निजीकरण के ख़िलाफ़ बैंक और एलआईसी की ट्रेड यूनियनों ने जताया रेड अलर्ट
2024 के आम चुनाव के बाद केंद्र में फिर से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार बन चुकी है.
चुनावों से पहले बीजेपी के किये गए 400 पार सीटों के दावें रिज़ल्ट आने के बाद पूरी तरह से ध्वस्त हो गए। भारतीय जनता पार्टी अपने दम पर 240 सीटें जीतने में कामयाब रही है और वह अपने सहयोगियों टीडीपी (16 सीटें जीतने वाली), जेडीयू (12 सीटें जीतने वाली) और अन्य छोटी पार्टियों की मदद से सरकार बनाने में सफल रही।
सरकार के गठन के बाद अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या बीजेपी/एनडीए सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण के अपने रोडमैप पर आगे बढ़ पाएगी?
इस मसले पर बात करते हुए बैंक ट्रेड यूनियन नेता और ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कन्फेडरेशन के पूर्व महासचिव थॉमस फ्रैंको कहते हैं, “यह भाजपा के लिए एक स्पष्ट सबक है कि लोग सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण नहीं चाहते हैं। दो साल पहले 2 बैंकों के निजीकरण की घोषणा करने के बावजूद उन्होंने ऐसा नहीं किया क्योंकि वे इसके विरोध से डरते थे”।
उन्होंने आगे कहा, ” LIC में 3.5% हिस्सेदारी प्राइवेट प्लेयर को देने से LIC को किसी भी तरह से मदद नहीं मिली है। भाजपा द्वारा मुद्रा ऋण, पीएम स्वनिधि एसएचजी ऋण, अटल पेंशन योजना आदि जैसी सभी उपलब्धियां सार्वजनिक बैंकों द्वारा की गई हैं। यूनियनें भी कड़ा रुख अपनाएँगी। इसलिए हमारे देश में निजीकरण नहीं होगा। लोगों ने भाजपा की नीतियों को नकार दिया है और उसे पराजय दी है। इसलिए भाजपा को निजीकरण पर अपना रुख बदलना होगा।”
एटक के राष्ट्रीय सचिव सी. श्रीकुमार ने कहा, “चुनाव परिणामों से स्पष्ट है कि देश की जनता ने भाजपा सरकार की सरकारी विभागों का निगमीकरण करने तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों का निजीकरण करने की नीति को नकार दिया है। यह चुनाव परिणाम राजनीतिक दलों के लिए एक सबक हैं तथा निर्मम निजीकरण को बढ़ावा देकर राष्ट्रहित से समझौता करने वालों को जनता ने नकार दिया है। नई सरकार को निजीकरण तथा निगमीकरण की नीतियों पर पुनर्विचार करना चाहिए तथा ऐसी सभी नीतियों को वापस लेना चाहिए जो राष्ट्र तथा जनता के हित में नहीं हैं।”
वरिष्ठ बैंक ट्रेड यूनियन नेता संजय दास ने कहा कि, “सत्ता में कोई भी हो, प्रभावी लोकतंत्र के लिए हमें एक मजबूत विपक्ष की आवश्यकता है। कहावत है कि सत्ता भ्रष्ट करती है तथा पूर्ण सत्ता पूर्ण रूप से भ्रष्ट करती है। सरकार में नियंत्रण और संतुलन बनाए रखने के लिए प्रभावी विपक्ष की आवश्यकता है। जहां तक बैंकों के निजीकरण का सवाल है, हाल के दिनों में हमने देखा है कि बैंकों के निजीकरण को भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एकमात्र रामबाण के रूप में पेश करने की प्रवृत्ति है, जो पूरी तरह से गलत है”।
उन्होंने आगे बताया ” हर कोई जानता है कि निजीकरण हमारे देश के लिए अच्छा नहीं है। निजीकरण, एकाधिकार को बढ़ावा देगा और यह नीति देश के हित के खिलाफ है। लेकिन मौजूदा सरकार अपनी नीतियों से विश्व पूंजीवाद को अंधों की तरह सहयोग कर रही है। भारत एक बड़ा देश है जिसकी आबादी में युवाओं की संख्या सबसे अधिक है। ऐसे में सरकार को पूंजी पर बेहतर नियंत्रण रखना चाहिए और युवाओं के कल्याण के लिए इसे पूरी तरह से बाजार संचालित अर्थव्यवस्था को नहीं सौंपना चाहिए”।
केंद्र में नई सरकार के सामने एक और महत्वपूर्ण मुद्दा यह होगा कि क्या नई पेंशन योजना (एनपीएस) को जारी रखा जाए या पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को वापस लाया जाए, क्योंकि ओपीएस को वापस लाना ट्रेड यूनियनों के साथ-साथ सरकारी कर्मचारियों की लंबे समय से मांग रही है।
(इंडियन पीएसयू की खबर से साभार)
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