आरक्षण ख़त्म, यूजीसी ख़त्मः क्या मज़दूरों के बच्चे यूनिवर्सिटी का मुंह नहीं देख पाएंगे?

आरक्षण ख़त्म, यूजीसी ख़त्मः क्या मज़दूरों के बच्चे यूनिवर्सिटी का मुंह नहीं देख पाएंगे?

By वर्कर्स यूनिटी डेस्क

छंटनी और वीआरएस के माध्यम से सैलरी में भारी कमी लाने की कारगुजारियों के बाद मोदी सरकार ने नई शिक्षा नीति 2020 का ऐलान कर मज़दूरों के बच्चों का यूनिवर्सिटी कॉलेजों में दाखिले का रास्ता भी रोक दिया।

सरकारी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को अनुदान और मेधावी बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए वजीफ़ा देने वाले यूजीसी (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) को ख़त्म करने की घोषणा की है।

इस नीति की घोषणा करने के लिए बकायदा स्कूल, कॉलेजों के 31 अगस्त तक बंद कर दिया गया ताकि कोई विरोध प्रदर्शन न हो सके।

इस नीति में मातृभाषा में पांचवीं कक्षा तक पढ़ाई का लॉलीपॉप देकर, मोदी सरकार ने बीए को चार साल का कर दिया है।

नई शिक्षा नीति पर सरसरी निगाह डालने से पता चलता है कि देश में रही सही सरकारी शिक्षा को मोदी सरकार ने पूंजीपतियों के हवाले करने की ठान ली है।

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एक नज़र नई नीति पर

1- उच्च शिक्षा को तीन स्तर – रिसर्च यूनिवर्सिटी, टीचिंग यूनिवर्सिटी और डिग्री कॉलेज में बांटा जाएगा।

2- साल 2035 तक यानी अगले 15 सालों में कॉलेजों का विश्विद्यालयों से संबंद्धता (अफिलियेशन) को ख़त्म कर दिया जाएगा। इसका मतलब ये है हुआ कि कॉलेज अनाप शनाप फीस बढ़ाकर अपना फंड खुद इकट्ठा करेंगे।

3- देश में उच्च शिक्षा के 50,000 सरकारी संस्थानों को प्राईवेट कंपनियों के साथ मर्जर, क्लोजर और टेक ओवर की नीति के जरिये बेच दिया जाएगा और सिर्फ 15,000 सरकारी संस्थान बचेंगे। 3000 छात्रों से कम दाखिले वाले कलेजों को बंद कर दिया जाएगा।

4- IIT/IIM/IIMC जैसे विशिष्ट संस्थानों को या तो बंद कर दिया जाएगा या उनमें विशिष्ट विषयों के अलावा सारे विषय पढ़ाए जाएंगे।

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5- सरकार हर सरकारी विश्वविद्यालय, कॉलेज, शिक्षण संस्थान को फंड नहीं देगी, उन्हें अपनी व्यवस्था खुद करनी होगी, चाहे वो अपनी ज़मीन बेचे, लोन ले या फ़ीस बढ़ाए। यानी सरकार अपनी वित्तीय जिम्मेदारी से मुक्त।

6- प्रत्येक सरकारी संस्थान बोर्ड ऑफ गवर्नर के हवाले होगा। वही पैसे के जुगाड़ से लेकर, शिक्षकों वेतन-भत्ते आदि पर फैसला लेगा। यानी संस्थान को सरकार की कठपुतली किसी व्यक्ति की तानाशाही के हवाले कर दिया जाएगा।

8 बीए/बीएससी चार साल का होगा और एमफ़िल को ख़त्म कर दिया जाएगा। पीएचडी के लिए 4 साल की बीए डिग्री काफी होगी।  अच्छी नौकरियों के लिए कम से कम बीए डिग्री ज़रूरी होती है। इसे चार साल का करने से मज़दूरों के बेटे बेटियां बाहर हो जाएंगे।

9- मानव संसाधन मंत्रालय ख़त्म कर राष्ट्रीय शिक्षा आयोग बनेगा और नेशनल हायल एजुकेशन रिसर्च अथॉरिटी बनाई जाएगी। यानी पूरी शिक्षा व्यवस्था अब प्राईवेट कंपनियों के हवाले होगी।

10- शिक्षा पर जीडीपी का 6% खर्च करने का लक्ष्य रखा गया है जबकि ये 1986 में ये लक्ष्य 10% था।

शिक्षा नीति के बाज़ारीकरण से किसको फायदा?

सरकारी शिक्षण संस्थान घटेंगे, ऑटोनॉमी से शिक्षा महंगी होगी, सरकारी हस्तक्षेप बढ़ेगा, भाषा और सामाजिक विज्ञान के विषयों की बाजार में मांग न होने से इन पर संकट बढ़ेगा। प्रोफेशनल कोर्सेज के संस्थान बंद होंगे और खिचड़ी संस्थान बनेंगे।

इसका मतलब ये हुआ कि अब भारतीय उद्योगपतियों को स्किल्ड लेबर की ज़रूरत नहीं रही। बढ़ते ऑटोमेशन के ज़माने में उन्हें एक अनपढ़ व्यक्ति को मशीन के एक पुर्जे की तरह इस्तेमाल करना है।

स्थायी नौकरी अब गुज़रे वक्त की बात होगी, एक पद पर नियुक्ति में अलग – अलग वेतन होगा। प्रमोशन बोर्ड ऑफ़ गवर्नर देगा और कार्य दक्षता का मूल्यांकन भी वही करेगा।

सरकार के ख़िलाफ़ बोलना मोदी सरकार में पहले ही अपराध बना दिया गया है, इस नीति के लागू होने के बाद नौकरी से हाथ धोना आम बात हो जाएगी।

महंगी शिक्षा के कारण बेदखली बढ़ेगी और आरक्षण का कहीं कोई जिक्र नहीं हैं तो आदिवासी, दलित और पिछड़ा तबका अब कभी किसी विश्वविद्यालय में न पढ़ पाएगा न पढ़ा पायेगा।

मीडिया और न्यूज़ चैनलों में इसे लेकर ऐसा माहौल बनाया जा रहा है जैसे ये कोई मोदी सरकार का ऐतिहासिक कदम है जिससे ग़रीब अमीर के बच्चे एक साथ शिक्षा पा सकेंगे।

लेकिन शिक्षा जगत के विशेषज्ञ बताते हैं कि सरकार उच्च शिक्षा को भी बेच खाने की नीति पर चल रही है।

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Workers Unity Team