मानेसर-गुड़गांव ऑटो सेक्टर में हाथ गंवाते, अपंग होते मज़दूरों की दास्तान- ग्राउंड रिपोर्ट

मानेसर-गुड़गांव ऑटो सेक्टर में हाथ गंवाते, अपंग होते मज़दूरों की दास्तान- ग्राउंड रिपोर्ट

By अभिनव कुमार

इसी साल छह जनवरी की सुबह बेलसोनिका प्लांट में जब नाईट शिफ्ट के वर्कर्स अपना काम ख़त्म लौटे, डे शिफ्ट के मज़दूरों की एंट्री शुरू हुई और 6 बजकर 20 मिनट पर मशीनें फिर से चलनी शुरू हो गईं।

रोज की तरह मशीन पर काम करने वाले वर्कर अजित के लिए यह दिन उनकी ज़िंदगी में भूचाल लाने वाला था।

अभी 10 मिनट ही उन्होंने मशीन पर काम किया था कि ऑटोमैटिक मशीन उनकी हथेली पर आ गिरी। उनके दाहिने हाथ का अंगूठा पूरी तरह से मशीन के नीचे आ दबा और लगभग पूरी तरह से कुचल गया।

अजित कुमार सिंह बिहार के सीवान के रहने वाले हैं और बीते कुछ महीनों से बेलसोनिका में बतौर कैजुअल वर्कर काम कर रहे थे। यह कंपनी हरियाणा के मानेसर औद्योगिक क्षेत्र में स्थित है और अग्रणी कार कंपनी मारुति के ऑटो पार्ट्स बनाती है।

घायल होने के बाद अजित को कंपनी प्रबंधन कि तरफ से मानेसर स्थित प्रकाश हॉस्पिटल में इलाज के लिए ले जाया गया।

जहाँ डॉक्टरों का कहना है कि शरीर के दूसरे हिस्से से मांस निकाल कर उनके अंगूठे की सर्जरी की जाएगी।

उनके हाथ से मांस निकाल कर अंगूठे की सर्जरी की गई लेकिन यह सफल नहीं रही। अजित ने बताया कि डॉक्टर का कहना है कि एक बार फिर से जांघ से मांस का कुछ हिस्सा निकाल कर उनके अंगूठे की दुबारा सर्जरी की जाएगी।

अजित ने वर्कर्स यूनिटी को बताया कि, “इलाज के अलावा कंपनी से किसी भी तरह की कोई मदद नहीं मिली। इलाज के आलावा बाकी खर्चे खुद ही वहन कर रहा हूँ। देखभाल के लिए बूढ़े माँ-बाप को भी नहीं बुला सकता। इस महीने के वेतन को लेकर भी कंपनी मैनेजमेंट कोई जानकारी नहीं दे रही है।”

जब वर्कर्स यूनिटी ने अजित से पूछा की मुआवजे और आगे नौकरी को लेकर मैनेजमेंट से कोई बात हुई, उन्होंने  बताया कि “मैंने बात करने कि कोशिश की लेकिन उनकी तरफ़ से कोई जवाब नहीं मिल रहा। तीन दिन पहले जब मैंने कंपनी एचआर में कार्यरत विनोद से मिलने के लिए कंपनी गया तो मुझे गेट से अंदर भी नहीं घुसने दिया गया। मुझे फोन करने के लिए डांट भी लगाई।”

अजित ने बताया कि, “जब मैंने विनोद से परमानेंट करने सम्बन्धी बात की तो उन्होंने कहा कि इस तरह की तकनीकी खामियां फैक्ट्री में होती रहती हैं, इसके लिए कंपनी थोड़े ही ज़िम्मेदार है।”

अजित की अगले ही महीने 25 फरवरी को शादी होने वाली थी और इसके साथ ही बिहार पुलिस बहाली की भर्ती परीक्षा भी होने वाली थी।

अजित कहते हैं कि, “घर का एकमात्र कमाऊ सदस्य हूँ। माँ-बाप के साथ छोटे भाई के पढ़ाई की जिम्मेदारी भी मेरे ही ऊपर है। पुलिस बहाली में भी अब शायद ही चयन हो पाए। पता नहीं दूसरी कंपनी में भी अब काम मिलेगा कि नहीं।”

फिलहाल अजित को यूनियन की तरफ से भी किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली है और न ही यूनियन पदाधिकारियों ने उनसे अभी तक कोई संपर्क किया है।

हरियाणा के धारूहेड़ा में स्थित रिको ऑटो कंपनी में काम करते हुए इस मज़दूर की अंगुलियां क्षतिग्रस्त हो गईं थीं। 2028 में कंपनी ने 104 परमानेंट कर्मचारियों को बाहर निकाल दिया था, उसमें ये वर्कर भी शामिल था। (वर्कर्स यूनिटी फ़ोटो)

2,500 मज़दूरों अपना कोई न कोई अंग खोया

काम के दौरान लगने वाली चोटों ने गरीब मज़दूरों के जीवन को नरक बना दिया है। कई लोगों को विकलांगता का हवाला देकर नौकरियों से बर्खास्त कर दिया जाता है और उन्हें कम भुगतान वाले विकल्प के लिए समझौता करने के लिए मजबूर किया जाता है।

अजित कुमार सिंह का मामला कोई अकेला मामला नहीं है। फ़रीदाबाद-गुरुग्राम-नीमराना ऑटो बेल्ट में कारखानों में गैर-घातक चोटों से पीड़ित लगभग 2,500 मज़दूरों के डेटा पर सेफ इन इंडिया फाउंडेशन बीआरडी द्वारा एक सालाना रिपोर्ट, “क्रश्ड 2021” से पता चला है कि इन 2,500 मज़दूरों में से तीन-चौथाई से अधिक ने औसतन दो उंगलियां खो दीं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें से लगभग आधी दुर्घटनाएँ पॉवर प्रेस मशीनों पर काम करते समय हुईं और पिछले पाँच वर्षों यानी (2017 से 2021) में ऐसे मामलों में कोई कमी नहीं आई है।

साल 2022 के फ़रवरी महीने में द हिंदू के रिपोर्टर अशोक कुमार की एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी। उनकी भी रिपोर्ट में कमोबेश वर्कर्स यूनिटी जैसी ही बातें पता चलती हैं।

इस रिपोर्ट में एक ऐसे दंपत्ति (सागर और आरती) की कहानी बताई गई थी जो फ़रीदाबाद में काम करते थे और विभिन्न ऑटोमोटिव इकाइयों में काम करते समय अलग-अलग दुर्घटनाओं में दोनों पति पत्नी ने अपने दाहिने हाथ की उंगलियाँ खो दीं।

शारीरिक विकलांगता का हवाला देकर जल्द ही उन्हें काम से बर्खास्त कर दिया गया, दंपत्ति को घर बैठने पर मजबूर किया गया जबकि वे प्रति माह मात्र ₹8,000 कमाते थे।

इस रिपोर्ट में अशोक कुमार लिखते हैं, “चोटों ने गरीब मज़दूरों के जीवन को सबसे खराब स्थिति में बदल दिया है। वित्तीय संकट बढ़ने के अलावा, वे मुआवजे के लिए वर्षों से चक्कर लगा रहे हैं।”

मुआवज़े के लिए दर दर भटकते मज़दूर

हालांकि, अपने कंपनी/ठेकेदार की मदद से आरती को कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) से ₹1,635 मासिक पेंशन मिलती है, लेकिन उनके पति सागर अभी भी राहत पाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं, क्योंकि उसके कंपनी/ठेकेदार ने उस समय तक कागजी कार्रवाई पूरी नहीं की थी।

अशोक अपनी रिपोर्ट में लिखते हैं, “सागर ने बताया कि मैंने श्रम विभाग से शिकायत की, लेकिन उन्होंने मुझसे कहा कि यह एक नागरिक मामला है। मैंने एक वकील से सलाह ली, जिसने फ़ाइल शुल्क के रूप में 20,000 रुपये और कुल मुआवजे में लगभग 40% हिस्सेदारी की मांग की, इसलिए मैंने मामले को कानूनी रूप से आगे बढ़ाने का विचार छोड़ दिया। अभी मैं एक छोटी ऑटोमोटिव इकाई में दिन में चार घंटे काम करता हूँ और दिन के ₹250-₹300 कमाता हूँ।”

हादसे के बाद सागर करीब दो साल तक बिना काम के रहे, “मैं काम के लिए बहुत इधर-उधर भागा, लेकिन मेरी शारीरिक विकलांगता के कारण मुझे कोई काम पर नहीं रखता। इस दौरान हम अपनी पत्नी की अल्प पेंशन पर जीवित रहे। इस दुर्घटना में मैंने अपनी चार उंगलियां खो दीं जबकि पत्नी ने तीन खो दिए।”

पॉवर प्रेस मशीन पर दुर्घटना के वक़्त सागर कंपनी में एक फोरमैन थे और प्रति माह 9,000 रुपये कमाते थे। 31 वर्षीय सागर का कहना था कि, “मैं जिस मशीन पर काम करता था उसकी क्षमता 50 टन थी, लेकिन इसका उपयोग 100 टन के काम के लिए किया जा रहा था। मशीन अटक गई थी और मैं उसे ठीक करने की कोशिश कर रहा था, तभी वह अचानक चालू हो गई। मुझे अपना हाथ बाहर निकालने का समय नहीं मिला।”

उनके कंपनी/ठेकेदार ने शुरुआत में उनके इलाज के लिए 8,000 रुपये दिया, लेकिन धीरे-धीरे दवाओं के लिए भुगतान करना बंद कर दिया, “कंपनी ने मुझे दूध के लिए दो दिनों के लिए और मेरी दवाओं के लिए एक पखवाड़े के लिए 50-50 रुपये का भुगतान किया। लेकिन मेरा इलाज छह महीने से ज्यादा समय तक चला। ईएसआईसी में इलाज शुरू होने से पहले मैंने दो महीने तक अपनी जेब से भुगतान किया।”

यह युवा मज़दूर बेलसोनिका फ़ैक्ट्री के कैंटीन में काम कर रहा था जब इसका हाथ आंटा गूंथने वाली मशीन में फंस गया।

मोहम्मद जाबिर की कहानी

अशोक कुमार ने इसी तरह एक अन्य मज़दूर मोहम्मद जाबिर की कहानी भी अपनी रिपोर्ट में बाताई है।

जाबिर ने उन्हें बताया कि, “5 दिसंबर, 2020 को बल्लभगढ़ में एक ऑटोमोटिव यूनिट में मैं लगभग 36 घंटे से काम कर रहा था। बीच में दो घंटे के ब्रेक के बाद जब नींद टूटी और मैं दुबारा काम पर लगा ही था कि पॉवर प्रेस मशीन के नीचे मेरा दायां हाथ कुचल गया। अंगूठे को छोड़कर मैंने अपने दाहिने हाथ की पूरी हथेली खो दी।”

जाबिर के अनुसार, “मेरे एक सहकर्मी ने मुझे एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया। डॉक्टर ने कहा कि मेरा हाथ बचाया जा सकता है, लेकिन इलाज के लिए 1.50 लाख रुपये की मांग की। मानव संसाधन विभाग के अधिकारी ने पैसे देने से इनकार कर दिया। इसके बजाय, जब मेरे हाथ से बहुत खून बह रहा था तो वे मुझे ईएसआईसी अस्पताल ले गए, लेकिन वह बंद पाया गया। अगले दिन ईएसआईसी के डॉक्टरों ने मुझे एक निजी अस्पताल में रेफर कर दिया और दुर्घटना के दो दिन बाद आखिरकार मेरे हाथ का ऑपरेशन किया गया। तब तक बहुत देर हो चुकी थी।”

जाबिर कहना था कि कंपनी/ठेकेदार ने उन्हें कभी भी काम पर लौटने के लिए नहीं कहा। जाबिर अब अपने दोस्त की किराने की दुकान पर काम करते हैं और प्रति माह ₹3,000 कमाते हैं। दोस्तों और रिश्तेदारों की कभी-कभार मदद से, वह किसी तरह अपना गुजारा कर रहे हैं।

31 वर्षीय जाबिर ने कहा कि “कंपनी/ठेकेदार ने अधिक उत्पादन की सुविधा के लिए पॉवर प्रेस मशीन के सेंसर हटा दिए थे, जिससे यह दुर्घटना हुई। ऑडिट निरीक्षण के दौरान ही सेंसर लगाए गए थे और मज़दूरों को ईयर प्लग और हेलमेट जैसे सुरक्षा उपकरण प्रदान किए गए थे। निरीक्षण के बाद सभी सुरक्षा उपकरण वापस ले लिए गए। मुझे अपने कर्मचारी मित्रों से पता चला कि मेरे जाने के बाद कंपनी में ऐसी और भी दुर्घटनाएँ हुईं।”

बिहार के दरभंगा के प्रवासी श्रमिक जाबिर ने कहा कि उन्होंने हमेशा अपने बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा और बेहतर जीवन का सपना लेकर आये थे, लेकिन अब हालात ऐसी हो गई है कि अपनी विकलांगता के कारण उन्हें उनके लिए दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो गया है।

जाबिर ने दुर्घटना से कुछ हफ्ते पहले ही अपनी पांच महीने की बेटी को बीमारी के कारण खो दिया था।

अधिकांश पीड़ितों की तरह, जाबिर भी ईएसआईसी से मुआवजे का इंतजार कर रहे थे, लेकिन उनके कंपनी/ठेकेदार ने भी कागजी कार्रवाई पूरी नहीं की।

हर रोज संघर्ष

16 मई, 2018 को ऑटोमोटिव यूनिट में रंजन का पहला दिन था, जब पॉवर प्रेस मशीन में उनके दाहिने हाथ की तीन उंगलियां कुचल गईं। उंगली काटने के बाद भोजन करने से लेकर शर्ट के बटन लगाने तक, यह पिछले चार वर्षों से उनके लिए रोजमर्रा का संघर्ष रहा है।

चोट का मतलब अतिरिक्त चिकित्सा बोझ और कम वेतन भी है, जबकि उन्हें उनकी बुज़ुर्ग मां सहित छह लोगों के परिवार को सहारा देना है। अपनी सबसे बड़ी बेटी की शादी के लिए पैसे बचाने के लिए, रंजन ने अपने बच्चों (एक बेटे और दो बेटियों) को स्कूल भेजना बंद कर दिया।

उनके कंपनी/ठेकेदार ने उन्हें ईएसआईसी के तहत फिर से पंजीकृत करने में ग़लती की थी। दो पंजीकरणों के कारण अब ईएसआईसी से मिलने वाले लाभों में अत्यधिक देरी हुई है। इतना ही नहीं दुर्घटना के बाद फैक्ट्री मालिक ने उनकी विकलांगता का हवाला देते हुए उन्हें वादे से कम वेतन दिया। रंजन ने कहा कि, “चूंकि मैं बाएं हाथ से काम करता हूं, इसलिए मैं प्रोडक्शन टार्गेट पूरा करने में विफल रहता हूं। कंपनी द्वारा लगातार दबाव बनाना मुझे नौकरी छोड़ने के लिए कंपनी की चाल भी हो सकती है।”

सेफ़ इन इंडिया फ़ाउंडेशन में वर्कर्स असिस्टेंट सेंटर के प्रमुख मासाब शम्सी ने कहा, “रोकथाम और मुआवजा समस्या के दो महत्वपूर्ण पहलू हैं। हमारा सवाल यह है कि क्या हर साल इन दुर्घटनाओं में बर्बाद होने वाली हजारों जिंदगियों का कोई मूल्य है।”

जबकि ट्रेड यूनियन नेताओं का कहना है कि चार लेबर कोड लाकर मोदी सरकार ने कंपनियों को मनमानी करने की छूट दे दी है और इसलिए सुरक्षा पर बेहद कम खर्च और ध्यान रहता है जबकि मुनाफ़ा सबसे ऊपर हो गया है।

एक ट्रेड यूनियन नेता सत्यवीर सिंह ने कहा कि कंपनियों में सेफ़्टी की जांच अब कंपनी मालिक के भरोसे छोड़ दी गई है। श्रम क़ानूनों को नियोक्ता के मनमाफिक कर दिया गया है और श्रम न्यायालयों को फेसेलिटेशन सेंटर बना दिया गया है जहां सिर्फ सुलह समझौते होते हैं, सुनवाई नहीं। मज़दूर आखिर जाएं तो कहां जाएं।”

वो कहते हैं, “लोकसभा का चुनाव हो रहा है लेकिन इस देश को अपने खून पसीने से विकास में आगे रखने वाले मज़दूरों पर कितनी बात हो रही है, किस पार्टी ने इन्हें अपने मेनिफेस्टो में जगह दी है, ये सबके सामने है।”

Do read also:-

https://i0.wp.com/www.workersunity.com/wp-content/uploads/2023/04/Line.jpg?resize=735%2C5&ssl=1

https://i0.wp.com/www.workersunity.com/wp-content/uploads/2023/04/Line.jpg?resize=735%2C5&ssl=1

Subscribe to support Workers Unity – Click Here

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)

Workers Unity Team

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.