छत्तीसगढ़ सिलंगेर आंदोलन के एक साल, सरकार आदिवासी आंदोलन को चुप कराने में जुटी
छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के सिलंगेर में आदिवासी किसानों के आंदोलन के एक साल पूरे हो गए हैं।
यहां 15 से 17 मई के बीच विशाल धरना प्रदर्शन आयोजित है, लेकिन आयोजकों का आरोप है कि पुलिस प्रशासन लोगों को धरना स्थल पर जाने से रोक रहा है।
एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया कि 15 मई को दर्जनों लोगों को रास्ते में रोक लिया गया और लौटा दिया गया।
बीते 30 मार्च को आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता दिल्ली आए थे और उन्होंने इस आंदोलन की मांगों के बारे में अपनी बात रखी थी। छत्तीसगढ़ से गजेंद्र मंडावी ने कहा कि आदिवासियों पर अत्याचार बढ़े हैं लेकिन सरकार का रवैया बेहद निराशाजनक है।
एक साल पहले 12 मई, 2021 की रात बिना ग्रामसभा की सहमति या सूचना दिए सिलंगेर में चार किसानों की सात एकड़ जमीन पर रातों रात एक सीआरपीएफ कैंप अस्तित्व में आ गया था। इन आदिवासी किसानों को कोई मुआवजा भी नहीं दिया गया।
सुबह जब पता चला तो आदिवासी लोग आंदोलन करने लगे। 17 मई को सीआरपीएफ ने आंदोलनकारी आदिवासियों पर गोली चला दी, जिसमें मौके पर ही 3 नौजवानों की मृत्यु हो गयी और बाद में एक और घायल गर्भवती आदिवासी महिला की भी मौत हो गई।
इस आंदोलन को मूलवासी बचाओ मंच की ओर से चलाया जा रहा है।
तब से यह आंदोलन अनवरत जारी है, सीआरपीएफ कैंप के सामने सैकड़ों-हजारों आदिवासी दिन-रात जमे हुए हैं। इस आंदोलन से प्रेरणा लेते हुए बस्तर में और भी कई जगह ऐसे ही अनवरत धरना जारी है।
अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा के सचिव तेजराम विद्रोही का कहना है कि बस्तर में सरकार ने हर तीन किलोमीटर पर कैंप बना रही है।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की भूपेश बघेल की सरकार है।
लेकिन इस मुद्दे पर अभी तक कोई स्पष्ट नजरिया सामने नहीं आया है।
सिलंगेर के एक आदिवासी नौजवान ने बताया कि कार्यक्रम के पोस्टर तक छापने में प्रिटर्स को रोका जा रहा है।
तेजराम विद्रोही बताते हैं कि ‘धरना स्थल तक जाने में कई तरह को रुकावटें डाली जा रही हैं। कुछ महीने पहले जब किसान आदिवासी संगठन के लोग जा रहे थे, रास्ते में रोक लिया गया। लोग। वहीं धरने पर बैठ गए। घंटों बाद उन्हें जाने दिया गया। ‘
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