दिल्ली में किसान मज़दूर महापंचायत में देश भर से आए किसानों और मज़दूरों ने क्या बताया?
“पिछले सीजन में मैंने अपनी गेंहू की फसल 2100 रुपये क्विंटल में बेचीं, जबकि सरकारी मंडियों में ये 2200 रुपये में बिक रहा था. 100 रुपये व्यापारियों/ आढ़तियों ने अपनी मर्ज़ी से कम कर दिया. अब ऐसे में हम किसान MSP की मांग क्यों नहीं करें. स्वामीनाथन आयोग की MSP की सिफारशें लागू होती हैं तो मेरी इसी फसल की कीमत लागत से डेढ़ गुना मतलब 4000- 4200 रुपये में बिकती.”
गुरुवार को दिल्ली के रामलीला मैदान में किसान मज़दूर महापंचायत में पंजाब के फरीदकोट से आए 45 साल के जसकरण ने वर्कर्स यूनिटी से अपनी आप बीती बताई.
दो बेटी और एक बेटे के पिता जसकरण बताते हैं कि, “पांच लोगों का छोटा परिवार भी मुश्किल से चल रहा है. बड़ा बेटा लुधियाना के पास एक पॉलिटेक्निक कॉलेज में पढता है. उसके कॉलेज की फीस के लिए मुझे बैंक से कर्ज़ लेना पड़ा है और उसकी वजह से हमें घर के बाकी के खर्चे में कटौती करनी पड़ी है.”
वो आगे बताते हैं, “खेती- किसानी चौतरफा मार झेल रही हैं और ऐसे में हम छोटे किसान ज्यादा मुसीबत झेल रहे हैं. हमारे इलाके में पानी का स्तर नीचे जा रहा, खेती में लगने वाली चीजों और जरुरत के सामानों का दाम बढ़ता जा रहा. वही उनकी फसल का दाम बेहद ही कम उन्हें मिलता है.”
इससे पहले केंद्र की मोदी सरकार द्वारा 2020 में पारित कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ किसानों ने एक साल तक दिल्ली के विभिन्न बॉर्डरों पर अपना आंदोलन चलाया था.
आंदोलन के दबाव में सरकार को तीनों कृषि कानूनों को वापस लेना पड़ा था और किसानों की मांगों को पूरा करने का वायदा किया गया था.
जसकरण कहते हैं, “बीते सालों में सरकार ने हमसे किये एक भी वादे पूरे नहीं किये हैं. उलटे किसानों को अपने गाड़ी के पहिये तले रौंदने वाले अजय मिश्रा टेनी परिवार को फिर से चुनाव का टिकट दे दिया गया.”
बठिंडा से आये किसान मानक सिंह ने वर्कर्स यूनिटी को बताया, “जो गेंहू मैंने व्यापारी को 2200 / क्विंटल बेची, उसी गेंहू को व्यापारी 4100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बाजार में बेच रहा. तो फिर सरकार ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं करती ये मुनाफा उसके असली हक़दार तक पहुंचे.”
उन्होंने आगे बताया कि “सरकार अगर किसानों के फसल की सीधी सरकारी खरीद सुनिश्चित करती है ,जिससे की सभी किसानों को उनकी फसल का सही दाम मिले तो किसानों को लोन लेने जैसी समस्याओं से भी निजात मिलेगी.”
उत्तर प्रदेश से आए किसानों ने क्या कहा?
उत्तर प्रदेश के कई जिलों से रैली में शामिल होने आये कई किसानों ने बताया कि उनकी हमारी स्थिति पंजाब- हरियाणा के किसानों से भी बुरी है, “हमारे यहाँ सरकारी मंडियां नहीं हैं और अगर हैं भी तो बिलकुल मरणासन्न स्थिति में हैं. हमें अपनी फसल सीधे व्यापारियों को बेचनी पड़ती है.”
उन्होंने कहा, “गन्ने की खरीद कर ली जाती है लेकिन किसानों को उसके पैसे नहीं मिलते. गेंहू की फसल पर भी पंजाब के किसानों के तुलना में हमें 300 से 400 रुपये प्रति क्विंटल कम मिलते हैं. किसान सम्मान निधि जैसी योजनाओं से भला नहीं होने वाला. हमारे कर्जे माफ़ किये जायें और साथ ही बीजों, कीटनाशकों और कृषि यंत्रों पर सब्सिडी दी जाये तभी हमारा भला होगा.”
कानपुर से आये किसान निकेतन ने कहा कि “मोदीजी आत्मनिर्भर भारत की बात करते हैं तो फिर किसानों की MSP और मज़दूरों की न्यूनतम मज़दूरी क्यों नहीं सुनिश्चित कर देते. मोदीजी के इस कदम से देश की बहुत बड़ी आबादी को बैंक कर्ज ,भुखमरी- गरीबी से छुटकारा मिल जायेगा.”
रैली में किसानों के साथ- साथ मनरेगा मज़दूरों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की भी भीड़ देखने को मिली.
बिजनौर से आये प्रमोद बताते हैं कि “अब मनरेगा में काम मिलना बंद हो गया है, 100 की बात छोड़िये 10 दिन भी काम मिलना मुश्किल हो गया है. 250-300 रुपये की दिहाड़ी पर महीने में 15-20 दिन काम मिलता है उसी से गुजारा हो रहा है. सरकारी अनाज भी सही समय पर नहीं मिलते.”
रैली को सम्बोधित करते हुए किसान नेताओं ने कहा कि “प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत फसल बीमा का कॉर्पोरेटीकरण कर दिया गया है. कॉर्पोरेट बीमा कंपनियों ने वर्ष 2017 से आज तक 57000 करोड़ रुपये लूट लिए हैं. इन कारणों से किसान और खेत मजदूर कर्ज के फंदे में फंसे हुए हैं.”
“वर्ष 2014-22 के दौरान 1,00,474 किसानों ने आत्महत्या की है, इसके बावजूद मोदी सरकार ने किसानों को कर्ज माफी के रूप में एक भी रुपया नहीं दिया है. लेकिन बड़े कॉर्पोरेट घरानों का 2014-23 के दौरान 14.68 लाख करोड़ रुपये का भारी-भरकम ऋण माफ कर दिया है.”
उन्होंने कहा “सरकार ने 9 दिसंबर 2021 को संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के साथ लिखित समझौते पर हस्ताक्षर किया था. लेकिन पिछले 26 महीनों के दौरान मोदी सरकार ने एमएसपी देने, ऋण माफ करने, बिजली क्षेत्र का निजीकरण नहीं करने जैसे आश्वासनों को लागू न कर के किसानों को धोखा दिया है.”
किसान नेताओं ने आगामी लोकसभा चुनावों में भाजपा को हराने का आह्नवान किया. एसकेएम नेता डॉ. दर्शनपाल ने कहा कि बीजेपी को सबक सिखाना चाहिए, उसके नेताओं को गांवों में किसान घुसने नहीं देंगे और अपना हक लेकर रहेंगे.
इसके साथ ही केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने एक स्वर में अपनी मांग रखते हुए कहा कि “4 श्रम संहिताओं को निरस्त किया जाये, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों, शिक्षा, स्वास्थ्य का निजीकरण नहीं करने, मज़दूरों को वैधानिक न्यूनतम वेतन के रूप में 26000 रुपये प्रति माह देने, मनरेगा की रक्षा के लिए पर्याप्त आबंटन के साथ 200 दिन का काम और 600 रुपये प्रति दिन की मजदूरी दी जाये”
Do read also:-
- उत्तरकाशी सुरंग हादसाः बचाव में लगे मज़दूरों के पैरों में चप्पल, कर रहे गम बूट के बिना काम
- उत्तराखंडः दिवाली से ही सुरंग के अंदर फंसे हुए हैं 40 मज़दूर, सैकड़ों मज़दूरों ने शुरू किया प्रदर्शन
- मौत से लड़ते कटे टनल के वो सात घंटे, उत्तराखंड हादसे में बचे कर्मियों की आपबीती
- “हम मर जायेंगे लेकिन वेदांता को अपनी 1 इंच भी जमीन खनन के लिए नहीं देंगे” – ओडिशा बॉक्साइट खनन
- विश्व आदिवासी दिवस: रामराज्य के ‘ठेकेदारों’ को जल जंगल ज़मीन में दिख रही ‘सोने की लंका’
- “फैक्ट्री बेच मोदी सरकार उत्तराखंड में भुतहा गावों की संख्या और बढ़ा देगी “- आईएमपीसीएल विनिवेश
- “किसान आंदोलन में किसानों के साथ खड़े होने का दावा करने वाले भगवंत मान आज क्यों हैं चुप “
- ओडिशा पुलिस द्वारा सालिया साही के आदिवासी झुग्गीवासियों पर दमन के खिलाफ प्रदर्शन पर पुलिस ने किया लाठीचार्ज
Subscribe to support Workers Unity – Click Here
(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)