहा है।
उत्तराखंड में कंपनी के दो प्लांट हैं- एक रुद्रपुर में और दूसरा इससे कुछ ही दूर किच्छा औद्योगिक इलाके में।
इस संबंध में यूनियन ने सहायक श्रमायुक्त से यूनियन की अवमानना व अनुचित श्रम व्यवहार पर रोक लगाने की अपील की है। यूनियन का कहना है कि मैनेजमेंट ने यूनियन के द्वारा 13 जुलाई को दिए गए मांग पत्र पर सुनवाई करने की बजाय उकसावेपूर्ण कार्यवाही कर औद्योगिक अशांति का वातावरण पैदा करने की कोशिश की है।
ताज़ा विवाद की जड़ मैनेजमेंट की ओर से लगाया गया वो नोटिस है जिसमें कहा गया है कि यूनियन पदाधिकारियों द्वारा मांग पत्र पर हठधर्मिता का प्रदर्शन करते हुए अडे़ रहने की वजह से मांग पत्र पर कोई सम्मानजनक समझौता संपन्न नहीं हो सका।
यूनियन के नेता दलजीत सिंह का कहना है कि सहायक श्रमायुक्त ने 13 जुलाई के मांगपत्र पर एक नोटिस जारी करते हुए शांतिपूर्ण तरीके से द्विपक्षीय वार्ता करने को कहा गया था। बावजूद इसके प्रबंधन से बार-बार अनुरोध किया गया और फिर भी कोई वार्ता नहीं हुई। प्रबंधन ने हठधर्मिता का परिचय देते हुए मांग पत्र पर कोई भी चर्चा नहीं की।
यूनियन से जुड़े वीरेंद्र पटेल ने बताया कि जबसे मांगपत्र पर बातचीत करने का दबाव दिया जा रहा है, मैनेजमेंट एक एक कर मज़दूरों को निशाना बना रही है और अबतक 35 मज़दूरों को गैरकानूनी तरीके से टर्मिनेट कर दिया गया है।
पटेल का कहना है कि नोटिस बोर्ड पर एडहॉक – 1 का नोटिस चिपकाया गया है जिसमें झूठा आरोप लगाया गया है और प्रबंधन द्वारा अब तक वार्ता की अगली तारीख तक नहीं बताई गई है।
यूनियन का कहना है कि इस नोटिस में मैनेजमेंट जो दावा किया है वो बिना यूनियन से बातचीत किए किया गया है। यूनियन को विश्वास में लिए बिना ही श्रमिकों को 1000/- ,1100/-व 1200/- रुपये प्रतिमाह की अंतरिम राहत देने की एकतरफा घोषणा कर दी गई है।
दलजीत सिंह का कहना है कि इस एकतरफ़ा अंतरिम राहत के विरोध में सहायक श्रमायुक्त को पत्र लिखा गया था और आपत्ति दर्ज की गई थी। इसमें स्पष्ट रुप से उल्लेख किया गया है कि प्रबंधन यूनियन पदाधिकारियों के साथ मांग पत्र पर सम्मानजनक समझौता संपन्न करें। और यूनियन द्वारा किया गया समझौता ही श्रमिकों को मान्य होगा।
यूनियन ने सहायक उप श्रमायुक्त को लिखे पत्र में कहा है कि साल 2020 में दिए गए मांग पत्र पर वार्ता हेतु शिकायत की गई थी लेकिन प्रबंधन द्वारा अब तक एक भी वार्ता नहीं की गई है। बीते 4 सालों से श्रमिकों के वेतन में वृद्धि न करना प्रबंधन की हठधर्मिता व श्रमिकों की समस्याओं के प्रति संवेदनहीनता का ज्वलंत उदाहरण है।
यूनियन ने आरोप लगाया है कि मैनेजमेंट यूनियन के प्रति नकारात्मक रुख़ रखता है और चरम महंगाई के दौर में मात्र 1000/- रु,1100/-रू,1200/-रू, की अंतरिम राहत की घोषणा करना प्रबंधन के श्रमिकों की समस्याओं के प्रति असंवेदनशील रुख व उकसावे पूर्ण कार्यवाही को ही प्रदर्शित करता है। प्रबंधन का रुख स्पष्ट करता है कि प्रबंधन हमारी पंजीकृत यूनियन को मान्यता नहीं दे रहे हैं।
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