भीमा कोरेगांव मामला: बॉम्बे HC ने दी आनंद तेलतुंबडे को जमानत, NIA ने किया फैसले का विरोध
भीमा-कोरगांव मामले में जेल में बंद प्रोफेसर आनंद तेलतुंबडे को बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को जमानत दे दी। लेकिन कोर्ट ने एनआईए के निवेदन पर अपने फैसले पर रोक लगा दी है ताकि जांच एजेंसी का पक्ष जान सके।
गौरतलब है कि प्रो. आनंद तेलतुंबडे एक सप्ताह से पहले जेल से बाहर नहीं आ सकेंगे। वहीं एनआईए ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने का फैसला किया है।
न्यायमूर्ति ए एस गडकरी और न्यायमूर्ति एम एन जाधव की खंडपीठ ने 73 वर्षीय तेलतुंबडे की जमानत याचिका स्वीकार कर ली। तेलतुंबडे को अप्रैल 2020 में गिरफ्तार किया गया था , तेलतुंबडे इस समय नवी मुंबई की तलोजा जेल में हैं।
The Bombay High Court on Friday granted bail to former IIT professor and Dalit scholar Prof. Anand Teltumbde, booked under the Unlawful Activities (Prevention) Act in the Bhima Koregaon-Elgar Parishad case.
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ज्ञात हो कि बीते 15 अक्टूबर को भी एक ऐसा ही फैसला आया था जिसमें सुप्रीमकोर्ट ने रिहाई पर रोक लगा दी थी। 14 अक्टूबर को बॉम्बे हाईकोर्ट ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को बॉम्बे हाईकोर्ट ने माओवादियों से कनेक्शन रखने के कथित आरोपों से बरी किया था।
लेकिन उसके अगले ही दिन (15 अक्टूबर) सुप्रीम कोर्ट ने जीएन साईबाबा समेत छह आरोपियों की रिहाई पर रोक लगा दी है। महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए नोटिस जारी किया था। अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले में 8 दिसंबर को सुनवाई करेगा।
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अप्रैल 2020 में गिरफ्तार किया गए तेलतुंबडे पर आरोप है कि उन्होंने वह 31 दिसंबर 2017 को पुणे में भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद के कार्यक्रम में भड़काऊ भाषण दिया था।
जिसके बाद तेलतुंबडे ने बॉम्बे हाई कोर्ट में जमानत की याचिका दायर की थी। इस याचिका में तेलतुंबडे ने कहा था कि भीमा कोरेगांव में आयोजित एल्गार परिषद के कार्यक्रम में वो मौजूद नहीं थे और न ही उन्होंने कोई भड़काऊ भाषण दिया।
कोर्ट ने पाया कि यूएपीए की धारा 13 (गैरकानूनी गतिविधियों के लिए सजा), 16 (आतंकवादी कृत्य के लिए सजा) और 18 (साजिश के लिए सजा) के तहत प्रथम दृष्टया अपराध नहीं बनता है और केवल धारा 38 और 39 (आतंकवादी संगठन की सदस्यता और समर्थन) ) मामला बनाया गया। जिसके बाद आज एक लाख रुपए के निजी बॉन्ड के निष्पादन और इतनी ही राशि के दो ज़मानतदार पेश करने पर जमानत दी गई।
क्या था मामला
दरअसल, एक जनवरी को भीमा-कोरेगांव लड़ाई के 200 साल पूरे होने के मौके पर एक कार्यक्रम में हिंसा भड़क गई थी। इस दौरान पुलिस वालों ने आंसू गैस और लाठी चार्ज भी किया। इसमें एक की मौत हो गई थी और 10 पुलिसकर्मियों सहित कई घायल हो गए थे। भीमा-कोरेगांव में झड़पों के बाद जनवरी में राज्यव्यापी बंद के दौरान पुलिस ने 162 लोगों के खिलाफ 58 मामले दर्ज किए थे।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 82 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता पी वरवरा राव को जमानत दे दी थी।
Bhima Koregaon case: Bombay HC grants bail to accused Anand Teltumbde
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— ANI Digital (@ani_digital) November 18, 2022
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक अंतरिम आदेश में भीमा कोरेगांव के एक अन्य आरोपी गौतम नवलखा को उनकी स्वास्थ्य स्थिति और वृद्धावस्था को देखते हुए एक महीने की अवधि के लिए घर में नजरबंद रखने की अनुमति दी थी।
भीमा कोरेगांव में दलित क्यों मनाते हैं जश्न?
साल के पहले दिन हज़ारों दलित पुणे के भीमा कोरेगांव में स्थित वॉर मेमोरियल पर इकट्ठा होते हैं। इस जगह को दलित अपने लिए पवित्र मानते हैं।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक भीमा कोरेगांव की लड़ाई 1 जनवरी, 1818 को ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना और पेशाओं के नेतृत्व वाली मराठा सेना के बीच हुई थी।
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इस लड़ाई में मराठाओं की हार हुई और ईस्ट इंडिया कंपनी ने महार रेजिमेंट को जीत का असली हक़दार बताया था। महार समुदाय उस वक्त महाराष्ट्र में अछूत समझा जाता था।
इतिहास सलाहकारों का मानना है कि उस समय महारों ने मराठों को नहीं बल्कि ब्राह्मणों को हराया था। क्योंकि महार समुदाय काफी सालों से ब्राह्मणों द्वारा किये जाने वाले छुआछूत के शिकार हो रहे थे यही वजह थी जो महारों ने ब्रिटिश फ़ौज में शामिल होना सही समझा।
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