बेलसोनिका: ठेका मज़दूर को यूनियन सदस्य बनाने का मामला इतना तूल क्यों पकड़ा?
By शशिकला सिंह
मात्र एक ठेका मजदूर को यूनियन की सदस्यता देने पर मानेसर स्थित बेलसोनिका के स्थायी मजदूरों की पंजीकृत यूनियन “बेलसोनिका ऑटो कंपोनेंट कर्मचारी यूनियन” को कंपनी प्रबंधन की शिकायत पर लेबर डिपार्टमेंट ने 26 दिसंबर 2022 को ‘कारण-बताओ नोटिस’ जारी कर मान्यता रद्द करने की चेतावनी दी है।
ये मुद्दा इतना बड़ा हो गया है कि यूनियन बॉडी में ही गहरा मतभेद पैदा हो गया है और बॉडी के आधे सदस्य इस लड़ाई को आगे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ले जाने की बात कर रहे हैं जबकि आधे सदस्य ठेका मज़दूर की सदस्यता को डिसमिस करके मामले को रफ़ादफ़ा करने की वक़ालत कर रहे हैं।
गुड़गांव इलाके में श्रम मामले देखने वाले एक वरिष्ठ वकील का कहना है कि अगर यूनियन में बिखराव हुआ तो पहले से तैयार बैठी मैनजमेंट इसी महीने से छंटनी की अपनी मंशा को अंजाम देना शुरू कर देगी। उनका कहना है कि पहले उस गुट की छंटनी की जाएगी जो लड़ाई को आगे ले जाना चाहते हैं और फिर उसका भी नंबर आएगा जो मामले को रफ़ा दफ़ा कर यहीं शांत करना चाहते हैं।
असल में श्रम विभाग ने ट्रेड यूनियन एक्ट (टी.यू.ए) 1926 तथा यूनियन के संविधान का हवाला देते हुए पूछा है कि क्यों न यूनियन की सदस्यता रद्द कर दी जाये, क्योंकि यूनियन ने कानून का उल्लंघन किया है।
श्रम आयुक्त ने ट्रेड यूनियन एक्ट 1926 के सेक्शन 10 के तहत यह नोटिस जारी किया है। इसी एक्ट के सेक्शन 4 और सेक्शन 6 (e) को कोट करते हुए कहा गया है कि संस्था और इंडस्ट्री से जुड़े लोग ही यूनियन के पंजीकरण और सदस्यता के लिए आवेदन कर सकते हैं।
हालांकि यूनियन के महासचिव अजीत सिंह का कहना है कि यूनियन के संविधान को विधिवत तरीके से 2021 में बदला गया और उसमें फ़ैक्ट्री में किसी भी वर्कर को यूनियन सदस्यता देने का प्रावधान जोड़ा गया और पूरी तरह क़ानूनी है।
क्या है पूरा मामला
बेलसोनिका यूनियन ने कंपनी में काम करने वाले एक अस्थाई/ठेका मज़दूर केशव राजपूत को 14 अगस्त 2021 को यूनियन की सदस्यता दी थी। यूनियन ने 2022 में दाखिल किए गए आयकर रिटर्न में इस नए सदस्य के बारे में जानकारी दी है।
इस नोटिस और प्रबंधन और लेबर ऑफ़िस के दबाव के बीच यूनियन के नेतृत्व में ठेका मज़दूरों को सदस्यता देने के मामले में मतभेद मुखर हो गए हैं।
यूनियन का पंजीकरण रद्द करने की आशंका से मज़दूरों के अंदर एक किस्म की बेचैनी दिखाई दे रही है।
इस मसले पर रविवार, 22 जनवरी को यूनियन बॉडी के सदस्यों ने एक आमसभा बुलाई है जिसमें इस मसले पर फैसला लिया जाएगा। ऐसी आशंका है कि यह सभा हंगामेदार होने वाली है।
कुछ सूत्रों ने बताया कि यूनियन बॉडी में ही मतभेद यहां तक पहुंच गए हैं कि विरोधी गुट की ओर से यूनियन का फिर से चुनाव किए जाने की मांग हो रही है।
हालांकि यूनियन के महासचिव अजीत सिंह का कहना है कि अब श्रम विभाग अपनी ही मंज़ूरी के ख़िलाफ़ नोटिस भेज कर मैनेजमेंट के हित में मज़दूरों पर दबाव बना रहा है, क्योंकि मैनेजमेंट बड़े पैमाने पर छंटनी की योजना बना चुका है और मज़दूरों में फूट डालने की उसकी ये बस एक चाल है।
यूनियन के फैसले से नाराज़ यूनियन बॉडी के दूसरे धड़े के नेता अरविंद का कहना है कि जबसे ठेका मज़दूरों को सदस्यता देने की बात आई तभी से इस पर विवाद रहा है।
यूनियन में गहराया मतभेद
यूनियन के महासचिव अजित का कहना है कि इस मामले को आगे हाई कोर्ट तक ले कर जाया जाएगा।अब यूनियन चंडीगढ़ हाई कोर्ट में इस संघर्ष को लड़ेगी। अगर वहां भी सफलता नहीं मिली तो यूनियन डिवीज़न बेंच का रुख़ करेगी।
उनका कहना है कि अगर वहां भी सफलता नहीं मिलती तो यूनियन सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी और ज़मीनी संघर्ष को तेज़ करेगी।
जसबीर सिंह 2020 में यूनियन के महासचिव थे और उसी समय ठेका मज़दूरों को सदस्यता देने का यूनियन ने फैसला किया था।
वो कहते हैं, “2020 में यूनियन ने कई ठेका वर्करों को अनौपचारिक रूप से सदस्यता दे दी थी लेकिन क़ानूनी सलाह लेने के बाद तय हुआ कि पहले यूनियन के संविधान में संशोधन किया जाए। 2021 में संविधान में संशोधन किया गया और फिर एक ठेका मज़दूर केशव राजपूत को सदस्यता दे दी गई।”
अब जसबीर यूनियन बॉडी के सदस्य नहीं हैं।
जबकि इस मामले में दूसरा पक्ष रखने वाले यूनियन बॉडी सदस्य अरविंद का कहना है कि इस मामले में यूनियन बंटी हुई है। हालांकि इस मामले में अधिक बात करने से उन्होंने इनकार कर दिया।
एक अन्य मज़दूर ने बताया कि यूनियन के आठ सदस्यों में चार इसके पक्ष में हैं और चार विरोध में हैं। विरोधी पक्ष चाहता है कि ठेका मज़दूरों की सदस्यता के मामले को हाई कोर्ट में दायर न किया जाए और नई यूनियन का गठन हो।
गुड़गांव के मज़दूर नेता क्या कहते हैं ?
बेलसोनिका यूनियन को दिए गए रजिस्ट्रशन रद्द करने के नोटिस का CITU ने विरोध किया है। हरियाणा सीटू के सदस्य सतवीर सिंह ने कहा कि लेबर विभाग का यह नोटिस एंटी ट्रेड यूनियन व्यवहार को दर्शाता है।
उनका कहना है कि बेलसोनिका यूनियन को इस संबंध में क़ानूनी लड़ाई को आगे बढ़ाना चाहिए। इसका समर्थन अन्य मज़दूर यूनियन को भी करना चाहिए।
‘द हिन्दू’ कि एक रिपोर्ट के मुताबिक, ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक) की महासचिव अमरजीत कौर ने कहा कि ऑटो कंपनियों के अधिकारियों और श्रम विभाग ने बातचीत के दौरान ठेका श्रमिकों को यूनियन बनाने की अनुमति देने का विरोध किया है, लेकिन इसका कोई विरोध नहीं कर सकता क्योंकि यह श्रमिकों का मौलिक अधिकार है।
ऑटो मोबाइल इंडस्ट्री कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन (AICWU) के सदस्य शाम ने बेलसोनिका यूनियन के ठेका मज़दूर को सदस्यता देने की पहल का स्वागत किया है।
उनका कहना है कि “AICWU सभी मज़दूरों, मज़दूर संगठनों, यूनियनों, न्याय पसंद और तर्कशील नागरिकों और उनके जनवादी व नागरिक अधिकार के संगठन इस मुद्दे पर बेलसोनिका यूनियन के साथ खड़े हों।”
इंकलाबी मज़दूर केंद्र (आईएमके) के श्यामबीर ने वर्कर्स यूनिटी से बात करते हुए कहा कि बेलसोनिका यूनियन का ये कदम व्यापक मज़दूर वर्ग की एकता के लिहाज से सराहनीय है और मैनेजमेंट की चालों से मज़दूरों को डरने की बजाय डट कर मुकाबला करना चाहिए।
उन्होंने कहा, “2016 से पहले मज़दूरों में फूट डालने के लिए मैनेजमेंट ने इसी तरह की अफ़वाहें फैलाने का काम किया था. लेकिन ये नहीं भूलना चाहिए की ये वर्कर है, वो मैनेजमेंट की अफ़वाहों से भ्रम में आ सकता है लेकिन वो अपने वर्ग को नहीं भूलेगा, वो मज़दूर एकता बनाए रखेगा और मैनेजमेंट और लेबर डिपार्टमेंट की गैरक़ानूनी गतिविधियों का मुंहतोड़ जवाब देगा।”
कंपनी में छंटनी की लगातार कोशिशें
एक वकील का कहना है कि अगर यूनियन में दो फाड़ होता है तो इसका फ़ायदा मैनेजमेंट को सीधे तौर पर होगा। मैनेजमेंट जल्द ही 40-50 की संख्या में वर्करों को निकालना शुरू कर देगा और इसमें बहुत देर नहीं है।
असल में कंपनी में पिछले एक साल से ही वर्करों के वेरिफ़िकेशन के नाम पर उन्हें नोटिस थमाया जा रहा है और नियुक्ति के समय जाली दस्तावेज पेश करने के नाम पर उन्हें निकाला जा रहा है।
जसबीर कहते हैं कि तीन वर्करों को हाल ही में कंपनी ने निकाल दिया, जिसे लेकर यूनियन ने प्रतिरोध भी दर्ज कराया था।
उनके मुताबिक, अगर यूनियन एकजुट नहीं रहती तो हालात बहुत ख़राब होने वाले हैं। ठेकेदार अभी से कह रहे हैं कि उनपर ठेका ख़त्म करने का मैनजमेंट का दबाव बढ़ रहा है।
यूनियन बॉडी के एक अन्य सदस्य का कहना है कि ठेका मज़दूरों को भी मनमाने तरीके से निकाला जा रहा है।
यूनियन के प्रधान मोहिंदर कपूर का कहना है कि कोरोना के तुरंत बाद कैजुएल वर्करों को वीआरएस देने के कंपनी मैनेजमेंट ने एलान कर दिया था, लेकिन यूनियन ने कहा को कोई भी वीआरस नहीं लेगा।
जबकि कंपनी में काम के हालात लगातार बिगड़ रहे हैं। पिछली गर्मियों में कंपनी ने झुलसाती गर्मी में भी प्लांट के एयर वॉशर नहीं चला, जिसे लेकर मज़दूरों ने बनियान पहन कर काम किया उसके लिए भी उन्हें मैनेजमेंट ने नोटिस दे दिया था।
क़ानून के जानकारों का क्या कहना है?
देश की जानी मानी वरिष्ठ वकील नंदिता हक्सर का कहना है कि श्रम विभाग से आया नोटिस पूरी तरह ग़ैरक़ानूनी है और संविधान के ख़िलाफ़ है। क्योंकि संविधान संगठित होने का अधिकार देता है। सामूहिक मांगपत्र का अधिकार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्य है।
उन्होंने कहा कि यूनियन के पंजीकरण को रद्द करने का नोटिस ही अपने आप में ग़ैर संवैधानिक है और उसका उल्लंघन है। ट्रेड यूनियन एक्ट में कहीं भी नहीं लिखा है कि कैजुअल या ठेका वर्कर को यूनियन को सदस्यता नहीं दी जा सकती।
वो कहती हैं, “संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(c) हर नागरिक को संगठित होने का अधिकार देता है। इसलिए कोई भी क़ानून संविधान में दिए इस अधिकार का उल्लंघन करता है तो वो रद्द किए जाने का हक़दार है।”
लेबर मामलों के जानकार एक अन्य वकील ने कहा कि आज़ादी से पहले आये ट्रेड यूनियन एक्ट 1926 के अनुसार, फैक्ट्री में काम करने वाला कोई भी वर्कर ट्रेड यूनियन का सदस्य बन सकता है। यहां तक कि नौकरी छोड़ने या हटाए गए मज़दूरों को ट्रेड यूनियन के साथ जुड़े रहने का पूरा अधिकार है।
उनका कहना है कि राजनैतिक कारणों के चलते कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स को यूनियन की सदस्यता से दूर रखा जाता है। जबकि ट्रेड यूनियन एक्ट में इस चीज़ का जिक्र कहीं भी नहीं है।
उन्होंने यह भी बताया है कि इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट 1947, जिसमें सबसे पहले वर्कर मैन (workman) की परिभाषा दी गई। उनका कहना था कि नए लेबर कोड आने के बाद इन कानूनों में बदलाव किये गये हैं जिसमें कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स को मिलने वाली ट्रेड यूनियन की सदस्ता के अधिकार छीन लिया गया है।
बेलसोनिका ऑटो कंपोनेट प्राइवेट लिमिटेड कंपनी (मानेसर प्लाट नंबर 1, फेज तीन-ए, सेक्टर 8, जिला गुड़गांव) ऑटोसेक्टर की दिग्गज़ कंपनी मारुति के मदर प्लांट के लिए कम्पोनेंट बनाती है।
इसमें प्रेस, डाई, वेल्ड, पीपीसी आदि शॉप हैं। इसमें लगभग 1500-1600 मज़दूर काम करते हैं। जिसमें 693 स्थाई मज़दूर, लगभग 130 ठेका मज़दूर हैं, जो 6-7 सालों से काम कर रहे हैं। नए 24 स्थाई मज़दूर जो स्टाफ में भर्ती किये गए हैं।
इसके अलावा लगभग 75 अप्रेंटिस मज़दूर, लगभग 28 ट्रेनिंग व लगभग 350-400 ठेका मज़दूर ऐसे हैं, जिनको मात्र 6 माह के लिए भर्ती किया गया है। कुल मिलाकर बेलसोनिका फैक्ट्री में लगभग 800 के आसपास ठेका, नीम ट्रेनिंग, प्रोबेशन व अप्रेंटिस श्रमिक कार्यरत हैं। यह सभी मज़दूर मशीनों पर उत्पादन का कार्य करते हैं।
श्रम विभाग के नोटिस से बड़ा सवाल खड़ा होता है की किसी भी फैक्ट्री या प्लांट में काम करने वाला कोई भी ठेका या अस्थाई मज़दूर क्या मज़दूरों कि श्रेणी में नहीं आता है?
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