दिल्ली की फ़ैक्ट्रियों में 2022 में आगजनी से कितने मज़दूर मरे?
By शशिकला सिंह
हमारे देश में कार्यस्थल पर होने वाले हादसों में हर साल सैकड़ों मज़दूर अपनी जान गंवा देते हैं। हज़ारों मज़दूर विकलांग हो जाते हैं। फैक्ट्री प्रबंधन सुरक्षा मानकों पर बिलकुल भी ध्यान नहीं देते हैं।
देश की राजधानी दिल्ली इस साल मई के महीने में आग का गोला साबित हुई। उस महीने में कई हादसों में अनेकों मज़दूरों ने अपनी जान गंवा दी।
फिर भी केजरीवाल सरकार ने काम के दौरान मज़दूरों की सुरक्षा नीति पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
आइए इस रिपोर्ट के माध्यम से जानते हैं कि दिल्ली में साल 2022 में कितने और कहां-कहां मज़दूरों को होना पड़ा कार्यस्थल पर हादसों का शिकार!
मुंडका फैक्ट्री की दिल दहला देने वाली आगजनी
दिल्ली फैक्ट्री मज़दूरों के लिए 13 मई के हादसे को भूल पाना नामुमकिन है। दिल्ली के बाहरी इलाका मुंडका में एक CCTV बनाने वाली तीन मंज़िला फैक्ट्री में भीषण आग लगने से 27 मज़दूर काल के गाल में समा गए।
जबकि कई अन्य मज़दूर गंभीर रूप से घायल हुए। बताया गया था कि जिस समय फैक्ट्री में आग लगी थी, उस समय वहां 200 से ज्यादा मज़दूर मौजूद थे। जिसमें महिला मज़दूरों की संख्या अधिक थी।
हादसे के बाद दिल्ली सरकार ने मज़दूरों के परिवार वालों को 10-10 लाख रुपए का मुआवज़ा दिया था, जो मज़दूरों के परिवार वालों को मिला चुके हैं। लेकिन मोदी सरकार ने मज़दूरों के परिजनों से वादा खिलाफी की।
केंद्र की मोदी सरकार ने पीड़ित परिवार वालों को दो-दो लाख मुआवजा देने की बात कही थी।
वर्कर्स यूनिटी ने अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में पाया है कि नवंबर 2022 तक भी मृत मज़दूरों के परिवार वालों के अकाउंट में मोदी सरकार द्वारा एलान किये गए मुआवजे की राशि का भुगतान नहीं किया गया है।
इसके अलावा फोरेंसिक लैब ने अपनी रिपोर्ट में पाया है कि 27 शवों के अलावा कुछ अतिरिक्त नमूने मिले हैं। एफएसएल (रोहिणी) की निदेशक दीपा वर्मा ने बताया, ”कुल 27 शवों की पहचान की गई है और उन्हें दावेदारों को सौंप दिया गया है।
हालांकि, विशेषज्ञों द्वारा की गई जांच के दौरान, कुछ अतिरिक्त डीएनए नमूने मिले हैं। इस तरह के प्रोफाइल को भविष्य के संदर्भ के लिए संरक्षित किया गया है।”
2021 में सरकार द्वारा संसद में दी गई जानकारी के मुताबिक, बीते पांच सालों में कम से कम 6500 कामगार फ़ैक्ट्रियों, पोर्ट, माइनों और कन्स्ट्रक्शन साइटों पर मारे गए। हालांकि इस क्षेत्र में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि ये संख्या इससे बहुत ज़्यादा हो सकती है क्योंकि कई मामले रिपोर्ट नहीं किए जाते या उनका कोई रिकॉर्ड नहीं होता।
ग्लोबल वर्कर्स यूनियन इंडस्ट्रीअल के आंकड़ों के मुताबिक उत्पादन, केमिकल और कन्स्ट्रक्शन के क्षेत्रों में सबसे ज़्यादा मौतें होती हैं। अकेले 2021 में हर महीने मैन्यूफ़ैक्चरिंग इंडस्ट्री में 162 से ज़्यादा मज़दूरों की मौत हुई।
मई तक 2000 आगजनी की घटनाएं, 42 लोग मरे
देश की राजधानी दिल्ली में सिर्फ मई के महीने में 19 तारीख तक 2000 आगजनी के मामले सामने आये थे।
इन आगजनी की सभी घटनाओं में 42 लोगों ने अपनी जान गंवा दी और सभी घटनाओं में 117 लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे।
बीते 24 मई को दिल्ली के दमकल विभाग द्वारा जारी आंकड़ों में मुताबिक मई के महीने में 2145 फोन कॉल फायर से जुड़ी हुई आई, जिसमें 117 मामलों में किसी भी प्रकार की हानि नहीं हुई, साथ ही विभाग का कहना है कि यह आंकड़ा बीते तीन सालों की तुलना में सबसे अधिक है।
वहीं 2021 के मई महीने में आग लगने की 2174 घटनाएं दर्ज हुई थीं, जबकि 2020 में इसी दौरान 2325 घटनाएं रिपोर्ट हुई।
मई 2019 में 3297 आग की घटनाएं रिपोर्ट हुई थीं। दमकल विभाग द्वारा जारी आंकड़े दिखाते हैं कि मई 2019 में आग से 18 मौतें, 2020 में 10 और 2021 में 41 मौतें हुई थीं।
अगर बात केवल दिल्ली में हुए कार्यस्थल के हादसों की हो रही है तो इसमें कंस्ट्रक्शन वर्कर्स की मौत भी एक चिंता का विषय है। 2022 के निर्माणाधीन इलाकों में हुए हादसों में भी कई मज़दूरों ने जान गंवा दी है। इन सभी हादसों को एक सालाना कैलेंडर के आधार पर समझना ज्यादा सरल होगा।
गोकुलपुरी में 7 की मौत
12 मार्च 2022 को दिल्ली के गोकुलपुरी इलाके में भीषण आग लगने की घटना सामने आई थी। जिसमें 60 झुग्गियां एक साथ जल कर राख हो गयी थी इस हादसे में एक 11 साल के बच्चे समेत 7 लोगों की जलकर मौत हो गई थी।
यह घटना गोकुलपुरी के पिलर नंबर 12 के पास की थी। लगभग पूरा साल बीतने के बाद भी आग के कारणों का पता नहीं लगाया जा सका है। जाहिर है कि राजधानी की ज्यादातर झुग्गियों में गरीब मज़दूर वर्ग के लोग रहते है।
19 मई 2022 को उत्तर पूर्वी दिल्ली के मुस्तफाबाद इलाके में एक फैक्टरी में आग लगने से एक मज़दूर की मौत हो गई थी। जबकि 6 अन्य घायल हो गए। 7 दमकल गाड़ियों ने कड़ी मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया था।
इसके अलावा बीते 3 सितम्बर को इसी इलाके में पुस्ता रोड पर एक पुराने मकान की दीवार गिरने से 1 मजदूर की मौत हो गई और 3 मजदूरों के घायल होने की सूचना थी।
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अलीपुर में गोदाम ढहने की घटना
इसके बाद 15 जुलाई 2022 को अलीपुर इलाके में एक अवैध निर्माणाधीन गोदाम की इमारत गिरने से मलबे में दबकर 5 मजदूरों की मौत हो गई थी जिसमें 10 से अधिक मज़दूर घायल हुए थे।
हादसे के कुछ घंटों बाद घटना स्थल पर मौजूद कन्स्ट्रक्शन वर्कर्स यूनियन के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष राजीव कुमार ने वर्कर्स यूनिटी से बातचीत के दौरान कहा था कि, “आधिकारिक आंकड़ों की तुलना में मज़दूरों की संख्या बहुत ज्यादा है।”
उनका कहना था कि मज़दूरों की मौत का सही आंकड़ा छुपाने के लिए घायल मज़दूरों को अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती करवाया गया था।
इस तरह की हरकतों से सरकर की मुआवजा न देने की मंशा का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
इंटरनेशनल लेबर आर्गनाइजेशन (ILO) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि दुनिया भर में लगभग 23 लाख मज़दूर हर साल काम से संबंधित दुर्घटनाओं या बीमारियों के कारण अपना जीवन खो देते हैं। सितम्बर में जारी ILO के रिपोर्ट के मुताबिक कार्यस्थल पर हादसे के कारण दुनिया भर में हर दिन 6,000 से अधिक मज़दूरों की मौतें होती हैं।
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नरेला फ़ैक्ट्री में भीषण विस्फ़ोट
दिल्ली में मुंडका अग्नि कांड के बाद 2 नवंबर 2022 को एक और बड़ा हादसा होता है जिसमें 2 मज़दूरों ने अपनी जान गंवा दी थी। बाहरी दिल्ली के नरेला की एक फैक्ट्री में भीषण विस्फोट के बाद आग लगी, जिसकी चपेट में आकर 2 मजदूर मौके पर मारे गए, जबकि 20 अन्य मज़दूर गंभीर रूप से घायल हुए थे।
हालांकि, घटनास्थल पर उसी दिन शाम को पहुंची सीटू की फैक्ट फाइंडिंग टीम ने पाया कि इस घटना में कम से कम 8 मजदूरों की मौत हो चुकी है और 10 मजदूर गंभीर रूप से झुलस गए हैं। उनके बचने की संभावना बहुत कम है।
सीटू के दिल्ली यूनिट के सचिव सिद्धेश्वर शुक्ल का आरोप था कि मृतकों की संख्या को छिपाने की पूरी कोशिश की जा रही है और साक्ष्य को मिटाने का प्रयास किया जा रहा है। इस मामले में भी अभी तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया है। इतना ही नहीं दिल्ली सरकार और भारत सरकार ने मज़दूरों के लिए किसी भी तरह के मुआवज़े की घोषणा नहीं की है।
मीडिया रिपोर्ट से मिली जानकारी के मुताबिक, दिल्ली पुलिस के अनुसार पिछले 5 सालों में दिल्ली में 600 फ़ैक्ट्रियों का रजिस्ट्रेशन किया गया। जिसमें कार्यस्थल में होने वाले हादसों के कारण 245 मज़दूरों की मौत हुई थी। इन हादसों के अलग अलग मामलों में 84 लोगों को गिरफ़्तार किया गया था।
हर साल हज़ारों मज़दूरों की होती है मौत
भारत में आए दिन फैक्ट्री हादसे होते रहते हैं। जिसमें मज़दूर अपनी जान गंवा बैठते हैं। द हिंन्दू में छपी खबर के अनुसार, मई 2020 तक देश में 30 फैक्ट्री दुर्घटनाएं हुई हैं। जिसमें 75 से अधिक मज़दूरों ने अपनी जान गंवाई है।
आंकड़ों से पता चलता है कि 2014 से 2017 के बीच पूरे भारत में 8,004 फैक्ट्री दुर्घटनाएं हुई हैं, जिसमें 6,300 मज़दूरों ने अपनी जान गंवाई। रिपोर्ट के मुताबिक अधिकतर फैक्ट्री दुर्घटनाएं दिल्ली, महाराष्ट्र व राजस्थान में हुईं।
श्रम और रोजगार मंत्रालाय के आँकड़ों के अनुसार, पूरे भारत में 2014-2016 के बीच 3,562 मज़दूरों की मौत फैक्ट्री दुर्घटनाओं में हुई हैं और 51 हजार से अधिक मज़दूर घायल हुए हैं।
यानी भारत में हर दिन 3 मज़दूरों की मौत फैक्ट्री दुर्घटनाओं में होती है और 47 लोग घायल होते हैं।
ब्रिटिश सेफ्टी काउंसिल के 2017 के आँकड़ों के अनुसार, भारत में हर साल 48,000 मज़दूरों की मौत फैक्ट्री दुर्घटनाओं में होती है।
केजरीवाल की सरकार किसी से अलग नहीं
दिल्ली में फैक्ट्री वर्कर्स के संग संघर्ष करने वाले CITU दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष अनुराग सक्सेना ने वर्कर्स यूनिटी से विशेष बातचीत दौरान बताया कि संगठन के कई प्रयासों के बाद भी दिल्ली के श्रम मंत्री मनीष सिसोदिया से मुलाकात की कोशिश की, जो संभव नहीं हो सकी।
उनका आरोप है कि वर्तमान केंद्र और दिल्ली सरकार दोनों मज़दूर विरोधी है। यही कारण है कि वो मज़दूरों के संगठन से बात भी नहीं करना चाहती है।
अनुराग का कहना है कि शीला दीक्षित की सरकार और केजरीवाल की सरकार में कोई फर्क नहीं है। केवल पानी और बिजली फ्री कर देने से कोई भी सरकार यह साबित नहीं कर सकती कि वह गरीब मज़दूर वर्ग की समर्थक है।
मुंडका अग्नि कांड में मज़दूरों के लिए मुआवज़े के लड़ाई लड़ने वाले संगठन का कहना है कि दिल्ली में अग्नि के इतने हादसे होने के बाद भी दिल्ली सरकार ने मज़दूरों के सुरक्षा मानकों के लिए कोई नए नियम नहीं बनाए है।
इतना ही नहीं मज़दूरों को मिलने वाली सामाजिक सुरक्षा की भी धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।
सक्सेना का कहना है कि वर्तमान में ज्यादातर मज़दूर बिना ESI और PF की सुविधा के ही फैक्ट्रियों में काम करने को मज़बूर हैं। यहां तक कि कई जगहों पर मज़दूरों को दिल्ली सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन का भी भुगतान नहीं किया जाता है।
अनुराग का कहना है कि यदि दिल्ली सरकार का मज़दूरों के प्रति यही बर्ताव बरकरार रहा, तो संगठन को सरकार के खिलाफ विशाल आंदोलन करने के लिए मज़दूर होना पड़ेगा।
गौरतलब है कि लगातार बढ़ते हादसों में हो रही मज़दूरों के मौत की जिम्मेदार कोई भी सरकार नहीं लेना चाहती है। यही कारण है कि हर रोज़ मज़दूर कार्यस्थल में होने वाले हादसों का शिकार होने अलावा कुछ नहीं कर सकते हैं।
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