अब मशहूर गांधीवादी हिमांशु कुमार पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाया 5 लाख रु. का ज़ुर्माना

अब मशहूर गांधीवादी हिमांशु कुमार पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाया 5 लाख रु. का ज़ुर्माना

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को प्रसिद्ध आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता और गांधीवादी हिमांशु कुमार पर आदिवासियों के लिए इंसाफ़ मांगने के लिए पांच लाख रुपये का ज़ुर्माना लगाया है।

साल 2009 में छत्तीसगढ़ में तैनात सुरक्षा बलों द्वारा कथित तौर पर 17 आदिवासियों को नक्सली बता कर किये गए फर्जी एनकाउंटर मामले की स्वतंत्र जांच के लिए रिट याचिका दायर की थी।

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इस याचिका को रद्द करते हुए जुर्माने के आदेश के साथ मुकदमा दर्ज किेए जाने की बात कही है।

कोर्ट ने अपने आदेश में “मिसाल कायम करने” की बात कही है और चार हफ्तों के अंदर सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विस कमिटी को पांच लाख रुपये जुर्माने के तौर पर जमा करने का आदेश दिया है।

Live Law की खबर के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हुक्म की तामील ना होने पर उनसे रकम वसूली के लिए कदम उठाए जाएंगे।

जस्टिस ए एम खानविलकर और जे बी पारदीवाला की बेंच ने हिमांशु कुमार व 12 अन्य लोगों द्वारा साल 2009 में हुए कथित गोम्पाड़ जनसंहार के मामले में दायर अर्जी पर यह फैसला सुनाया।

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इस फैसले पर सोशल मीडिया पर काफी आक्रोश व्यक्त किया जा रहा है। सीपीआई एमएल की पोलित ब्यूरो मेंबर कविता कृष्णन ने ट्वीट कर कहा है पहले तीस्ता सीतलवाड़ को और अब हिमांशु कुमार को सुप्रीम कोर्ट सज़ा दे रहा है।

असल में इसी साल मार्चा महीने में मोदी सरकार ने ना सिर्फ इस याचिका का विरोध किया था, बल्कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ झूठ साक्ष्य देने के लिए कार्यवाही की मांग करते हुए हलफनामा भी दायर किया था।

सरकार का आरोप है कि याचिकाकर्ता नक्सलियों द्वारा की गई हत्याओं को सैन्य बलों के मत्थे डाल रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं पर आईपीसी धारा 211 के तहत झूठे आरोप लगाने के लिए पर कार्यवाही करने का फैसला छत्तीसगढ़ सरकार पर छोड़ दिया है।

साथ ही कहा कि ना सिर्फ झूठे आरोप के लिए, बल्कि आपराधिक षड्यन्त्र रचने के लिए भी कार्यवाही की जा सकती है।

इसके बाद सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से दरख्वास्त की कि इस केस की जांच केन्द्रीय एजेंसी को दी जाए, ताकि “अंतर-राज्यीय दिक्कतें” ना हों।

केंद्र सरकार ने अपनी अर्जी में लिखा था, “निर्लज्ज वामपंथ कट्टरपंथियों द्वारा फैलाए गए हिंसा और नाइंसाफी के शिकार लोगों को कुछ व्यक्ति बहला फुसला कर उन कट्टरपंथियों को कानूनी सुरक्षा देने के लिए माननीय कोर्ट का धोखाधड़ी से इस्तेमाल करना चाहते हैं।”

मेहता ने कोर्ट को बताया कि 2009 के उस मामले में राज्य पुलिस ने केस दर्ज किया था और चार्जशीट भी दर्ज की थी। उन्होंने यह भी कहा कि हिमांशु कुमार एक एनजीओ, वनवासी चेतना आश्रम के डायरेक्टर हैं जिसका लाइसेन्स FCRA नियमों के तहत विदेश से आए पैसों का ब्योरा ना देने के लिए खारिज कर दिया गया था।

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा था कि CBI/NIA द्वारा मामले की एक स्वतंत्र जांच होनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि हिमांशु कुमार और 12 याचिकार्ताओं में सोड़ी शम्भो भी शामिल हैं जो कि मामले के चश्मदीद गवाह हैं। उन्होंने अपनी आखों के सामने पुलिस को अपने परिजनों की हत्या करते देखा है।

हिमांशु कुमार ने फैसले के बाद तुरंत फेसबुक पर टिप्पणी की और कहा, “मारे गए 16 आदिवासियों, जिसमें एक डेढ़ साल के बच्चे का हाथ काट दिया गया था, के लिए इंसाफ मांगने की वजह से आज सुप्रीम कोर्ट ने मेरे ऊपर 5 लाख का जुर्माना लगाया है और छत्तीसगढ़ सरकार से कहा है कि वह मेरे खिलाफ धारा 211 के अधीन मुकदमा दायर करे।”

बीते कुछ दिनों से सामाजिक कार्यकर्ताओं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर मोदी सरकार की टेढ़ी नज़र है और एक एक कर उन्हें जेल में डाला जा रहा है।

इससे पहले भीमा कोरेगांव केस में करीब एक दर्जन बुद्धिजीवियों को सालों से जेल में डाला गया है। अभी कुछ ही दिन पहले गुजरात दंगों का सच उजागर करने वाली तीस्ता सीतलवाड़ और एक पूर्व अधिकारी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।

मशहूर मानवाधिकार कार्यकर्ता मेधा पाटकर पर भी सरकार ने मुकदमा दर्ज कर लिया है।

पत्रकारों पर बीजेपी की सरकारें पहले से ही अपनी नज़र गड़ाए हुए हैं। सिद्दीक कप्पन हों या आल्ट न्यूज़ के ज़ुबैर अहमद, इन्हें बिना किसी संगीन जुर्म के अंदर रखा गया है।

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Workers Unity Team

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