कैमरे की नज़र में बिहार में बहार का सच!
By रितिक जावला
ये तस्वीर दक्षिणी बिहार के यूपी से सटे ज़िले कैमूर की है, जहां आदिवासी बहुल आबादी रहती है और अभी इस इलाक़े को बाघ संरक्षण क्षेत्र घोषित कर दिया गया है। इसलिए यहां कैमूर मुक्ति मोर्चा के बैनर तले आंदोलन चल रहा है। राजमार्ग से पचास किलोमीटर दूर अधौरा ब्लॉक तक दो लेन वाली सड़क है उसके बाद कच्चा रास्ता। वहां भी कोई सार्वजनिक परिवहन नहीं। आदिवासी जान जोख़िम में डालकर आठ लोगों के बैठने वाली गाड़ी में 25 लोग बैठकर शहर काम करने जाते हैं वो भी खतरनाक पहाड़ी रास्ते से।
पहाड़ी रास्तों में छत पर बैठना कितना ख़तरनाक हो सकता है लेकिन कैमूर ज़िले की ये आम तस्वीर है। “दो गज दूरी मस्क है जरूरी” का नारा देने वाली सरकार ये जताती है कि उसे जनता की ज़िंदगी की कितनी फ़िक्र है। लेकिन यहां तो ज़िंदा रहने की फ़िक्र सबपर भारी है।
कैमूर में जल जंगल ज़मीन बचाने की लड़ाई जारी है। वन अधिनियम के तहत सरकार ने जंगल खाली कराने पर तो रोक लगा दी लेकिन सेंक्चुरी घोषित कर दूसरे तरीक़े से आदिवासी समुदाय की हदबंदी कर दी गई है। जंगल में लकड़ी चुनने, महुआ बीनने, चिरौंजी निकालने की इजाज़त तो दूर, घुसने तक की मनाही है।
कैमूर ज़िले के ब्लॉक अधौरा से भी 30 किलोमीटर आगे सारोदाग गांव में नीतीश कुमार सरकार की नल से जल योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा। ये हाल पूरे बिहार में है। हर गांव में पानी की टंकी लगा दी गई है, लेकिन या तो वहां ताला बंद है या नल घरों तक पहुंचा ही नहीं।
अधौरा से पहले ही पड़ने वाले बड़गांव खुर्द का यह प्राथमिक सवास्थ्य केंद्र बिहार में बहार की सच्चाई बयां करता है। क़रीब ढाई लाख की आबादी वाले इलाक़े में सिर्फ ब्लॉक पर एक अस्पताल है, जिसमें दो डॉक्टर बैठते हैं। बाकी जिन जगहों पर हम गए, गांव का पीएचसी इसी या इससे भी बुरी हालत में मिला।
बड़गांव खुर्द में ही क़रीब चार सौ बच्चों की क्षमता वाला आवासीय हाईस्कूल है। पुरानी बिल्डिंग जर्जर होने के बाद नई इमारत बन रही है। सुविधाओं का अंदाज़ा इस क्लासरूम से लगाया जा सकता है। बच्चे जिस कमरे में रहते हैं, उसी कमरे में क्लास लगती है, उसी में खाना खाया जाता है। कमरे में फर्श तक नहीं है।
जिस उम्र में इनके हाथ में किताब और खेल कूद के सामान होने चाहिए वहां बच्चे काम में जुटे हुए हैं। सारोदाग की ये बच्ची अपने घर की मरम्मत करती हुई हमें मिली। लेकिन जिस प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था का हाल बुरा हो, बच्चों का भविष्य क्या हो सकता है?
और कैमूर ज़िले के अधौरा ब्लॉक कार्यालय पर लगी नितीश कुमार के वादों की फ़ेहरिश्त।
(सभी तस्वीरें रितिक ज्वाला, फ़ोटो जर्नलिस्ट)
वर्कर्स यूनिटी के समर्थकों से एक अर्जेंट अपील, मज़दूरों की अपनी मीडिया खड़ी करने में सहयोग करें
(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)