टाटा मार्को पोलोः 48 दिन की भूख हड़ताल, 78 दिनों की गेटबंदी और 400 परमानेंट वर्करों का ट्रांसफ़र; दो साल से चल रहा आंदोलन
कर्नाटक के धारवाड़ में भारत की अग्रणी बस निर्माता कंपनी कंपनी टाटा मार्कोपोलो की यूनियन ने विधानसभा की बैठक के बाहर प्रदर्शन किया। यूनियन के मज़दूर कर्मचारी पिछले दो सालों से अपनी मांगों को लेकर लगातार धरना प्रदर्शन कर रहे हैं.
साल 2020 से ही वेतन समझौते को लेकर प्रबंधन और यूनियन के बीच संघर्ष तेज है। पिछले एक साल में टाटा मार्कोपोलो के मैनेजमेंट ने क़रीब 450 परमानेंट मज़दूरों को ट्रांसफ़र के बहाने काम पर आने से रोक दिया है।
यूनियन का आरोप है कि कर्नाटक की भाजपा सरकार के हस्तक्षेप के बावजूद प्रबंधन अपनी तानाशाही से बाज नहीं आ रहा है।
फ़िलहाल कर्नाटक में विधान सभा का शीतकालीन कुछ दिनों के लिए बेलगांव में भी किया जाता है। मज़दूर वहां भी पहुंच कर अपनी मांगों के पक्ष में प्रदर्शन किया।
इस सत्र के दौरान मज़दूरों ने अपनी कार्यबहाली के लिए एक दिन के धरने का आयोजन किया था। निकाले गए मज़दूरों ने विधानसभा सत्र के दौान बेंगलुरू में विधानसभा के बाहर ही डेरा जमाए रखा।
मार्को पोलो यूनियन के सदस्य वीरेश पटेल ने वर्कर्स यूनिटी को बताया कि यूनियन ने 2020 में नए चार्टर ऑफ़ डिमांड्स (COD ) के तहत 6000 रुपए बढ़ाने का वादा किया था। लेकिन कोरोना महामारी के कारण प्रबंधन ने इस डिमांड को मानने से मना कर दिया था। इसके बाद मार्कोपोलो मज़दूर यूनियन और प्रबंधन बीच इन दो सालों में 70-80 बैठकें हुईं लेकिन नतीजा सिफर रहा।
उनका आरोप है कि इतनी बड़ी संख्या में आयोजित की गई बैठकों के बाद भी प्रबंधन ने इस संबंध में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। उलटा 450 मज़दूरों को लखनऊ ट्रांसफ़र के बहाने निकाल दिया है और ठेका मज़दूरों को भर्ती कर लिया है।
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42 दिनों तक भूख हड़ताल
इस दौरान मज़दूरों ने यूनियन के साथ मिल कर मई 2022 ने डिस्ट्रिक कलेक्ट्रेट के सामने अपनी मांगों को लेकर 42 दिनों तक क्रमिक भूख हड़ताल का भी आयोजन किया था। लेकिन फैक्ट्री में उत्पादन चालू रहा। वर्कर अपनी-अपनी शिफ्ट ख़त्म कर के भूख हड़ताल का हिस्सा बनते थे।
फ़िलहाल कर्नाटक में बीजेपी की सरकार है। यूनियन की इस हड़ताल के बाद सरकार ने मई में प्रबंधन को अपने एक आदेश ने कहा था कि मज़दूरों के वेतन में 6000 रुपए की बढ़ोतरी की जानी चाहिए।
वीरेश पटेल ने बताया कि इस सरकारी आदेश के बाद यूनियन ने भूख हड़ताल को खत्म कर दिया। सभी मज़दूर काम पर वापस चले गए। इस सरकारी आदेश के बाद मज़दूरों को मात्र एक महीने तक 6000 रुपयों का भुगतान किया गया। जिसको बाद में स्लो वर्क का हवाला देकर बंद कर दिया।
वीरेश का कहना है कि अगर वेतन बढ़ोतरी का नोटिस सरकार द्वारा पारित किया गया था, तो उसको प्रबंधन को ख़त्म करने का कोई अधिकार नहीं है।
उन्होंने बताया कि जब प्रबंधन ने 1 जून 2022 से बढ़ी राशि का भुगतान करना बंद कर दिया, तो मज़दूरों ने 4-5 जून से कैंटीन के खाने का बहिष्कार करते हुए फैक्ट्री में खाना खान बंद कर दिया।
वीरेश का कहना है कि इसके बाद प्रबंधन ने मज़दूरों की समस्याओं को नकारते हुए कंपनी का गेट बंद कर दिया। साथ ही कंपनी के गेट पर एक नोटिस चस्पा किया, जिसमें लिखा था कि केवल वही मज़दूर कंपनी के अंदर काम कर सकते हैं, जो कैंटीन का खाना खाने के लिए तैयार हैं।
ठेका वर्करों की भर्ती
इसके अलावा नोटिस में इस बात को भी लिखा गया था कि सभी मज़दूरों को इस संबंध में अलग-अलग हस्ताक्षर कर के HR विभाग में जमा करना होगा, इसका यूनियन ने विरोध किया।
मज़दूरों ने विरोध किया जिसको लेकर प्रबंधन वर्करों का गेट बंद कर दिया, यह गेटबंदी 78 दिनों तक जारी रही।
मार्को पोलो मोटर्स कंपनी में कुल 1250 परमानेंट वर्कर और मैनेजमेंट की जेबी यूनियन के 60 वर्कर हैं। जब स्थाई मज़दूरों के लिए कंपनी ने गेट बंद कर दिया, तो उस दौरान प्लांट में इस जेबी यूनियन के वर्करों और कुछ ठेका मज़दूरों को तत्काल काम पर रखा गया।
इसमें ज़्यादातर वर्कर प्रवासी मज़दूर थे, जो बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और झारखंड से आते थे।
वीरेश ने बताया कि गैरकानूनी गेट बंदी के विरोध में स्थाई मज़दूरों ने लेबर विभाग में अपील दायर की जिसका कोई समाधान नहीं हुआ।
जब कोई समाधान नहीं निकाला तो निकाले गए मज़दूरों ने सितम्बर विधानसभा का घेराव कर पुनः भूख हड़ताल करने का एलान किया। इस दौरान यूनियन ने अपनी मांगों का एक पत्र भी श्रम विभाग को सौंपा।
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सितम्बर में 400 मज़दूरों का लखनऊ ट्रांसफ़र
इन सभी मामलों के बाद 21 सितंबर 2022 से प्रबंधन ने सभी मज़दूरों को कार्यबहाल कर दिया। लेकिन समस्या जस की तस बरक़रार रही।
वीरेश में बताया कि 22 सितंबर से सभी मज़दूरों ने दोबारा काम करना शुरू कर दिया। एक हफ्ते तक शांतिपूर्वक काम करने के बाद एक दिन अचानक प्रबंधन ने 27 मज़दूरों का गेट बंद कर दिया। उन्होंने बताया कि प्रबंधन ने उन मज़दूरों को काम से निकाला, जो गेट बंदी के संघर्ष में सोशल और डिजिटल मीडिया में अहम् भूमिका निभा रहे थे।
वीरेश ने यह भी बताया कि इसके लगभग 15 दिनों के बाद से आज तक लगभग 400 स्थाई मज़दूरों का ट्रांसफर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कर दिया गया है, लेकिन कई भी मज़दूर लखनऊ नहीं गया है।
क़ानूनी जानकारी देते हुए वीरेश ने बताया कि लेबर अधिनियम 33 के हिसाब के अगर किसी भी मज़दूर का कोई भी मामला लेबर विभाग में लंबित है, तो मज़दूरों के काम करने के जगह को नहीं बदला जा सकते है।
फिलहाल प्रबंधन द्वारा लखनऊ के लिए ट्रांसफर किये गए मज़दूर क़ानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।
यूनियन का कहना है कि 400 में से लगभग 200 मज़दूरों ने अवैध ट्रांफर के ख़िलाफ़ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
मज़दूरों के स्वास्थ्य संबंधी समस्यों का हवाला देकर प्रबंधन ने लगभग 83 मज़दूरों को काम से निकाल दिया।
वीरेश ने बताया कि मांग पत्र के तहत बाहर निकाले गए मज़दूरों का केस हुबली कोर्ट में चल रहा है। इस मामले पर अगली सुनवाई आगामी 14 जनवरी को है।
प्रोटेक्टेड वर्कमैन के तहत यूनियन के 15 सदस्यों में से 13 यूनियन बॉडी मेंबर्स को यूनियन संबंधी या मज़दूर संबंधी समस्याों पर काम करने के लिए छुट्टियां दी जाती हैं। वीरेश ने यह भी बताया की संरक्षित कार्यकर्ता (Potected Workman) के कानून के तहत चयनित किये गए मज़दूरों के ऊपर किसी भी तरह की क़ानूनी कारवाही नहीं की जा सकती है।
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एक लाइन पर 15 बस बनाने का दबाव
टाटा मार्को पोलो फैक्ट्री में हर दिन एक लाइन पर ज्यादा से ज्यादा 8-9 बसों को असेंबल किया जाता है।
वहीं प्रबंधन मज़दूरों पर इस बात का दबाव बना रहा है कि एक लाइन पर 15 बसों को एक दिन में तैयार किया जाये। इस बाबत मज़दूर यूनियन का कहना है कि वह एक दिन में 20 बसों को तैयार करने के राजी हैं, लेकिन वैसी सुविधाएं मुहैया कराई जाएं और मज़दूरों की मांगों माना जाए।
वीरेश ने बताया कि प्रबंधन ने 6 महीने तक बसों के उत्पादन की निगरानी करवाने का फैसला किया और इससे पता चला कि एक लाइन पर एक दिन में 8-9 बसों को ही तैयार किया जा सकता है।
वीरेश का कहना है कि इसके बावजूद, लेबर अफसर ने सरकार को रिपोर्ट सौंपी, जिसमें कहा कि सभी स्थाई मज़दूरों ने निर्धारित बसों की संख्या के आधार काम नहीं किया। इस रिपोर्ट के बाद प्रबंधन ने परमानेंट मज़दूरों को काम से निकाल कर ठेका मज़दूरों को भर्ती शुरू कर दी।
यूनियन का आरोप है कि इस संबंध में प्रबंधन सरकार को झूठी रिपोर्ट सौंपी है जिसमें कहा गया है कि ठेका मज़दूरों ने एक दिन ने 15 बसों को तैयार किया है। जबकि सच्चाई इससे बहुत अलग है।
वर्करों ने कार्यबहाली के लिए कई बार धरने-प्रदर्शन भी किये और अपनी मांगों के कई पत्र भी लेबर विभाग में लगाए।
इस संबंध में मजदूरों ने बेलगांव में विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान एक दिन का प्रदर्शन भी किया।
वीरेश ने बताया कि मज़दूरों की कार्यबहाली के संबंध में यूनियन ने तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री से भी मुलाकात की है।
मज़दूरों को इस बात का आश्वासन दिया गया है कि सभी मज़दूरों के कार्यबहाल कर उनके ट्रांसफर आर्डर को भी कैंसिल किया जाएगा, लेकिन अभी तक इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं हुई।
(कॉपीः शशिकला सिंह)
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