खट्टर सरकार के खिलाफ आशा कार्यकर्ताओं ने भरी हुंकार

खट्टर सरकार के खिलाफ आशा कार्यकर्ताओं ने भरी हुंकार

हरियाणा में आशा कार्यकर्त्ता बढ़ते काम के दबाव और वेतन न बढ़ाये जाने के खिलाफ एक बड़े हड़ताल पर जा सकती हैं

हरियाणा में 20,000 से अधिक आशा कार्यकर्ताओं ने 8 अगस्त को तीन दिवसीय लंबी हड़ताल शुरू करने की घोषणा की.
आशा कार्यकर्ताओं ने अपनी मांगों और समस्याओं को रखते हुए बताया की ” वो लगातार राज्य के स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को अपने काम और वेतन सम्बन्धी मामलों को लेकर कई पत्र लिखे हैं. लेकिन इसके बावजूद उनके मुद्दों पर अब तक कोई ध्यान नहीं दिया गया है”.

हरियाणा में 20,000 से अधिक आशा कार्यकर्ता 8 अगस्त से तीन दिवसीय लंबी हड़ताल पर चलीं गई हैं. यह हड़ताल उन्होंने अपने मानदेय में वृद्धि के साथ-साथ अन्य मांगों को उठाने के लिए बुलाई है.

हरियाणा में आशा कार्यकर्ता अपनी मांगों को लगातार विरोध प्रदर्शन के माध्यम से उठाते रहीं हैं

उनका कहना है कि अगर सरकार उनकी इन मांगों के प्रति लगातार उदासीन रवैया जारी रखती है, तो वे हड़ताल को बढ़ाने का निर्णय भी ले सकती हैं.
यह हड़ताल आशा वर्कर्स यूनियन के बैनर तले आयोजित की जा रही है और हरियाणा के सभी जिलों से आशा वर्कर हड़ताल में शामिल होने पहुंची हैं.

गौरतलब है कि सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) से जुड़ी आशा वर्कर्स यूनियन, हरियाणा के बैनर तले अपनी मांगों को लेकर लगातार विरोध प्रदर्शन करते रहे हैं. इन विरोध प्रदर्शनों के बाद सरकार द्वारा लगातार कई कामगारों को नौकरी से निकाले जाने के नोटिस जारी किए जा रहे हैं. लेकिन इसके बावजूद आशा कार्यकर्ता अपनी मांगो को लेकर डटी हुई हैं.

संघ की राज्य अध्यक्ष सुरेखा ने बताया आशा कार्यकर्ता ही वो कड़ी हैं जो स्वास्थ्य विभाग की सभी नीतियों को जमीनी स्तर पर आम जनता के बीच लागू करने के आवश्यक कार्य को अंजाम देती हैं.

उन्होंने आगे बताया की ” इन श्रमिकों ने अपने जीवन के खतरे के बावजूद कठिन कोविड -19 महामारी की अवधि के दौरान भी अपनी सेवाएं जारी रखीं. सरकार लगातार आशा कार्यकर्ताओं से लोक कल्याण के नाम पर अन्य विभागों के अतिरिक्त काम भी कराती है,और हम इससे पीछे भी नहीं हटे है आजतक लेकिन हमारी वेतन वृद्धि के नाम पर सरकार चुप्पी साध लेती है”.

कई आशा कार्यकर्ताओं ने मिडिया से बात करते हुए बताया कि 2018 के बाद से काम का बोझ काफी बढ़ गया है, लेकिन मानदेय और प्रोत्साहन अभी भी पांच-छह साल पहले के समान हैं.

सुरेखा ने कहा, “आशा कार्यकर्ता देश की प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़ हैं. कोरोना वायरस महामारी के दौरान हमें फ्रंटलाइन वर्कर्स के रूप में मान्यता दी गई और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड का सम्मान दिया गया. फिर आखिर क्यों सरकार हमे नौकरी की सुरक्षा प्रदान करने से भी इंकार कर दे रही है. हमारे वेतन बढ़ोतरी के मांग के कारण हमे नौकरी से हटाया जा रहा है”.

आशा कार्यकर्ताओं ने सरकार को ज्ञापन सौपतें हुए अपनी मांगों को सामने रखा :-

● आशा कार्यकर्ताओं का मानदेय बढ़ाया जाए और उन्हें स्थायी नौकरी दी जाए

● मानदेय और प्रोत्साहन को महंगाई भत्ता के साथ जोड़ा जाना चाहिए

● पीएफ और सेवानिवृत्ति लाभ सहित सभी सामाजिक सुरक्षा लाभ श्रमिकों को दिए जाने चाहिए

● पदोन्नति अनुभव और पात्रता के आधार पर दी जानी चाहिए

● सभी आशा केंद्रों को बैठने की उचित व्यवस्था के साथ-साथ सभी बुनियादी आवश्यकताओं से लैस किया जाना चाहिए

● बैठकों, सुविधाप्रदाताओं के दौरों आदि के लिए अतिरिक्त पारिश्रमिक दिया जाना चाहिए

● किराया भत्ता, पोशाक खरीदने की लागत आदि के लिए एक उचित राशि प्रदान की जानी चाहिए

आशा कार्यकर्ताओं ने बताया कि उन्हें बिना किसी मानदेय के ऑनलाइन काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है. प्रारंभ में तो उन्हें स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारियां दी गई थीं लेकिन अब उन्हें नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अन्य पुलिस विभाग के मामलों से संबंधित सर्वेक्षण करने की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी दी जा रही है. उनका आरोप है कि उन्हें न तो कोई छुट्टी दी जाती है और न ही कोई अन्य लाभ.

कई आशा कार्यकर्ताओं ने कहा कि उनके पास बहुत अधिक शैक्षिक योग्यता नहीं है, जिससे उनके लिए कंप्यूटर और मोबाइल फोन का उपयोग करके अन्य विभागों के काम को समझना पूरी तरह से मुश्किल हो जाता है.

इसके अलावा विभाग द्वारा उन्हें प्रदान किए गए मोबाइल फोन बहुत ही खराब गुणवत्ता के हैं और यदि कर्मचारी कुछ ऐप डाउनलोड करते हैं तो इन फोनों में गड़बड़ियां आती रहती हैं और साथ ही उन पर काम का बोझ लगातार बढ़ाया जा रहा है.

राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) पहले से ही उल्लेख करता है कि आशा कार्यकर्ता स्वास्थ्य स्वयंसेवक हैं जो सरकार की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को ज़मीनी स्तर पर उतरने वाली महत्वपूर्ण कड़ी हैं.

एनएचएम को बाद में 2013 में शहरी क्षेत्रों को कवर करने के लिए विस्तारित किया गया था. वर्तमान में देश में लगभग 10 लाख आशा कार्यकर्ता कार्यरत हैं, लेकिन सरकार उन्हें कर्मचारियों के रूप में मान्यता देने से इनकार करती है. उनका मासिक वेतन कानूनी रूप से अनिवार्य न्यूनतम मजदूरी से भी कम है.

कठिन परिस्थितियों का करना पड़ता है सामना 

मालूम ही की हरियाणा में 20,000 से अधिक आशा कार्यकर्ता हैं. एनएचएम के तहत वे केंद्र द्वारा सूचीबद्ध 60 से अधिक गतिविधियों के लिए कार्य-आधारित प्रोत्साहन के हकदार हैं इसके अलावा, आशा कार्यकर्ताओं को नियमित गतिविधियों के लिए 2,000 रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाती है.

कार्य-आधारित प्रोत्साहन के अलावा, राज्यों को आशा कार्यकर्ताओं के लिए मासिक भुगतान तय करने की अनुमति है.
हरियाणा में यह राशि 4,000 रुपये निर्धारित की गई है. आशा कार्यकर्ताओं ने कहा कि इन सभी भत्तों को मिलाने पर कर्मचारियों को कुल 9,000-10,000 हजार रुपये का मानदेय मिलता है, जो बढ़ते महंगाई के बीच बहुत ही कम है.

आशा कार्यकर्ताओं के यूनियन से जुड़े नेताओं ने कहा “आशा कार्यकर्ता कठिन परिस्थितियों में काम करती हैं, लेकिन कोई भी उनकी पीड़ा सुनने के लिए तैयार नहीं है. उनकी सेवाएं कई वर्षों से खराब और अमानवीय परिस्थितियों में जारी हैं. इसके अलावा निरीक्षण के नाम पर बीसीपीएम नाम के कई अधिकारियों और सिपाहियों को प्रभार में लगाया गया है. ये लोग आशा कार्यकर्ताओं को धमकाने में व्यस्त हैं और कार्यकर्ताओं को जो मिलता है उसका एक बड़ा हिस्सा छीन रहे हैं”.

गौरतलब है की हरियाणा में इस साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. कुछ दिनों पहले प्रदेश के कर्मचारी भी हड़ताल पर गए थे.कई श्रमिक संगठनों, युवाओं, महिलाओं और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है.ऐसे में आशा कार्यकर्ताओं की हड़ताल निश्चित रूप से खट्टर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के लिए एक नई चुनौती पेश करेगी.

(न्यूज़क्लिक की खबर से साभार)

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Abhinav Kumar

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