ज़मानत पर सुनवाई के दिन ही हुआ सामाजिक कार्यकर्ता स्टेन स्वामी का निधन

ज़मानत पर सुनवाई के दिन ही हुआ सामाजिक कार्यकर्ता स्टेन स्वामी का निधन

आदिवासी अधिकारों के लिए ताज़िंदगी काम करने वाले वयोवृद्ध सामाजिक कार्यकर्ता फ़ादर स्टैन (Activist Stan Swamy) स्वामी का सोमवार को मुंबई के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया।

आज ही उनकी ज़मानत पर बॉम्बे हाई कोर्ट में सुनवाई होने वाली थी। सामाजिक कार्यकर्ता लगातार कह रहे थे कि इतने वयोवृद्ध शख़्सियत को बिना चार्जशीट के क़रीब एक साल तक जेल में रखा गया, कोरोना के समय उन्हें रिहा कर देना चाहिए, लेकिन सरकार की ओर से इस पर कोई सुनवाई नहीं की गई।

भीमा कोरेगांव की शतवार्षिकी के समय गठित एल्गार परिषद से जुड़े लोगों पर एनआईए ने आरोप लगाया था कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रच रहे थे। इस मामले में एनआईए ने नौ सामाजिक कार्यकर्ताओं, ट्रेड यूनियन एक्टिविस्ट, प्रोफ़ेसर, वकीलों और रंगकर्मियों को गिरफ़्तार किया है।

सामाजिक कार्यकर्ताओं ने एनआईए के इस आरोप को हास्यास्पद बताया था जिसमें कहा गया कि मोदी की हत्या की साज़िश में स्टैन स्वामी का भी हाथ है। कार्यकर्ताओं ने सवाल उठाया कि एक 84 साल के बुज़ुर्ग व्यक्ति मोदी की हत्या की साज़िश कैसे रच सकते हैं?

सोशल मीडिया पर मोदी सरकार के रुख़ की आलोचना की जा रही है। एक ट्विटर यूज़र ने लिखा है, ‘दे किल्ड फादर स्टैन स्वामी।’

भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में भी उनपर आरोल लगाया गया था और बीते नौ महीने से वो जेल में बंद थे और हालत बिगड़ने के बाद एक निजी अस्पताल में इलाज़ के लिए ट्रांसफ़र किया गया था। वो 84 साल के थे।

बीते दो दिनों से उनकी तबियत काफ़ी बिगड़ गई थी और वेंटिलेटर पर रखा गया था। रविवार रात 12 बजे के बाद उनका ऑक्सीजन लेवल काफ़ी नीचे गिर गया।

झारखंड में आदिवासियों, दलितों और हाशिये के समुदायों के हित के लिए बीते कई दशकों से काम करने वाले स्टैन स्वामी को एनआईए ने 8 अक्टूबर 2020 को गिरफ़्तार किया था।

कोरोना काल में इतने वृद्ध सामाजिक कार्यकर्ता को जेल में बंद किए जाने के ख़िलाफ़ देश विदेश के सैकड़ों बुद्धिजीवियों ने सरकार को चिट्ठी लिखी और उन्हें तत्काल रिहा करने की अपील की लेकिन मोदी सरकार ने उनके इलाज़ तक की इजाज़त देने का कोर्ट में विरोध किया।

यहां तक कि उनकी जमानत याचिका को एनआईए की विशेष अदालत ने खारिज कर दिया था।

इलाज़ के लिए भी कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा तब जाकर उन्हें जेल से बाहर मल्टी स्पेशियलिटी अस्पताल में भर्ती कराया गया। पहले स्टेन स्वामी ने किसी विशेष अस्पताल में भर्ती का विरोध किया था और अस्थाई ज़मानत की मांग की थी।

लेकिन उनकी सहमति के बाद ये याचिका दायर की गई। उसके बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने 28 मई को उन्हें विशेष निजी अस्पताल में भर्ती कराने का आदेश दिया।

उनसे जुड़े सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि मई में जब उनकी हालत बिगड़ रही थी, जेल अधिकारियों ने उनका कोरोना टेस्ट तक नहीं कराया। बाद में जब सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उनकी सेहत मुद्दा उठाया तब जाकर कोविड टेस्ट हुआ जिसमें वो पॉज़िटिव पाये गए।

फादर स्टैन स्वामी तमिलनाडु के रहने वाले थे और झारखंड में आदिवासियों के बीच उन्होंने अपनी कर्मस्थली चुनी थी। यहां उन्होंने बगईचा नाम से एक संस्थान के माध्यम से लोगों के हित में काम कर रहे थे।

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Workers Unity Team

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