वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा का बेल स्वागत योग्य लेकिन जमानत शर्तें अन्यायपूर्ण – पीयूडीआर
सामाजिक कार्यकर्ता वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा शनिवार दोपहर नवी मुंबई की तलोजा जेल से रिहा कर दिए गए हैं
मालूम हो की इस सम्बन्ध में NIA से सम्बंधित मामलों की सुनवाई करने वाली विशेष अदालत ने शुक्रवार को रिहाई का आदेश जारी किया था.हालाँकि अदालत ने दोनों को बड़े ही कड़े शर्तों के साथ जमानत दी है.
पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) वर्नोन गोंसाल्वेस और फरेरा को मिले जमानत का स्वागत करती है लेकिन साथ ही साथ उन कड़े शर्तों पर आपत्ति जताई है.
पीयूडीआर ने अपने प्रेस रिलीज में यह बताया की “पीयूडीआर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत करता है जिसमें वर्नन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा को जमानत पर रिहाई दी गई. जिनको भीमा कोरेगांव मामले में अनैतिक गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत आरोपी बना कर गिरफ्तार किया गया था.
अपने महत्त्वपूर्ण फैसले में शीर्ष अदालत ने फरेरा और गोंसाल्वेस को जमानत देते हुए कहा की ” आरोपियों को 5 साल तक कैद में रख लिया गया है, जबकि अभी तक ट्रायल भी शुरू नहीं हुए है. NIA अभी तक उनकी संलिप्तता को साबित करने वाला एक भी सबूत पेश नहीं कर पाई है.UAPA के तहत किसी व्यक्ति को तभी जमानत नहीं दिया जा सकता जब राज्य उनकी संलिप्तता साबित करने में कामयाब हो. जिन इलेक्ट्रॉनिक सबूतों की बात की जा रही थी वो भी उनके उपकरणों में नहीं पाई गई है.
साहित्यिक किताबें रखने को हम सबूतों के तौर पर नहीं स्वीकार कर सकते. यहाँ तक की अपनी कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए फंड जुटाना भी कोई आतंकवादी गतिविधि नहीं है. प्रतिबंधित संगठनों से भी इनके सम्बन्ध को तथ्यों के आधार पर साबित करना होगा. इनकी जमानत को रोकने के लिए हवा हवाई महल नहीं खड़ा किया जा सकता.”
PUDR ने आगे बताया की ” अदालत ने वर्नोन गोंसाल्वेस के खिलाफ एक पुराने आपराधिक मामले को पेंडिंग बता कर जिस तरह से जमानत के लिए एक सेट शर्तों को जारी किया है हम उसका विरोध करते है. शीर्ष अदालत द्वारा जमानत के लिए सात शर्तें जारी की गई है ,जिनमे से एक ये है की वो महाराष्ट्र राज्य से बाहर नहीं जा सकते. दूसरा शर्त ये है की दोनों ही लोगों को एक- एक मोबाईल फोन रखने का निर्देश देती है जिसके लोकेशन ट्रेस का अधिकार 24 घंटे जाँच एजेंसियों के पास होगा”.
इससे भी अधिक परेशान करने वाली बात यह है कि शीर्ष अदालत ने विशेष ट्रायल कोर्ट द्वारा आगे की शर्तों को निर्धारित करने की अनुमति दी है, जिन्हें बाद में “उपयुक्त और उचित” माना जा सकता है.
इसके अलावा दोनों के लिए विशेष एनआईए अदालत ने आगे की शर्तें निर्धारित की हैं जो निम्नलिखित है :-
- सह-आरोपी या इसी तरह की गतिविधियों में शामिल किसी अन्य व्यक्ति से संपर्क या संवाद नहीं कर सकते है.
- संचार के किसी भी माध्यम से इसी तरह की गतिविधियों में लिप्त किसी भी व्यक्ति को घरेलू या अंतर्राष्ट्रीय कॉल नहीं कर सकते है.
- अभियोजन पक्ष के गवाहों के साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकते है.
- फरार होने या भागने की कोशिश करने का प्रयास नहीं कर सकते.
- अपने निवास पर आगंतुकों की कोई सभा नहीं कर सकते.
पीयूडीआर ने आगे अपने प्रेस रिलीज में कहा की ” विशेष अदालत की आगे की शर्तें बेहद ही संदिग्ध हैं, क्योंकि वे सुप्रीम कोर्ट द्वारा आदेशित जमानत पर स्वतंत्रता के मामले में जांच एजेंसी के बढ़ते हाथ को दिखती हैं. शर्तों में अस्पष्टता और मनमानी की बू आती है क्योंकि समान गतिविधियाँ, कोई भी लोग, लोगों की सभाएं जैसे शब्द अस्पष्ट और अपरिभाषित हैं”.
“इसी तरह की गतिविधियाँ” ये गतिविधियाँ क्या हैं? क्या ये ‘गैरकानूनी’ गतिविधियां हैं जिनमें वर्नोन और अरुण यूएपीए के तहत आरोपी हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट के अनुसार एनआईए को अभी भी उन गतिविधियों को साबित करना है.
‘कोई भी व्यक्ति’ हर उस व्यक्ति को शामिल करेगा जिसे जांच एजेंसी उचित समझती है.
अस्पष्ट और मनमानी शब्दावली के आधार पर दी गई जमानत की शर्तें बेहद जटिल और अनुचित है.
जमानत की शर्तें स्वयं सुप्रीम कोर्ट की अपनी जजमेंट के खिलाफ है. मोहमद जुबैर बनाम NCT ऑफ़ दिल्ली के मामलें में सुप्रीम कोर्ट के खुद के स्टैंड की ” जाँच के हितों के लिए शर्तें लगाई जा सकती है लेकिन वो अनुपातिक होनी चाहिए साथ ही आरोपी के निष्पक्ष परीक्षण के अधिकार को बनाये रखने वाली होनी चाहिए” का उल्लंघन करती है.
पीयूडीआर इन जमानत शर्तों को अन्यायपूर्ण बताता है और इसकी कड़ी शब्दों में निंदा करता है.
जोसेफ मथाई, परमजीत सिंह, सचिव, पीयूडीआर
( पीयूडीआर द्वारा जारी प्रेस रिलीज के आधार पर)
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