1857 से भी पहले झारखंड में बजा था क्रांति का बिगुल, भाग खड़े हुए अंग्रेज़
By दामोदर
1857 की स्वतंत्रता संग्राम से पहले ही, छोटानागपुर में अँग्रेज़ विरोधी क्रांति की मशाल जल चुकी थी। इस इलाके (जो आज का झारखंड प्रदेश है) में रहने वाले लोगों ने अंग्रेजी हुक़ूमत को ख़त्म कर खुद की सरकार क़ायम करने के लिए कई सशस्त्र आन्दोलन किये।
1770 में बाबा तिलका मांझी का संग्राम, से 1830 का कोल विद्रोह और भी कई आंदोलन हुए। छोटानागपुर की पहाड़ियों में विद्रोह की ज्वाला धधकती रही।
इसी कड़ी में शामिल हुआ 30 जून 1855 का महान संथाल हूल। इस साल संथाल हूल (विद्रोह) की 165वीं वर्षगांठ है और इसके नेताओं के वंशजों ने इस बार ‘हूल दिवस’ न मनाने की अपील की।
इसकी वजह है कि ‘हूल’ के नायक-नायिकाओं की छठी पीढ़ी के वंशजों में से एक मंडल मुर्मू ने एक वीडियो जारी कर कहा है कि 12 जून को उनके चचेरे भाई रामेश्वर मुर्मू की हत्या कर दी गई है।
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संथाली हूल
हूल का संथाली भाषा मे अर्थ होता है क्रांति। इसका मक़सद अत्याचारियों से आज़ादी और नए शासन व्यवस्था की स्थापना थी।
30 जुलाई को सिद्धू-कान्हू, चांद-भैरव ने महाजनों, साहूकारों, और ज़मींदारों के शोषण और उत्पीड़न से तंग हो चुका संथाली समाज ने इनके विरुद्ध हथियारबंद क्रांति की घोषणा की।
सिद्धू और कान्हू भाई थे और बरहेट स्थित भोगनाडीह गांव के रहने वाले थे। इन्हे दो अन्य भाइयों चांद-भैरव और बहन फूलो और झानो का सहयोग मिला।
इन सबों ने मिलकर संथालों की 30 हज़ार की विद्रोही जनसेना का निर्माण किया।
तात्कालिक संथाल परगना सेठों और महाजनों के अत्याचार से कांप रहा था। आम लोगों पर जितने प्रकार के ज़ुल्म किये जा सकते थे, वे इन लूटेरों महाजनों द्वारा किया जाता था।
फसल, मवेशी और जो कुछ भी इन्हें पसंद होता था वे उसे संथालियों से जबरदस्ती छीन लेना एक आम सी बात थी।
अंग्रेज़ भी टिक नहीं पाए
उसी समय अंग्रेज़ों द्वारा रेल की पटरी बिछाने का काम भी शुरू हो गया। रेल लाइन बिछाने वाले मज़दूरों के साथ शोषण और अत्याचार और बढ़ गया। इन सब के खिलाफ हूल का आगाज़ हुआ।
शुरू में इन्होंने सेठ, महाजन के खिलाफ युद्ध करना शुरू किया, लेकिन तात्कालिक ईस्ट इंडिया कम्पनी ने जब इन्ही अत्याचारियों का साथ देने लगी तो यह विद्रोह क्रांति में तब्दील हो गया।
जनता के इस सशस्त्र विद्रोह के आगे अंग्रेज़ी सेना भी परास्त हो गयी, और उसे इलाका छोड़ कर भागना पड़ा। लेकिन बाद में वह इस क्रांति को दबाने में सफल रही।
मज़दूरों के महान नेता कार्ल मार्क्स ने अपने ‘नोट्स ऑन इंडियन हिस्ट्री़’ में हूल को हथियारबंद जन क्रांति कह कर संबोधित किया था।
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