हर महीने 90 मज़दूर मर जाते हैं फ़ैक्ट्रियों में, हर साल 1100 मौतें, 4000 वर्कर होते हैं घायल
देश फ़ैक्ट्री में काम के दौरान होने वाले हादसों के संबंध में एक हैरान करने वाला आंकड़ा सामने आया है। सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि भारतीय कारखानों में हर दिन 3 मज़दूरों की मौत होती है।
श्रम और रोजगार मंत्रालय के महानिदेशालय फ़ैक्ट्री सलाह सेवा और श्रम संस्थान (DGFASLI) द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत के पंजीकृत फ़ैक्ट्रियों में दुर्घटनाओं के कारण हर दिन औसतन तीन मज़दूरों की मौत हुई है और 11 घायल होते हैं।
नवंबर 2022 में इंडिया स्पेंड ने DGFASLI में सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत प्राप्त आंकड़ों को जारी किया है और इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की है।
आरटीआई जवाब के अनुसार, भारत में रजिस्टर्ड फ़ैक्ट्रियों में हर साल होने वाली दुर्घटनाओं में 1,109 वर्करों की मौत हो गई और 4,000 से अधिक वर्कर घायल हुए। ये 2017 से 2020 के बीच आंकड़ों के आधार पर है।
वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि यह संख्या और भी ज्यादा है क्योंकि बड़े पैमाने पर असंगठित क्षेत्रों में होने वाले हादसों की रिपोर्ट दर्ज ही नहीं की जाती है।
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तीन साल में 3,331 मौतें
2018 और 2020 के बीच कम से कम 3,331 वर्करों की मौतें दर्ज की गईं, लेकिन इन आंकड़ों से पता चलता है कि इसी अवधि के दौरान केवल 14 लोगों को फैक्ट्री अधिनियम, 1948 के तहत अपराधों के लिए सज़ा मिली।
DGFASLI ने फ़ैक्ट्रियों के राज्य मुख्य निरीक्षकों और औद्योगिक सुरक्षा और स्वास्थ्य निदेशकों से व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य (OSH) के आँकड़े एकत्र किये हैं।
ये आंकड़े केवल रजिस्टर्ड फ़ैक्ट्रियों के आंकड़ों को दर्शाता है। जबकि भारत में लगभग 90 फ़ीसदी मज़दूर ऐसे हैं जो अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं।
वहीं अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा 2015 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, हर साल, दुनिया भर में 3,50,000 से अधिक मज़दूरों की मौतें औद्योगिक दुर्घटनाओं के कारण होती हैं और इन दुर्घटनाओं की वजह से 31.3 करोड़ गंभीर घायल होते हैं।
2017-2020 के बीच रजिस्टर्ड फ़ैक्ट्रियों में घातक दुर्घटनाएं
2017-2020 में औद्योगिक दुर्घटनाएं जो घातक नहीं थीं
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फ़ैक्ट्री में होने वाली मौतें
इन आंकड़ों के मुताबिक, 2020 में भारत में 3,63,442 फ़ैक्ट्रियों का रजिस्ट्रेशन किया गया था, जिनमें से 84 फीसदी ही चालू हैं।
इन सभी कारखानों में दो करोड़ मज़दूर हैं। चार साल से 2020 तक हर साल पंजीकृत फ़ैक्ट्रियों में औसतन 1,109 मौतें और 4,000 से अधिक मज़दूर काम के दौरान घायल हुए।
साल 2021 और 2022 के आंकड़े मौजूद नहीं हैं क्योंकि बीते दो सालों का कोई भी आंकड़ा कहीं भी साझा नहीं किया गया है।
जारी आंकड़ों के अनुसार गुजरात में कारखानों के होने वाले हादसों में सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं।
साल 2019 में गुजरात में फ़ैक्ट्रियों में 79 मजदूरों की मौत हुई है वहीं 192 मज़दूर गंभीर रूप से घायल हुए हैं। दरअसल ये मौतें (79) रासायनिक और रासायनिक उत्पाद क्षेत्र में दर्ज की गईं।
11 नवंबर, 2022 को दिल्ली के श्रम विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में अक्टूबर 2022 तक 13,464 पंजीकृत फ़ैक्ट्रियां थीं, और 2018 और 2022 के बीच 118 मज़दूर फ़ैक्ट्रियों में होने वाले हादसों के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं।
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इंडिया स्पेंड द्वारा दायर RTI के जवाब में दिल्ली श्रम विभाग का कहना है कि इस सभी आंकड़ों में असंगठित क्षेत्रों के मज़दूरों को नहीं जोड़ा गया है। क्योंकि फ़ैक्ट्री एक्ट, 1948 के प्रावधानों के तहत असंगठित क्षेत्रों में होने वाली दुर्घटनाओं के आंकड़े संकलित नहीं किए गए थे।
विशेषज्ञों और ट्रेड यूनियनों का आरोप है कि सुधारों के नाम पर श्रम सुरक्षा कानूनों को लगातार कमजोर किया गया है।
सुरक्षा क़ानून को और रद्दी बनाने वाला कोड आ रहा है
भारत ने 2020 में औद्योगिक सुरक्षा और स्वास्थ्य कानून सुधारों (OSH ) को पारित किया है, जिसका तीखा विरोध किया जा रहा है और विशेषज्ञों का कहना है कि ये फ़ैक्ट्री अधिनियम 1948 के मुकाबले नख दंत विहीन है। क्योंकि फ़ैक्ट्रियों को लेबर इंस्पेक्टर से जांच न कराने की छूट जैसी तमाम ढिलाई दे दी गई है।
हालांकि यूनियनों की ओर से तीव्र विरोध के कारण इसे अभी लागू नहीं किया जा सका है लेकिन मोदी सरकार ने इसे पहले के श्रम क़ानूनों को इतना खोखला बना दिया है कि अब न तो इंस्पेक्टर फ़ैक्ट्रियों की जांच करने जाते हैं न कोई कड़ी कार्रवाई होती है।
इस कोड के अनुसार, किसी ख़तरनाक काम वाली फ़ैक्ट्री में कम से कम 250 वर्कर होने चाहिए या एक सामान्य फ़ैक्ट्री में 500 वर्कर होने चाहिए तभी सेफ़्टी कमेटी बनानी होगी।
इसके अलावा नए कोड में ये भी है कि फ़ैक्ट्री की परिभाषा बदल दी गई है। नई परिभाषा के अनुसार, बिजली से काम वाले कारखाने में कम से कम 40 होंगे तभी उनपर श्रम क़ानून लागू होंगे। पहले ये संख्या 20 वर्करों की थी।
इसके अलावा जहां बिजली से काम होता है, वहां इनकी संख्या 10 से बढ़ा कर 20 वर्कर कर दिया गया है। यानी कम से कम 20 वर्कर हों तभी कारखाने में श्रम क़ानून लागू होगा।
हालांकि इसमें गोलमोल ये भी कहा गया है कि छोटी से छोटी फैक्ट्री में भी ये कोड लागू होगा।
यानी वर्करों की एक बड़ी संख्या को श्रम क़ानूनों के दायरे से बाहर कर दिया गया है। अब उनकी ज़िम्मेदारी न तो फ़ैक्ट्री मालिक की होगी न सरकार की।
शायद यही वजह है कि फैक्ट्रियों में लगातार हादसे बढ़ रहे हैं।
(आंकड़े इंडिया वेबसाइट से लिए गए हैं। इंडिया स्पेंड की पूरी स्टोरी यहां पढ़ें)
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