क्रश्ड 2023 रिपोर्ट: ऑटो सेक्टर में दुर्घटनाएं, संघर्ष और सुरक्षा की कड़ी राह
By :- श्रीहरि पलिअथ
ऑटो सेक्टर देश और दुनिया के स्तर पर लोगों को रोजगार मुहैया कराने के मामले में सबसे बड़े सेक्टर में से एक है. लेकिन रोजगार के साथ-साथ ये सेक्टर मज़दूरों के लिए शोषण की एक अंतहीन शृंखला को भी जन्म देता है. विशालकाय मशीनों के बीच काम करने के दौरान मज़दूर हर पल दुर्घटना के संशय के साथ खड़ा होता है.
हाल ही में बेंगलुरु बेस्ड संस्था सेफ इन इंडिया फाउंडेशन (एसआईआई) की एक रिपोर्ट “ऑटो सेक्टर में दुर्घटनाएं: संघर्ष और सुरक्षा की कड़ी राह”आई है,जिसमें ऑटो सेक्टर में मज़दूरों के लगातार हो रही दुर्घटनाओं और इन दुर्घटनाओं पर फैक्ट्री मैनेजमेंट के साथ-साथ सरकारी रवैये की भी चर्चा की गई है.
सेफ इन इंडिया फाउंडेशन के सह-संस्थापक और सीईओ संदीप सचदेवा ने कहा, इस रिपोर्ट को तैयार करने के दौरान हमने पाया कि महिला श्रमिकों को चोट लगने के बाद नियोक्ताओं और यहां तक कि सरकारी प्रणाली द्वारा भी अलग-अलग व्यवहार का सामना करना पड़ता है.
संस्था बताती है की इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए 2021 और 2023 के बीच सर्वेक्षणों के माध्यम से छह राज्यों – हरियाणा, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, राजस्थान, कर्नाटक और तमिलनाडु से डेटा एकत्र किया गया.
रिपोर्ट बताती है ” केवल हरियाणा और महाराष्ट्र में ही ऑटो-सेक्टर की आपूर्ति श्रृंखला में हजारों मज़दूरों को काम के दौरान अपनी उंगलियां खोनी पड़ रही हैं”.
एसआईआई के सह-संस्थापक और सीईओ संदीप सचदेवा बताते है की “चोटों का मुख्य कारण फैक्ट्री मालिकों/प्रबंधकों, ओईएम और सरकार सहित सभी हितधारकों के बीच मज़दूरों के सुरक्षा के प्रति जिम्मेदारी की कमी है. इस तरह जिम्मेदारी के प्रति लापरवाही की कमी ऑटो क्षेत्र के तकरीबन हर ब्रांड तक फैली हुई है,जबकि इन्ही के पास इस आपूर्ति श्रृंखला के अंतिम लाभार्थी के रूप में इस स्थिति को सुधारने के लिए वाणिज्यिक शक्ति और कॉर्पोरेट जिम्मेदारी है”.
आपको बताते चलें की SII एक नागरिक समाज संगठन है जिसे भारत की ऑटो सेक्टर आपूर्ति श्रृंखला में श्रमिक सुरक्षा और भारत सरकार की कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESIC) योजना के माध्यम से सामाजिक सुरक्षा में सुधार के लिए 2016 में शुरू किया गया था. इस वर्ष की रिपोर्ट में इस क्षेत्र में उन महिला श्रमिकों की समस्याओं पर भी दृष्टिकोण पेश किया गया है जो काम के दौरान गंभीर चोटों से प्रभावित हुई हैं.
सचदेवा रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहते हैं की ” एक जो गौर करने वाली बात हमें अपने सर्वेक्षण के समय देखने को मिली कि महिला मज़दूर को चोट लगने के बाद नियोक्ताओं और यहां तक कि सरकारी तंत्र द्वारा भी अलग-अलग व्यवहार का सामना करना पड़ता है. यहाँ तक की महिला मज़दूरों द्वारा अपने सुरक्षा की मांग करने पर उनको नौकरी से निकाले जाने की भी धमकी दी जाती है.”
फैक्टरियों में हर रोज 3 मज़दूरों की होती है मौत
इंडिया स्पेंड ने सरकारी आंकड़ों के आधार पर जनवरी 2023 की रिपोर्ट में बताया है कि 2017 और 2020 के बीच, भारत की पंजीकृत फैक्ट्रियों में दुर्घटनाओं के कारण हर दिन औसतन तीन लोगों की मौत हुई है और 11 लोग घायल हुए हैं.
अपने एक इंटरव्यू में सचदेवा रिपोर्ट और उसके निष्कर्षों, और भारत में व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य (ओएसएच) के आसपास की चुनौतियों और ओईएम और उनकी आपूर्ति श्रृंखलाओं के बारे में बात करते हैं, और बताते है की सरकार को मज़दूरों की सुरक्षा में सुधार के लिए हस्तक्षेप करना चाहिए.
SII ने लगभग सात साल पहले 2016 में फ़ैक्टरी दुर्घटनाओं और चोटों पर काम करना शुरू किया था. वो सर्वेक्षण में इन सवालों के साथ जाते हैं की क्या तब से कोई सुधार हुआ है? कारखानों में व्यावसायिक सुरक्षा सरकारों, निर्माताओं और उनकी आपूर्ति श्रृंखलाओं के लिए प्राथमिकता क्या है? हम कार्यस्थल पर इतनी सारी चोटें क्यों देखते हैं?
रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है की चोटों का प्राथमिक कारण कारखाने के मालिकों/प्रबंधकों, ओईएम और सरकार सहित सभी हितधारकों के बीच श्रमिक सुरक्षा के प्रति जिम्मेदारी की कमी है. ऑटो सेक्टर की आपूर्ति श्रृंखला में, कर्मचारी अक्सर पावर प्रेस जैसी खतरनाक मशीनों पर अपर्याप्त सुरक्षा प्रावधानों के साथ असुरक्षित कामकाजी परिस्थितियों में काम करते हैं.
54 प्रतिशत मज़दूरों को पता होता है की वो ख़राब मशीन पर काम कर रहे
उदाहरण के लिए जैसा कि ‘क्रश्ड 2023’ में बताया गया है ” हरियाणा और महाराष्ट्र में 54% घायल श्रमिकों को दुर्घटना से पहले पता था कि मशीन ख़राब थी और उनमें से 70% ने पहले ही अपने सीनियर को ख़राब मशीन के बारे में सूचित किया होता है. स्पष्ट रूप से, इन ऑटो कंपोनेंट कारखानों के कई मालिक/प्रबंधक अपने मज़दूरों की बात नहीं सुनते हैं या इससे भी बदतर की उनकी परवाह नहीं करते हैं.”
जिम्मेदारी की यह कमी ऑटो क्षेत्र के लगभग हर ब्रांडों तक फैली हुई है. जिनके पास इस स्थिति को सुधारने के लिए वाणिज्यिक शक्ति और वास्तव में कॉर्पोरेट जिम्मेदारी भी है.
सचदेवा बताते है की “हमारी पहली रिपोर्ट – ‘क्रश्ड 2019’ और बाद में पहली ‘सेफ्टीनीति 2021’ के बाद से कुछ सकारात्मक बदलाव हुए हैं. कुछ ऑटो सेक्टर ब्रांडों ने अपने स्वयं के अनुबंध में मज़दूरों और अपने आपूर्तिकर्ताओं के लिए अपनी कार्य सुरक्षा नीतियों में सुधार करना शुरू कर दिया है. शीर्ष 10 ओईएम में से सात अब सार्वजनिक डोमेन में कामगारों के प्रति अपनी सुरक्षा सम्बन्धी नीतियों की घोषणा कर रहे हैं. कुछ ने अपने टियर-2 आपूर्तिकर्ताओं का ऑडिट बढ़ाना शुरू कर दिया है (टियर-1 आपूर्तिकर्ता ओईएम को पार्ट्स की आपूर्ति करते हैं और टियर-2 आपूर्तिकर्ता टियर-1 संगठनों को आपूर्ति करते हैं).”
रिपोर्ट के अनुसार “गुरुग्राम में दुर्घटनाओं में कुछ कमी आने के शुरुआती संकेत मिले हैं, लेकिन यह अभी तक कोई महत्वपूर्ण रुझान नहीं है. अभी बहुत लंबा रास्ता तय करना है. उदाहरण के लिए, हम पावर प्रेस मशीनों में सुरक्षा सेंसर लगाने की वकालत कर रहे हैं, जो क्रश चोटों के लिए जिम्मेदार हैं. लेकिन सुरक्षा सेंसर के बिना पावर प्रेस मशीनों पर होने वाली चोटों की संख्या लगभग 90% है.”
कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (एमसीए) ने बड़े व्यवसायों और एमएसएमई क्षेत्र द्वारा जिम्मेदार व्यवसाय आचरण के लिए राष्ट्रीय दिशा निर्देश (एनजीआरबीसी) को अपनाने की आवश्यकता को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पंजीकृत कारखानों में दुर्घटनाओं पर महानिदेशक फैक्टरी सलाहकार श्रम संस्थान (डीजीएफएएसएलआई) के आंकड़ों के आधार पर एक नोटिस जारी किया. हालाँकि, व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य (OSH) के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के कई अवसर चूके जा रहे हैं, जिनमें व्यापार और मानवाधिकार पर भारत की राष्ट्रीय कार्य योजना का जारी न होना, कई मंत्रालयों की नवीनतम नीतियों में OSH फोकस की कमी शामिल है.
इसके साथ ही ‘क्रश्ड 2023’ बताती है की सही समय पर ओएसएच डेटा के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल स्थापित करने में देरी में भी सुधार करने की बहुत जरुरत है.
सचदेवा कहते हैं की ‘अगर हम सबका साथ सबका विकास हासिल करना चाहते हैं तो ऑटो सेक्टर के ब्रांडों और सरकार को एक साथ आने और इस मुद्दे को गंभीरता से लेने की जरूरत है’.
रिपोर्ट के अनुसार ‘ पिछले छह वर्षों में SII द्वारा 6,000 से अधिक घायल मज़दूरों की सुचना एकत्रित की गई और उनकी सहायता की गई है. डीजीएफएएसएलआई (फैक्टरी सलाहकार श्रम संस्थान ) ने कारखानों में चोटों को “गंभीरता से कम करके आंका” है. SII ने 2020 में हरियाणा में 500 से अधिक घायल श्रमिकों से मुलाकात की, जबकि DGFASLI द्वारा रिपोर्ट किए गए आधिकारिक डेटा वर्ष में केवल 68 दिखाते हैं. आखिर क्या कारण है कि DGFASLI डेटा चोटों और मौतों को कम कर के बताता है?’
गुरुग्राम,मानेसर और फरीदाबाद के हालात सबसे बुरे
सचदेवा कहते हैं ‘ हमारे देश में यह एक पुरानी समस्या है और दशकों से चली आ रही है कि सिस्टम की सच्चाई उजागर करने के बजाय कम रिपोर्ट करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. यहां तक कि 2021 में भी हरियाणा में गैर-घातक दुर्घटनाओं की कुल संख्या 24 है, जो अकेले दो स्थानों, मानेसर, गुरुग्राम और फ़रीदाबाद में SII द्वारा समर्थित 1,000+ घायल श्रमिकों में से 2.5% से कम है.
डीजीएफएएसएलआई डेटा राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) के कारखानों के मुख्य निरीक्षक के साथ पत्राचार के माध्यम से एकत्र किया जाता है और सर्वेक्षण के दौरान हमने पाया कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में प्रणालीगत डेटा संग्रह के लिए कोई उपकरण नहीं है. ऑटो सेक्टर व्यवसाय सक्रिय रूप से गंभीर दुर्घटनाओं और चोटों की भी रिपोर्ट करने से बचते हैं क्योंकि वो घायल मज़दूरों की किसी भी तरह की जिम्मेदारी से बचना चाहते हैं और ऐसे में उनके लिए ये आवश्यक हो जाता है की मज़दूर चाहकर भी अपनी एफआईआर दर्ज न करा पाए.
रिपोर्ट में डाटा सम्बन्धी इस हेर-फेर पर चिंता जाहिर की गई है.खराब डेटा खराब नीतियों की ओर ले जाता है, जिससे देश को कोई मदद नहीं मिलती. उदाहरण के लिए, डीजीएफएएसएलआई के मानक नोट में घातक और गैर-घातक चोटों में लगातार गिरावट का उल्लेख है.कम रिपोर्टिंग का नतीजा यह है कि व्यावसायिक सुरक्षा को नीतिगत उद्देश्य के रूप में प्राथमिकता नहीं दी जाती है.
हमें याद रखना चाहिए कि भारत की श्रम उत्पादकता दुनिया में 131वें स्थान पर है और जब तक हम काम करने की स्थिति में सुधार नहीं करते, हम वह विकास हासिल नहीं कर सकते जिसकी हम योजना बना रहे हैं. ऐसे में हम चीन और बाकि देशों के साथ बड़े पैमाने पर पेशेवर प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते.
‘क्रश्ड 2023’ की रिपोर्ट बताती है कि हरियाणा और महाराष्ट्र में अधिकांश घायल मज़दूरों क्रमशः 68% और 85% को दुर्घटनाओं के बाद अपना ईएसआईसी ई-पहचान कार्ड प्राप्त हुआ, जबकि उन्हें यह शामिल होने के पहले दिन ही प्राप्त हो जाना चाहिए था. चूंकि घायल मज़दूरों की संख्या काफी ज्यादा है ऐसे में लाखों श्रमिक एक ही नाव पर सवार हैं और कई लोग ईएसआईसी सेवाओं के लिए पंजीकृत भी नहीं हो सकते हैं.
ईएसआईसी के तहत श्रमिक को पंजीकृत करने और यह सुनिश्चित करने की सीधी जिम्मेदारी फैक्ट्री मालिक या प्रबंधक पर कि उन्हें ज्वाइन होने के दिन अपना ई-पहचान कार्ड प्राप्त हो पर आमतौर पर ऐसा देखने को नहीं मिलता.
सचदेवा बताते है की ” ईएसआईसी नियमों का अनुपालन न करने पर जुर्माना नगण्य है. ईएसआईसी प्रबंधकों के पास गैर-अनुपालन वाले व्यवसायों का ऑडिट करने की क्षमता नहीं है. एसआईआई सक्रिय कार्रवाई करने के लिए अपने डेटा का उपयोग करके ईएसआईसी को डिजिटल समाधान की सिफारिश कर रहा है और उम्मीद कर रहा है कि इन्हें जल्द ही लागू किया जाएगा”.
रिपोर्ट के अनुसार “खराब ईएसआईसी अनुपालन वाली फैक्टरियों में काम करने की स्थिति भी बदतर है.यह मानना सहज है कि एक फैक्ट्री ईएसआईसी अधिनियम जो मज़दूरों के सामाजिक सुरक्षा से संबंधित है, का बेहतर अनुपालन करती है. वह फैक्ट्री अधिनियम जैसे दूसरे कानून का भी बेहतर अनुपालन करती है, जो व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य से संबंधित है”.
सचदेवा भी तथ्य को पुख्ता करते हुए कहतें है कि “यह हमारे विश्लेषण में सांख्यिकीय रूप से सिद्ध हो चुका है. दो राज्यों में चार ऑटो सेक्टर हब को कवर करने वाले फील्डवर्क से हमारा अनुभव भी यही रहा है की जो फैक्ट्रियां ईएसआईसी नियमों का पालन नहीं करतीं, उनमें काम करने की स्थिति बदतर होती है”.
आगे वो बताते हैं कि ‘संख्या के संदर्भ में हमारे पास कई संकेतक हैं जो ईएसआईसी नियमों के साथ-साथ सुरक्षा मानदंडों के सही तरीके से पालन नहीं करने के संकेत देते हैं. पहले बताए गए दुर्घटना के बाद ईएसआईसी पंजीकरण के अलावा, तथ्य यह है कि अधिकांश घायल मज़दूरों को पहले निजी अस्पतालों में ले जाया गया और बाद में सभी तीन राज्यों – हरियाणा, महाराष्ट्र और उत्तराखंड के ईएसआईसी अस्पतालों में ले जाया गया. यह ईएसआईसी कानूनों के गैर-अनुपालन की सीमा को दर्शाता है’.
कामकाजी परिस्थितियों के संबंध में ‘क्रश्ड 2023’ डेटा दर्शाता है कि अधिकांश कारखाने, जिनके मज़दूरों की SII ने सहायता की से निरीक्षण न करके, प्रति सप्ताह 48 घंटे की कानूनी सीमा से अधिक ओवरटाइम भुगतान के बिना मज़दूरों से अधिक काम कराकर, अकुशल मज़दूरों को उनकी जगह पर नियुक्त करके कानूनों का उल्लंघन करते हैं. बिना सही ट्रेनिंग के, दस्तानों के अलावा और कोई सुरक्षा उपकरण उपलब्ध न कराना और दुर्घटना रिपोर्ट में हेरफेर करना. ये बेहद ही आम है इन फैक्टरियों में.
हरियाणा और महाराष्ट्र में 80% से अधिक कामगारों ने सप्ताह में 48 घंटे की कानूनी सीमा से अधिक काम किया और अधिकांश घायलों ने सप्ताह में छह दिन काम किया था. सर्वेक्षण के दौरान ये पता चला कि निरीक्षण एवं निगरानी अपर्याप्त है.
नए व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कामकाजी स्थिति कोड (ओएस और डब्ल्यूसी कोड) और ओएसएच नियमों के मसौदे में कुछ प्रावधान हैं जो कर्मचारी सुरक्षा के लिए सहायक नहीं हैं, लेकिन इसके बावजूद कुछ राज्य सरकारें इन्हें लागू करने में जल्दबाजी करती दिख रही हैं. दूसरी ओर, नए ओएस और डब्ल्यूसी कोड के कई कर्मचारी-अनुकूल नियम हैं लागू होते नहीं दिख रहे हैं.
ओएसएच कोड में दैनिक काम के घंटों पर आठ घंटे की सीमा है, लेकिन कोई साप्ताहिक सीमा नहीं है. जबकि मसौदा नियमों में 48 घंटे की साप्ताहिक सीमा है, लेकिन दैनिक घंटों पर कोई सीमा नहीं है. भले ही श्रम कानूनों को अभी तक अधिसूचित नहीं किया गया है, लेकिन कई राज्य सरकारें फैक्ट्री अधिनियम में संशोधन करने या काम के घंटों को 48 घंटे से अधिक बढ़ाने के लिए अधिसूचना पारित करने में जुट गई हैं.
सचदेवा बताते हैं कि “रिपोर्ट में हमने तीन अन्य नियमों की भी पहचान की है जो अपर्याप्त निरीक्षण और निगरानी के मुद्दे को बढ़ा सकते हैं, जिन्हें कई राज्य सरकारें अपनाने की जल्दी में हैं और फैक्ट्री अधिनियम में संशोधन के माध्यम से पहले ही अपना चुकी हैं. इसमें एक कारखाने के रूप में परिभाषित करने के लिए आवश्यक मज़दूरों की न्यूनतम संख्या को दोगुना करना, नए कारखानों के लिए 1,000 दिनों तक फैक्टरी अधिनियम से पूर्ण छूट सहित कार्य स्थलों पर मज़दूरों के शोषण को बढ़ाने वाली हैं”.
दूसरी ओर कोई भी राज्य सरकार उन प्रावधानों को अपनाने की जल्दी में नहीं है जो मज़दूरों को वार्षिक मुफ्त स्वास्थ्य जांच, ओवरटाइम के लिए सहमति, अगले आधे घंटे तक के राउंडिंग के साथ ओवरटाइम की गणना, इंटर के लिए डेटाबेस बनाए रखने सम्बन्धी हैं. इसके साथ ही प्रवासी श्रमिक, कुछ मुख्य गतिविधियों में अनुबंध श्रम/तीसरे पक्ष के कर्मचारियों की भागीदारी को प्रतिबंधित करना और असंगठित क्षेत्रों में श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा कि भी उपेक्षा कि जा रही है.
महिला मज़दूरों कि स्थिति बद से बदतर
रिपोर्ट में महिला मज़दूरों की स्थिति को पुरुषों कि तुलना में और अधिक ख़राब पाया गया है. यद्यपि दुर्घटनाओं में महिला और पुरुष सामान रूप से घायल होते रहे हैं इसके बावजूद महिलाओं पर पावर प्रेस चलाने के लिए पुरुषों की तुलना में अधिक दबाव डाला जाता है.
रिपोर्ट बताती है कि ” भारत में महिलाएं पुरुषों की तुलना में 28% कम कमाती हैं. यह भेदभाव पावर प्रेस मशीनों के संचालन तक भी फैला हुआ है, महिलाओं को समान ‘खतरनाक मशीनों’ को चलाने के लिए पुरुषों की तुलना में कम भुगतान मिलता है. अपनी ख़राब वित्तीय परिस्थितियों के कारण कई महिला श्रमिक जोखिमों को जानने के बावजूद उन्हें दी जाने वाली अतिरिक्त अल्प राशि के लिए पावर प्रेस में काम करना चुनती हैं”.
कुछ कारखानों में विशेष रूप से फरीदाबाद में , पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाएं पावर प्रेस चलाती हैं, जबकि समान काम के लिए पुरुषों की तुलना में बहुत कम कमाती हैं. सर्वेक्षण के दौरान इस बात के सबूत मिलें कि जब कम ऑपरेटर उपलब्ध होते हैं और उत्पादन का दबाव अधिक होता है, तो कई महिलाओं को उनकी इच्छा के विरुद्ध उनके सुपरवाइजर द्वारा मशीनें चलाने के लिए मजबूर किया जाता है.
इसके अतिरिक्त महिलाओं को चोट लगने के बाद नियोक्ताओं और यहां तक कि सरकारी प्रणाली द्वारा भी अलग-अलग व्यवहार देखने को मिलता है. सर्वेक्षण के दौरान कई ऐसे मामले देखने को मिले जहां महिला श्रमिकों को बर्खास्तगी की धमकी दी गई है यदि वे अपनी सुरक्षा से सम्बंधित किसी तरह की शिकायत करती या ईएसआईसी पेंशन और अन्य धनराशि प्राप्त करने के लिए दस्तावेज मांगती हैं हुई नज़र आई तो.
फैक्टरियों की निगरानी करने पर कई ऐसे उदाहरण देखने को मिले जहां दुर्घटनाग्रस्त होने वाले श्रमिक अप्रशिक्षित या कम प्रशिक्षित होते हैं, फिर भी उन्हें भारी मशीनरी या जिन्हें कुशल संचालन की आवश्यकता होती है उन मशीनों पर काम करने के लिए मजबूर किया जाता है.
रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि लगभग आधे घायल कर्मचारी जानते थे कि मशीन ‘ख़राब काम कर रही है’ और वे इसकी शिकायत अपने सीनियर तक पहुंचा चुके हैं. इसके बावजूद उन्हें उन मशीनों पर काम करना पड़ा.
औसत घायल मज़दूर युवा, कम शिक्षित, एक अंतर-राज्य प्रवासी है और बिना यूनियन सदस्यता के एक गैर-स्थायी कामगार के रूप में काम करते है.
ठेका प्रथा की वजह से मज़दूरों की बढ़ी परेशानी
हरियाणा में 63%, महाराष्ट्र में 80% और उत्तराखंड में 100% गैर स्थायी कामगार होने के कारण अक्सर ठेकेदारों के माध्यम से काम पर रखा जाता है. ऐसे में मज़दूरों के साथ किसी भी तरह का पेपर वर्क नहीं किया जाता. ऐसे में मज़दूरों को उनके सामाजिक और क़ानूनी अधिकारों की कोई जानकारी नहीं होती. इसके साथ ही अस्पष्ट नियोक्ता-कर्मचारी संबंध अक्सर उनमें से कई लोगों के लिए कानूनी सुरक्षा को पहुंच से बाहर कर देते हैं.
सरकार के संबंध में रिपोर्ट से पता चलता है कि सभी भौगोलिक क्षेत्रों में औद्योगिक सुरक्षा और स्वास्थ्य विभागों के कारखाने निरीक्षणों की संख्या में भरी कमी है. जबकि ये निरीक्षण कार्य कारखानों में सुरक्षित कार्य वातावरण में सुधार के लिए महत्वपूर्ण हैं और इन्हें बढ़ाया जाना चाहिए.
रिपोर्ट इस बात का सुझाव देता है की देश में खराब कामकाजी परिस्थितियों वाले हॉटस्पॉट की पहचान की जाये उनका निरीक्षण समय-समय पर किया जाये और इसके लिए ईएसआईसी के डेटा का उपयोग किया जा सकता है.
किस तरह के सुधार की है जरुरत
रिपोर्ट इन बातों पर भी अपनी गहरी नज़र डालती है की आखिर व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा में सुधार और ओईएम को जवाबदेह बनाने के लिए सरकार को कैसे हस्तक्षेप करना चाहिए? यह सुनिश्चित करने में ओईएम को क्या भूमिका निभानी चाहिए कि उनकी आपूर्ति श्रृंखला मज़दूरों के सुरक्षा मानकों के अनुरूप है? क्या अन्य देशों की ऐसी प्रथाएँ हैं जिन्हें अपनाया जा सकता है?
इन सब सवालों पर अपनी बात रखते हुए सचदेवा बताते है कि “हम हमेशा दूसरे देशों की अच्छी प्रथाओं को अपना सकते हैं और यहां तक कि अपने देश के भीतर भी विभिन्न राज्यों की सर्वोत्तम प्रथाओं को अपना सकते हैं. उदाहरण के लिए अधिकांश औद्योगिक देशों में ओएसएच कानूनों का पालन करने में विफलता के खिलाफ निषेधात्मक दंड हैं जो कारखाने के मालिकों या प्रबंधकों के लिए एक मजबूत निवारक के रूप में कार्य करते हैं.”
रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘नीतिगत सिफारिशों में ओईएम बोर्डों को उनकी आपूर्ति श्रृंखला में मज़दूरों की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेने की आवश्यकता, सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स/ऑटोमोटिव कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के साथ एक संयुक्त उद्योग-स्तरीय टास्क फोर्स का निर्माण इत्यादि शामिल है’.
‘स्वामित्व संरचना की परवाह किए बिना सभी ऑटो सेक्टर ब्रांडों के लिए जिम्मेदारी और स्थिरता रिपोर्टिंग अनिवार्य होनी चाहिए, सतत विकास लक्ष्यों के संकेतक 8.8 (प्रति 100,000 श्रमिकों पर घातक और गैर-घातक व्यावसायिक चोटें, लिंग और प्रवासी स्थिति के आधार पर) पर रिपोर्ट करना, और यह सुनिश्चित करने के लिए तंत्र स्थापित करना.’
इसके साथ ही “परिचालन अनुशंसाओं में गहरी आपूर्ति श्रृंखला का मानचित्रण करना, एक आपूर्तिकर्ता आचार संहिता बनाना, प्रकाशित करना और लागू करना शामिल है. जो ओएसएच नीति वक्तव्य में एनजीआरबीसी, ईएसआईसी और अन्य नियमों और विनियमों का अनुपालन सुनिश्चित करता है, जिसमें उनके अपने कारखानों में स्थाई मज़दूरों के साथ-साथ गैर-स्थायी मज़दूरों को भी शामिल किया जाये”.
इसके अलावा “कार्यस्थल पर हुए दुर्घटना की रिपोर्टिंग की पारदर्शिता और जवाबदेही में सुधार, सबसे सुरक्षित कारखानों को व्यावसायिक रूप से पुरस्कृत करना, और क्षेत्रीय भाषाओं में ईमानदारीपूर्वक कर्मचारी सुरक्षा ऑडिट और कार्यकर्ता प्रशिक्षण जैसी प्रभावी जमीनी स्तर की कार्रवाइयां शुरू करना है.”
‘Auto Sector Businesses Actively Avoid Reporting Even Serious Accidents, Injuries’ (indiaspend.com)
(इंडिया स्पेंड कि रिपोर्ट से साभार)
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