तीन साल बाद सुधा भारद्वाज को मिली ज़मानत, भीमा कोरेगांव मामले में हुई थीं गिरफ़्तार
भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले में तीन साल से अधिक जेल की कैद के बाद जानी मानी मजदूर नेत्री और वकील सुधा भारद्वाज गुरुवार को ज़मानत पर बाहर आईं। उन्हें 28 अगस्त, 2018 को गिरफ्तार किया गया था।
इस मामले में 16 लेखक-मानवाधिकार कार्यकर्ता गिरफ्तार हुए थे, जिनपर यूएपीए जैसे उत्पीड़नकारी क़ानून के तहत आरोपित किया गया।
सुधा भारद्वाज उन 16 कार्यकर्ताओं में पहली आरोपी हैं, जिन्हें तकनीकी खामी के आधार पर जमानत दी गई है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस मामले में आठ अन्य सहआरोपियों- सुधीर धवले, वरवर राव, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन, महेश राउत, वर्नोन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा द्वारा दायर डिफ़ॉल्ट जमानत याचिका खारिज कर दी थीं।
न्याय की प्रतीक्षा में फादर स्टेन स्वामी की इस साल पांच जुलाई को अस्पताल में उस समय मौत हो गई थी, जब वह चिकित्सा के आधार पर जमानत का इंतजार कर रहे थे। जबकि कवि और कार्यकर्ता वरवर राव फिलहाल चिकित्सीय आधार पर मिली जमानत पर हैं।
मज़दूरों और मानवाधिकारों के लिए लड़ने वाली 60 वर्षीय सुधा भारद्वाज छत्तीसगढ़ में मज़दूरों के बीच काम किया। वो पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की राष्ट्रीय सचिव भी हैं।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने भारद्वाज को एक दिसंबर को डिफॉल्ट ज़मानत देने के बाद उनकी जमानत शर्तों पर फैसला करने के लिए विशेष अदालत के समक्ष पेश होने का निर्देश दिया था।
लेकिन बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने के लिए जांच एजेंसी एनआईए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई जहां उसकी अर्जी खारिज होने के बाद सुधा की रिहाई हो सकी है।
जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस. रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने एनआईए द्वारा दी गई दलीलों पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा, ‘हमें उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता है।’
बॉम्बे हाईकोर्ट ने जमानत का आदेश देते हुए एनआईए की विशेष अदालत को 8 दिसंबर को रिहाई की शर्तें तय करने को कहा था।
हाईकोर्ट ने आदेश में कहा था कि भारद्वाज जमानत की हकदार हैं और जमानत देने से इनकार करना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्राप्त जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के उनके मूल अधिकारों का हनन है।
एनआईए अदालत ने बुधवार को उन्हें 50,000/- रुपये के निजी मुचलके और 50,000/- रुपये की नकद जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया। साथ ही उन्हें इतनी ही समान राशि के एक या अधिक जमानतदार की व्यवस्था करने के लिए तीन महीने का समय दिया गया।
कानूनी औपचारिकताएं पूरी की गईं और बृहस्पतिवार दोपहर भायखला महिला कारागार से उन्हें रिहा कर दिया गया। गाड़ी में बैठते हुए भारद्वाज ने जेल के बाहर मौजूद मीडियाकर्मियों की ओर हाथ भी हिलाया।
क्या है मामला?
यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में आयोजित ‘एल्गार-परिषद’ सम्मेलन में दिए गए उन भाषणों से संबंधित है, जिसके बारे में पुलिस ने दावा किया था कि इसकी वजह से शहर के बाहरी इलाके में भीमा-कोरेगांव युद्ध स्मारक के पास अगले दिन हिंसा हुई थी।
हालांकि उस पूरे मामले में आरएसएस की संलिप्तता साफ उजागर हुई थी, लेकिन उलटे सुधा भारद्वाज सहित 16 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों को आरोपी बनाया गया है। इसकी जांच बाद में एनआईए को सौंप दी गई थी।
इन सभी कार्यकर्ताओं पर पुणे पुलिस द्वारा जनवरी 2018 में भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा और माओवादियों से कथित संबंधों के आरोप में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) थोपा गया।
तकनीकी खामी के आधार पर जमानत
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक दिसंबर को यह कहते हुए अधिवक्ता सुधा भारद्वाज को डिफॉल्ट जमानत दी थी कि गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) की धारा 43डी (2) और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167 (2)के प्रावधानों के तहत जांच और डिटेंशन के समय का विस्तार अदालत द्वारा नहीं किया गया।
कोर्ट ने विशेष एनआईए अदालत को उनकी जमानत की शर्तों और रिहाई की तारीख पर फैसला लेने का निर्देश दिया था। इसके बाद सामाजिक कार्यकर्ता को एक दिसंबर को विशेष न्यायाधीश डीई कोठलिकर के समक्ष पेश किया गया।
उच्च न्यायालय ने बीते 24 नवंबर अन्य आठ आरोपियों- सुधीर धवले, वरवरा राव, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन, महेश राउत, वर्नोन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा की तकनीकी खामी के आधार पर जमानत देने की याचिकाएं खारिज कर दी थी।
जमानत आदेश में निम्नलिखित शर्तें भी सूचीबद्ध-
विशेष एनआईए अदालत ने बुधवार भारद्वाज की जमानत की 15 शर्तें तय कीं।
- वह मुंबई अदालत के अधिकार क्षेत्र में रहेगी और अदालत की अनुमति के बिना इसे छोड़कर नहीं जाएंगी।
- वह अदालत और एनआईए को तुरंत मुंबई में अपने निवास स्थान और अपने संपर्क नंबरों के बारे में सूचित करेंगी। साथ ही अपने साथ रहने वाले रिश्तेदारों के संपर्क नंबर भी उन्हें देने होंगे।
- वह दस्तावेजी प्रमाण के साथ कम से कम तीन संबंधियों जिनसे खून का रिश्ता हो की सूची उनके विस्तृत आवासीय और काम के पते के साथ प्रस्तुत करेंगी।
- जमानत पर रहने के दौरान उसके आवासीय पते में कोई बदलाव होने पर उन्हें एनआईए और अदालत को सूचित करना होगा।
- उन्हें कम से कम दो पहचान प्रमाण- पासपोर्ट, आधार कार्ड, पैन कार्ड, राशन कार्ड, बिजली बिल, मतदाता पहचान पत्र की प्रतियां जमा करने का निर्देश दिया गया है।
- इन दस्तावेजों को जमा करने के बाद एनआईए उनके आवासीय पते का भौतिक या आभासी सत्यापन कर अदालत के समक्ष एक रिपोर्ट पेश करेगी।
- वह मुकदमे की कार्यवाही में भाग लेंगी और यह देखेंगी कि उनकी अनुपस्थिति के कारण सुनवाई लंबी न हो।
- वह हर पखवाड़े वॉट्सऐप वीडियो कॉल के जरिये नजदीकी पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करेंगी।
- वह किसी भी प्रकार के मीडिया- प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक या सोशल मीडिया पर अदालत के समक्ष लंबित कार्यवाही के संबंध में कोई बयान नहीं देगी।
- वह उन गतिविधियों के समान किसी भी गतिविधि में शामिल नहीं होंगी, जिसके आधार पर उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत अपराधों के लिए वर्तमान प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
- वह सह-आरोपी या समान गतिविधियों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल किसी अन्य व्यक्ति के साथ संपर्क स्थापित करने की कोशिश नहीं करेंगी या समान गतिविधियों में शामिल किसी भी व्यक्ति को कोई अंतरराष्ट्रीय कॉल नहीं करेंगी।
- वह ऐसा कोई भी काम नहीं करेंगी, जो न्यायालय के समक्ष लंबित कार्यवाही के प्रतिकूल हो।
- वह व्यक्तिगत रूप से या किसी के माध्यम से अभियोजन पक्ष के गवाहों को प्रभावित करने या सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने का कोई प्रयास नहीं करेंगी।
- नजदीकी रिश्तेदारों के अलावा आगंतुकों का कोई भी जमावड़ा नहीं होगा, जहां आरोपी अदालत के अधिकार क्षेत्र में निवास करेगा।
- वह अपना पासपोर्ट सरेंडर करेंगी और स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं करेंगी।
(मेहनतकश से साभार)
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