भीषण गर्मी से बेहाल मज़दूर, मेहनतकश जनता; राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की बढ़ी मांग, कहां छुपे हैं सरकार!

भीषण गर्मी से बेहाल मज़दूर, मेहनतकश जनता; राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की बढ़ी मांग, कहां छुपे हैं सरकार!

By अभिनव कुमार

पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिला की रहने वाली 28 वर्षीय तपोशी हलदर पिछले 10 सालों से दिल्ली में रहती हैं, वो घरों में घरेलू कामगार के तौर पर काम करती हैं।

तपोशी बताती हैं, “मैं रोजाना सुबह 6 बजे काम पर निकल जाती हूँ। पांच घंटे लगातार खड़े होकर किचन में काम करने के बाद 11 बजे मैं अपने घर लौटती हूँ फिर अपने घर पर साफ़ सफ़ाई करती हूं और खाना बनाती हूँ। 1-2 घंटे के आराम के बाद शाम 5 बजे से फिर वही रूटीन।”

तीन जून तक लू के कारण 77 लोगों की मौत हो चुकी है। सातवें चरण के चुनाव में बड़ी संख्या में चुनाव कर्मियों की मौत हुई। फ़ैक्ट्रियों में काम कर रहे मज़दूरों, रेहड़ी पटरी, रिक्शा ऑटो ड्राईवर, घरेलू कामगारों के बारे में तो ख़बरें आई ही नहीं।

दो बच्चों की माँ तपोशी दिली के सईदुलजाब इलाके में एस्बेस्टस के छत वाले एक कमरे की झुग्गी में रहती हैं।

बीते 29 मई 2024 को दिल्ली में गर्मी का 80 साल का रिकॉर्ड टूट गया। दिल्ली के मुंगेशपुर इलाके में 52.3 डिग्री सेल्सियस तापमान पहुंच गया जबकि एक दिन पहले ही यहां 49.9 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया था। तबसे दिल्ली का तापमान 44-45 डिग्री के बराबर बना हुआ है और लू के थपेड़े चल रहे हैं।

जलवायु परिवर्तन की वजह से अब बारंबार हो रही भीषण गर्मी को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग बढ़ रही है।

तपोशी हलदार, घरेलू कामगार

वो बताती हैं, “पति की नौकरी कोरोना के समय चली गई, अब काम मिलता है तो जाते हैं वरना घर पर ही रहते हैं। इसकी वजह से मुझे ज्यादा घरों में काम करना पड़ता हैं। 3 साल की छोटी बेटी को पड़ोसियों के भरोसे छोड़ कर काम पर जाती हूँ।”

इतनी गर्मी में काम के हालात पर तपोशी कहती हैं, “हर मौसम की अपनी परेशानियां हैं. अभी दो दिन पहले एक घर में काम करते हुए गश्त खा कर गिर गई, कमर में चोट आई पर पेनकिलर खा कर काम तो करना ही पड़ेगा। एक दिन काम पर न जाओ तो काम से हटा देने की धमकी मिलने लगती है। घर चलाना है तो काम तो करना ही पड़ेगा, चाहे जैसे हालात हों।”

बदायूं के रहने वाले कृष्णा मोहन इस तपती गर्मी में सड़क किनारे अपने ठेले पर पराठा बना रहे हैं। 44 डिग्री सेल्सियस को पार कर रहे तापमान के बीच रोजाना 10 घंटे उन्हें चूल्हे के पास बिताना पड़ता है।

बात करने पर कृष्ण माथे का पसीना पोछते हंसते हुए कहते हैं, “जीवन बहुत मुश्किलों से गुजर रहा है लेकिन क्या कर सकते हैं। इस रेहड़ी से अपने 8 लोगों के परिवार को चला रहा हूँ। आजीविका चलानी है तो कोई भी मौसम हो काम तो करना ही पड़ेगा, मौसम की गर्मी – चूल्हे की गर्मी को बर्दाश्त तो करना ही पड़ेगा।”

दिल्ली में लू से पहले प्रवासी वर्कर की मौत!

मई के अंत और जून की शुरूआती सप्ताहों से ही पूरा देश भयंकर हीटवेव का सामना कर रहा है। दिन के 10 बजे ही सड़कें सूनी और वीरान नज़र आ रही हैं, पूरे दिन लोग घरों में रुकना सुरक्षित समझ रहे हैं।

लेकिन ऐसे भीषण मौसम में भी देश का एक बड़ा तबका है जिसके पास बाहर निकलने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

एक दिन भी घर पर रहने का मतलब है काम या दिहाड़ी का चला जाना। ऐसे में आसमान से अंगारे बरस रहे हैं और मजदूर दो जून की रोटी के लिए भयंकर गर्मी के बीच हाड़तोड़ मेहनत कर रहे हैं।

लू से होने वाली तमाम अनरिपोर्टेंड मौतों में इंडियन एक्सप्रेस ने आश्चर्यजनक रूप से लू से दिल्ली में पहली मौत रिपोर्ट की और ये मौत एक फ़ैक्ट्री वर्कर की हुई थी।

बिहार के दरभंगा के रहने वाले 40 साल का यह मज़दूर दिल्ली की एक पाइप फ़िटिंग फैक्ट्री में काम करते थे और उन्हें सोमवार को आरएमएल में भर्ती कराया गया था। यहां लू लगने का इलाज़ करने के लिए एक विशेष यूनिट बनाई गई है।

डॉक्टरों का कहना है कि मरीज के शरीर में अचानक तापमान 41 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया। उसे तेज़ बुखार आया था और कुछ ही घंटों में उसकी जान चली गई।

हालांकि मौसम विभाग के अनुसार, एक मार्च से जून के प्रथम सप्ताह तक, गर्मी और लू की वजह से 60 लोगों की मौत हो चुकी है और लू लगने की 16,344 मामले दर्ज किए गए।

चेन्नई, बैंगलोर समेत दक्षिण भारत में मार्च से ही भारी गर्मी, लू चल रही है।

पिछले साल हरियाणा के मानेसर में बेलसोनिका के मज़दूरों ने शर्ट उतार तक प्रदर्शन किया था और गर्मी से बचाव के पर्याप्त उपाय किए जाने की मांग की थी।

वर्करों के लिए कोई इंतज़ाम नहीं

देश भर में फैले इंडस्ट्रियल इकाइयों के भारी- भरकम मशीनों पर काम कर रहे मज़दूरों की इतने तापमान पर दशा की कल्पना भी नहीं किया जा सकता।

पिछले साल इन्हीं महीनों में दिल्ली-एनसीआर के कई ऑटो पार्ट्स बनाने वाली कंपनियों में गर्मी से बचाव को आक्रोष देका गया और गर्मी से बचाव की व्यवस्था करने के लिए बेलसोनिका के मज़दूरों ने काम रोक कर प्रबंधन पर दबाव बनाया था।

इस साल जबकि तापमान कहीं अधिक है, इन फैक्टरियों में किसी तरह की कोई हालचल नज़र नहीं आती।

राजस्थान के किशनगढ़ को मार्बल नगरी कहा जाता है। किशनगढ़ में पॉवरलूम की करीब 3,000 इकाईयां है और इनमें 7,000 से अधिक मज़दूर काम करते हैं।

जबकि, 900 मार्बल-ग्रेनाइट इकाइयों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 50,000 से ज्यादा मज़दूर कार्यरत हैं।

इन दिनों पड़ रही तेज गर्मी के बावजूद इन मज़दूरों के लिए छाया-पानी तक के इंतजाम नहीं है। भीषण गर्मी में पॉवरलूम इकाईयों के श्रमिक तो टीनशेड की छत के नीचे काम कर रहे हैं, जबकि मार्बल-ग्रेनाइट उद्योग में मजदूर खुले आसमान के नीचे काम करने को विवश हैं।

इन मज़दूरों के लिए अब तक कोई राहत के इंतजाम नहीं किए गए हैं।

पॉवरलूम की फैक्ट्रियां हो या फिर मार्बल-ग्रेनाइट उद्योग की मशीनें, भीषण गर्मी के बीच जब मशीनों के पार्ट्स एक दूसरे से घर्षण करते हैं तो हीट निकलती है, एक तरफ मशीनों की हीट और दूसरी तरफ आसमान से बरसती आग।

दिलचस्प बात है कि रिकॉर्ड तोड़ गर्मी और लू के कारण मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार में इंदौर में पशुओं से चलने वाले वाहनों पर दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक बैन लगा दिया गया।

लेकिन मज़दूरों को इस भीषण गर्मी से बचाने की बात तो दूर भाजपा सरकारों ने कंपनियों को मनमाने तरीके और सुरक्षा उपायों को ताक पर रख कर मुनाफ़ा कमाने की इतनी छूट दे रखी है कि इस दौरान कई फैक्ट्रियों में आग लग गई, फिर सरकारों ने कोई सुरक्षा उपाय नहीं किए। इन फ़ैक्ट्रियों में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, हरियाणा के सोनीपत (कुंडली) आदि शामिल हैं। यहां तक कि गुजरात के राजकोट में तो एक गेमज़ोन में ही आग लग रही जिसमें 27 लोग मारे गए, जिसमें बड़ी संख्या में बच्चे हैं।

विष्णु और उनके साथी बिहार के करगहर में मनरेगा मज़दूरी करते हैं।

मनरेगा मज़दूरों का बुरा हाल

बिहार के करगहर में मनरेगा मज़दूर के तौर पर काम करने वाले विशुन बताते हैं, “इस गर्मी में मज़दूर मनरेगा में काम नहीं करना चाह रहे हैं. कार्यस्थल पर न छांव की व्यवस्था है और न ही पीने के पानी की व्यवस्था, ऊपर से मिट्टी की नमी ख़त्म हो जाने के कारण, उसे खोदने में भी दोगुनी मेहनत करनी पड़ रही। जब पीने के पानी की व्यवस्था ही नहीं की जा रही तो मिट्टी को गीला करने की हमारी दरख्वास्त कौन सुनेगा।”

पास खड़े एक दूसरे मज़दूर ने बताया, “हम किसको शिकायत करें। अधिकारी आचार संहिता के नाम पर हमें कार्यालय के आस-पास भी नहीं फटकने देते। रोजगार सेवक को भी चुनावी ड्यूटी में लगा दिया गया है।”

वहीं ज़िले के काराकाट में तालाब खुदाई में लगे मज़दूरों ने बताया, “हम सुबह 4 बजे ही काम के लिए आ जाते हैं और 9 बजे तक काम कर लौट जा रहे। कुछ दिन पहले तक शाम में 2 घंटे काम करते थे लेकिन अभी वो भी नहीं हो पा रहा।”

निर्माण कार्य में लगे मज़दूरों को भी भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। दिल्ली में तो उप राज्यपाल द्वारा निर्माण कार्य में लगे मज़दूरों से दोपहर 12 – 3 बजे तक काम नहीं लेने का आदेश जारी कर दिया गया है।

लेकिन देश के अन्य हिस्सों में मज़दूरों को ये सुविधा नहीं है। रोहतास ज़िले में ही निर्माण कार्य में लगे एक मज़दूर ने बताया कि, “काम को लेकर मालिक के साथ रोज ही

कहा-सुनी हो रही है। हमारे काम पर नज़र रखा जाता है और बार- बार शिकायत कि जाती है की काम धीमे हो रहा। इतनी गर्मी में काम करना मुश्किल हो रहा। सुबह 5 से

10 बजे तक काम करने के बाद हम शाम में 5 से 8 बजे तक काम कर रहे हैं। कोई सुनने वाला नहीं किसको शिकायत करें।”

मौसम की मार और सरकारी लापरवाही के शिकार सिर्फ मज़दूर नहीं हो रहे बल्कि राज्यकर्मियों के भी हालात बेहद ख़राब है।

बिहार के शिक्षकों की शिकायत है कि गर्मियों की छुट्टी में भी शिक्षकों को बुलाया जा रहा है।

बिहार के शिक्षकों की शिकायत

हाई स्कूल में शिक्षक के रूप में कार्यरत यश प्रताप कहते हैं, “केंद्रीय स्कूलों में साल में 220 दिनों तक पढ़ाने का प्रावधान है। बिहार में शिक्षकों से 270 दिन काम लिया जा रहा है। चुनावी डयूटी में लू और गर्मी के कारण अब तक 11 शिक्षकों के मौत होने की खबर है, लेकिन सरकार स्वीकार नहीं कर रही. शिक्षकों को बिहार सरकार ने बंधुआ मज़दूर बना दिया है। किसी तरह की मांग रखने पर हमें सीधे कहा जाता है की नौकरी छोड़ दें.”

महिला शिक्षक ऋचा कुमारी बताती हैं, “पिछले 2 दिनों में पुरे प्रदेश में लू लगने के कारण कई बच्चों की मृत्यु हुई जिसकी वजह से बच्चों के लिए तो स्कूल बंद कर दिया गया लेकिन हमें स्कूल बुलाया जा रहा है, जबकि हमारे पास कोई काम नहीं। हम काम करने से पीछे नहीं हट रहे लेकिन हमें इतनी गर्मी में 9 से 12 बजे के बीच क्यों बुलाया जा

रहा? सुबह 6 से 9 भी बुलाया जा सकता है। महिलाओं को और ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. इन सुदूर इलाकों के स्कूल आने जाने में घंटो लग जाते हैं।”

यह लोकसभा चुनावों के अंतिम चरण के दौरान की बात है, जब चुनाव कराते हुए दर्जनों कर्मचारियों की लू लगने से मौत हो गई थी।

सर्दियों में भारी प्रदूषण के चलते दिल्ली सरकार ऑड इवेन, स्कूलों को बंद करना, स्माग टॉवर लगाने जैसे तरह तरह के उपाय करती है लेकिन इस भारी गर्मी में मज़दूरों के जीवन को बचाने, उनकी सुरक्षा का ध्यान रखने या ऐसा कुछ उपाय करने में बिल्कुल उदासीन दिखी।

केंद्र की मोदी सरकार की बेरुखी भी इन चुनावों के दौरान साफ़ नज़र आई और कोरोना में लॉकडाउन लगाने और जबरदस्ती वैक्सीन लगवाने में सक्रिय मोदी ने इस भीषण गर्मी की प्राकृतिक आपदा में मज़दूरों को गर्मी की भट्ठी के हवाले छोड़ दिया।

सामाजिक कर्मी, पर्यावरणविद और ट्रेड यूनियन एक्टिविस्ट लंबे समय से जलवायु परविर्तन को लेकर चेतावनी दे रहे हैं। समुद्र के जलस्तर का तापमान बढ़ने से अल नीनो,

सुखाड़, बाढ़ का ख़तरा बढ़ जाता है। भारत एक तटीय देश है और इसका यहां के तापमान पर सबसे अधिक असर देखने को मिल रहा है।

कई ट्रेड यूनियनें लगातार भीषण गर्मी को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग कर रही हैं लेकिन भारत सरकार अभी चुनाव और इसके बाद आए नतीजों के बाद सरकार गठन की प्रक्रिया की आड़ लेकर चुप्पी साधे है।

क्या सरकार गठन के बाद भी इस बारे में सुध ली जाएगी, ये देखना बाकी है।

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