ओल्ड पेंशन स्कीमः अब बीजेपी ने उतारा सुशील मोदी को, लेख लिख कर OPS को कहा ‘बोझ’
ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) के ख़िलाफ़ अब मोदी सरकार ने अपने वरिष्ठ नेताओं की फ़ील्डिंग करनी शुरू कर दी है। नया नाम सुशील मोदी का है।
बीजेपी नेता और बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में एक लेख लिख कर इसे ‘बोझ’ बताया है।
इस लेख में उन्होंने पुरानी पेंशन स्कीम (ओपीएस) बनाम नई पेंशन स्कीम (एनपीएस) का जो तुलानत्मक विश्लेषण करने की कोशिश की है, वो कुछ और नहीं बीजेपी सरकारों को दो दशक पुरानी नीति का ही राग विराग है।
शनिवार, 10 दिसंबर को प्रकाशित इस लेख में कहा गया है कि ‘पेंशन सुधार पर पीछे हटना खराब राजनीति है और अर्थव्यवस्था के लिए घातक’ है।
गौरतलब है कि एक तरफ जहां देशभर में कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को फिर से लागू करने की मांग को लेकर सघन आंदोलन कर रहे हैं और हाल ही में संपन्न हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनावों में यह एक बड़ा बन गया था। मध्यप्रदेश में कर्मचारी पहले से आंदोलन छेड़े हुए हैं।
वहीं केंद्र की मोदी सरकार के मंत्री और नेताओं द्वारा लगातार नयी पेंशन योजना (एनपीएस) को देश की अर्थव्यवस्था के लिए ‘बेहतर’ और ‘ओपीएस’ को बुरा साबित करने में पूरी ताक़त लगाए हुए हैं।
बीते दिनों नीति आयोग ने भी पुरानी पेंशन योजना को भावी पीढ़ी पर ‘आर्थिक बोझ’ कहा था, वहीं कांग्रेस के चहेते योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने मोदी के सुर में सुर मिलाते हुए ओपीएस को रेवड़ी क़रार दिया था।
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सुशील मोदी ने अपने लेख को इस वाक्य से शुरू किया है कि, ‘बुरे विचारों की शक्ति को कभी कम नहीं आंकना चाहिए। उनका बार-बार खंडन करना चाहिए।’
जाहिर है कि यहां उन्होंने पुरानी पेंशन योजना को फिर से लागू किये जाने की मांग को ही ‘बुरा विचार’ कहा है।
जबकि कुछेक अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ अध्यापकों ने तथ्यात्मक तरीके से ओपीएस बनाम एनपीएस की तुलना करते हुए ओपीएस को कर्मचारियों के लिए बेहतर बताया है और लिखा है कि इससे अर्थव्यवस्था या भावी पीढ़ी पर किसी तरह के आर्थिक बोझ पड़ने का सरकार का तर्क ग़लत है।
सुशील मोदी ने अपने लेख में लिखा है कि, ‘एनपीएस एक दूरदर्शी नीतिगत हस्तक्षेप था क्योंकि पेंशन देनदारियों का अध्ययन करने के लिए गठित विशेषज्ञ समिति ने 2003 में तत्कालीन मौजूदा पेंशन प्रणाली के निरंतर जोखिम के बारे में चेतावनी दी थी।’
लेकिन कर्मचारी संगठनों का कहना है कि अगर एनपीएस इतना ही दूरदर्शी है और कर्मचारियों के लिए सबसे ख़ूबसूरत व टिकाऊ विकल्प है तो सांसद, विधायक, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और अन्य जन प्रतिनिधि क्यों नहीं इसे अपनाते?
हालांकि ओपीएस को लेकर उठे सवालों का सुशील मोदी ने अपने लेख में जवाब देने की बजाय सरकार के तर्कों को रख दिया है।
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सुशील मोदी के खोखले तर्क
सुशील मोदी लिखा है कि, “2003 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा पेश किया गया था और यूपीए सरकार द्वारा प्रभावी रूप से लागू किया गया था, लेकिन कुछ ही राज्यों ने 2007 तक एनपीएस के लिए नामांकन किया था।
“इसने बताया कि राज्यों का पेंशन भुगतान 1980-81 में कुल राजस्व प्राप्तियों के 2.1 प्रतिशत से बढ़कर 2001-02 तक 11 प्रतिशत हो गया था और 2020-21 तक 20 प्रतिशत तक पहुंचने का अनुमान था।”
अपने लेख में सुशील मोदी ने कहा है कि अपेक्षाकृत कामकाजी युवा आबादी को ध्यान में रखते हुए साल 2005 में तत्कालीन तत्कालीन यूपीए सरकार ने कहा कि यह भारत के लिए “पेंशन सुधारों की एक प्रणाली शुरू करने का एक उपयुक्त समय” है!
इसके तुरंत बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने राज्यों को सरकारी वित्त पर पेंशन के प्रभाव के बारे में बताया और उन्हें एनपीएस के लिए साइन अप करने को प्रोत्साहित किया।
सुशील मोदी ने कांग्रेस और आम आदमी पार्टी द्वारा शासित राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पंजाब में पिछले दिनों ओपीएस को लागू किये जाने की घोषणा को ‘खराब राजनीति और अर्थव्यवस्था के लिए बदतर’ बताया है।
लेकिन उन्होंने ये इस बात का ज़िक्र करना भी उचित नहीं समझा कि एनपीएस में पेंशनरों को दो-चार हज़ार रुपये मिल रहे हैं जबकि ओपीएस में सैलरी का आधा मिलता था।
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कर्मचारियों का आंदोलन क्यों नहीं दिखता?
मोदी ने कहा है कि, राजस्थान NPS को अपनाने वाले पहले कुछ राज्यों में से एक था और यह OPS को वापस लाने वाला पहला राज्य भी है।
साल 1990-91 में, केंद्र का पेंशन बिल 3,272 करोड़ रुपये था और सभी राज्यों को मिलाकर यह 3,131 करोड़ रुपये था। 2020-21 तक, केंद्र की पेंशन देनदारी 58 गुना बढ़कर 1,90,886 करोड़ रुपये हो गई थी; राज्यों के लिए, यह 125 गुना बढ़कर 3,86,001 करोड़ रुपये हो गया था।
अंत में उन्होंने लिखा है कि, अपने कर लाभों, बेहद कम व्यय अनुपात और पेशेवर प्रबंधन के साथ एनपीएस एक बहुत अच्छा सेवानिवृत्ति उत्पाद है।
बता दें कि, पुरानी पेंशन योजना की बहाली को लेकर देश भर में कर्मचारी और कई प्रमुख मजदूर संगठन और ट्रेड यूनियन लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं, वहीं बीते दस दिसंबर को पटना स्थित गोप गुट कार्यालय में पुरानी पेंशन बहाली को लेकर हस्ताक्षर महाअभियान शुरू किया गया है।
उल्लेखनीय है कि जैसे ओल्ड पेंशन स्कीम का दबाव बढ़ता जा रह है, इसके ख़िलाफ़ मोदी सरकार का प्रचार अभियान अब धीरे धीरे गति पकड़ रहा है। इस अभियान में इंडियन एक्सप्रेस नामके एक अंग्रेज़ी अख़बार को लगा दिया गया है।
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