‘जिन पांच सफ़ाई मज़दूरों की मौत हुई, वो अमरीकी कंपनी जेएलएल के मुलाज़िम थे’
नौ सितंबर को दिल्ली के मोती नगर में सेप्टिक टैंक में सफ़ाई करने के दौरान 5 मजदूरों की मौत हो गई। डीएलएफ़ कैपिटल ग्रीन के आवासीय पॉश कॉलोनी में यह घटना हुई है।
अरबों डॉलर की टर्नओवर वाली जेएलएल कंपनी ने जिस ठेकेदार को इस काम का जिम्मा दिया था, उसे गिरफ़्तार कर लिया गया है लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि क्या कंपनी पर मुकदमा दर्ज होगा कि नहीं!
हालांकि घटना का संज्ञान लेते हुए दिल्ली सरकार ने जांच के आदेश और मृतकों के परिजनों को 10 लाख रुपये के मुआवजा की घोषणा की है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस को नोटिस भेजा है।
जहां ये घटना हुई उसकी गहराई 35 फ़ुट जमीन के नीचे थी। यहां जाने का रास्ता बेसमेंट से होकर जाता है।
नई दिल्ली की डिप्टी कमिश्नर मोनिका भारद्वाज ने बताया कि कांट्रैक्टर ने रविवार को शाम तीन बजे सफ़ाई कर्मचारियों को भेजा था।
सबसे पहले सरफ़राज़ और पंकज उतरे। कोई सुरक्षा उपकरण नहीं लगाया था, सिवाय मुंह पर रुमाल के।
कुछ समय बाद जब वे नहीं निकले तो राजा और उमेश नाम के कर्मचारी सीवर में उतरे। जब कोई भी नहीं निकला तो अंत में विशाल को भेजा गया।
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विशाल जब अंदर मदद के लिए चिल्लाने लगा तब जाकर फॉयर और पुलिस डिपार्टमेंट को सूचना दी गई।
प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि ठेकेदार मौके से फरार हो गया। हालांकि बाद में उसे गिरफ्तार कर लिया गया।
इस पॉश मल्टीस्टोरी बिल्डिंग के डेवलपर डीएलएफ़ ने एक बयान में कहा है कि मेंटेनेंस का काम जेएलएल को सौंपा गया था।
अमरीकी कंपनी जेएलएल के कर्मचारी थे ये सफ़ाईकर्मी
जेएलएल रीयल इस्टेट डेवरलपर और मेंटेनेंस के अलावा हाउस कीपिंग की बहुत बड़ी अमरीकी कंपनी है।
इस अमरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनी की वेबसाइट के अनुसार, कंपनी का प्रसार 16 देशों में है और जिसका कुल वैश्विक व्यापार लगभग 400 अरब रुपये है।
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ये भारत के 11 बड़े शहरों में अपनी सेवाएं दे रही है। मुकदमा दर्ज होने से अगर कंपनी के कार्पोरेट हित को नुकसान पहुंचता है तो इसे भारत सरकार अपना नुकसान समझती है क्योंकि विदेशी निवेश के माहौल पर इससे असर पड़ता है।
भारत में चाहे जिसकी भी सरकार रही हो, 1992 में शुरू हुए वैश्विकरण के बाद से उसकी नज़र में पूंजी को ‘सुपर मानवाधिकार का दर्ज़ा’ मिल चुका है।
शायद यही कारण है कि डीएलएफ़ के अधिकारियों ने प्रेस को अन्दर नहीं आने की इजाज़त नहीं दी जिसे लेकर, वहां पहुंची राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की टीम के साथ कुछ समय तक हंगामा भी हुआ।
हर महीने होती है 40 सफ़ाई कर्मियों की मौत
इंडियन एक्सप्रेस की एक ख़बर के अनुसार, दिल्ली में पिछले पांच सालों में 2,403 सफ़ाई कर्मचारी रिटायरमेंट की उम्र से पहले मर गए।
सबसे अधिक 1,181 मौतें उत्तरी नगर निगम में हुईं हैं। विशेषज्ञों के अनुसार दिल्ली में हर महीने 40 सफ़ाई कर्मचारियों की मौत होती है। इनमें वो कर्मचारी भी शामिल हैं जि अन्य बीमारियों से रिटायरमें की उम्र तक नहीं पहुंच पाते।
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